आप चाहे किसी भी संगठन के संचालक हों या फिर आम कार्यकर्ता हों, काम के माहौल को खुशहाल बनाने की जिम्मेदारी कुछ हद तक आप की भी होती है। सद्‌गुरु यहां कुछ ऐसे नुस्खे बता रहे हैं, जिन्हें अपनाकर आप इसे संभव बना सकते हैं।

#1-‘कड़ी मेहनत’ करना छोड़ दें 

सद्‌गुरु: बचपन से हमें किसी ने कभी खुशी-खुशी पढ़ाई करना या प्रेमपूर्वक काम करना नहीं सिखाया। हमसे हमेशा यही कहा गया कि जब भी पढ़ो, तो मेहनत से पढ़ो। अगर काम करो तो कड़ी मेहनत से करो। लोग हर काम में मेहनत करते हैं और फिर शिकायत करते हैं कि जिंदगी आसान नहीं है।

यह हमारा अहं ही है कि हम हर काम को मेहनत से करना चाहते हैं, जिससे हम औरों से एक कदम आगे निकल सकें। जिंदगी का यह नजरिया बेहद अफसोसजनक है। अगर पूरी कोशिश इसी दिशा में रहेगी, तो हर काम को मेहनत के साथ करने में ही संतोष मिलने लगेगा। अगर लोग काम में आनंद लेने लगेंगे, तो उन्हें लगेगा कि उन्होंने कुछ किया ही नहीं।

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क्या यह अपने आप में मजेदार बात नहीं है कि आपने बहुत सारा काम किया, फिर भी आपको लगता है कि आपने कुछ किया ही नहीं ? दरअसल, होना ऐसा ही चाहिए। चौबीसों घंटे काम करने के बाद भी अगर आपको लगता है कि आपने कुछ नहीं किया, तो आपके सिर पर कोई बोझ ही महसूस नहीं होगा। अगर आप सारा बोझ अपने ऊपर ही लिए रहेंगे, तो आपकी काबिलियत को उभरने का कभी पूरा मौका नहीं मिल सकेगा और अंत में आप ब्लड प्रेशर, डायबीटीज व अल्सर के मरीज बनकर रह जाएंगे।

#2-प्रतिस्पर्द्धा से आगे की सोचें


सद्‌गुरु: प्रतिस्पर्द्धा में उलझे रहने पर व्यक्ति की वास्तविक योग्यता उभरकर नहीं आ पाती है। जब आप किसी के साथ दौड़ लगाते हैं, तो आपका पूरा ध्यान सिर्फ उससे एक कदम आगे निकलने में लगा रहता है। आप इस बारे में सोचते ही नहीं कि कैसे आप अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल कर सकते हैं। जब तक व्यक्ति तनावमुक्त होकर काम न करे, उसकी वास्तविक क्षमता का पता नहीं चल पाता। आपका मन और शरीर तभी बेहतर काम कर सकेंगे, जब आप खुश और तनावमुक्त रहेंगे। अकसर ऐसा होता है कि तनावमुक्त रहने की सलाह मानकर लोग ढीले व सुस्त हो जाते हैं और अगर उनको तीव्र होने के लिए कहा जाता है तो वे तनाव में आ जाते हैं। आपको दोनों में फर्क समझ में आना चाहिए। आपको सीखना होगा कि तीव्रता पूर्वक काम करते हुए भी किस तरह तनाव मुक्त रहा जाए। अगर आप ऐसा कर पाएँ, तो आप अपनी क्षमता का पूरा इस्तेमाल कर सकेंगे।

#3-स्वयंसेवक बनने की कला सीखें

सद्‌गुरु: जब आप स्वयंसेवा करते हैं, तो आपका काम एक भेंट बन जाता है, लेकिन घर या ऑफिस में वही काम एक उबाऊ जिम्मेदारी बन जाती है। काम वही है, आप भी वही हैं, लेकिन आप चाहें तो उसे उबाऊ बना सकते हैं या फिर सुखद। तो आप अपने कार्यस्थल पर जो कुछ भी करते हैं, क्यों नहीं उसे स्वयंसेवा की भावना से करें? आपको ऐसा करने से किसने रोका है?

आपको हमेशा एक स्वयंसेवक की तरह रहना चाहिए। स्वयंसेवक बनने का मतलब है कि आप अपने जीवन को इस तरह से चलाते हैं कि आप उसके साथ राजी रहते हैं। अगर आज आप यह कहते हैं, कि ‘मैं एक स्वयंसेवक हूँ,’ तो इसका मतलब होगा कि ‘मैं जो भी कर रहा हूँ उसे राजी हो कर कर रहा हूँ।’ आपके सामने विकल्प यह है कि आप अपना जीवन राजी होकर जिएं या फिर बेमन से। अगर आप राजी होकरे जी रहे हैं, तो फिर आपका पूरा जीवन एक जबर्दश्त प्रेमप्रसंग बन जाएगा और यह किसी स्वर्ग की तरह लगने लगेगा। हाँ, अगर बेमन से जिंदगी जिएंगे तो वही जीवन नरक बन जाएगा। इसलिए स्वयंसेवक बनने का यह मतलब कतई नहीं है कि आप किसी कार्यक्रम के दौरान बर्तन धो रहे हैं या सब्जियाँ काट रहे हैं, बल्कि यह सीखना है कि आप जीवन में आने वाली हर तरह की परिस्थितियों के लिए तैयार हैं और जीवन के हर पल को राजी होकर जी रहे है, बेमन से नहीं। दरअसल, जब आप हर काम को बेमन से करेंगे तो जीवन के खूबसूरत पल भी आपको सजा की तरह लगने लगेंगे।

#4- सहकर्मियों को उनका सर्वश्रेष्ठ सहयोग देने में मदद करें

सद्‌गुरु: चाहे आप कोई बिजनेस चला रहे हों, घर या फिर कुछ और, आपको लोगों का  उत्तम सहयोग तभी मिलेगा, जब आपके आस-पास के लोग किसी न किसी रूप में आपसे प्यार करते हों। लेकिन इससे पहले कि लोग आपसे प्यार करें, जरूरी है कि आप लोगों से प्यार करें, चाहे वे जैसे भी हों। जब वे आपसे प्यार करेंगे, केवल तभी वे आपको अपना बेहतरीन सहयोग दे सकेंगे।