सद्‌गुरुक्या नेता जन्म से ही नेतृत्व के गुणों के साथ पैदा होते हैं, या फिर उन गुणों को तराशा जाता है? सद्‌गुरु हमें बता रहे हैं कि नेता हमेशा ही बनाए जाते और ये फर्क नहीं पड़ता कि नेता बनने का तरीका क्या है

नेता हमेशा बनाए जाते हैं। इससे फर्क नहीं पड़ता कि कैसे, लेकिन सच यही है कि नेता हमेशा बनाए जाते हैं।

हम ऐसे लोग चाहते हैं जो समझदारी से नेतृत्व करें। नेता के पास करिश्माई व्यक्तित्व हो ही, यह जरूरी नहीं है।
हां, किसी शख्स के व्यक्तित्व में एक ऐसा खास करिश्मा और जन्मजात प्रवृत्ति हो सकती है कि वह बड़ी ही आसानी से लोगों का नेतृत्व कर सके, लेकिन जो लोग अपने करिश्माई व्यक्तित्व के बल पर नेतृत्व करते हैं, वे लोगों को विनाश की ओर भी ले जा सकते हैं। हम ऐसे लोग चाहते हैं जो समझदारी से नेतृत्व करें। नेता के पास करिश्माई व्यक्तित्व हो ही, यह जरूरी नहीं है। आप देखेंगे कि दुनिया में कई बड़े काम किए जा रहे हैं, मानव के परम कल्याण के लिए काम किए जा रहे हैं, पर ऐसा नहीं है कि ये काम करिश्माई लोग ही कर रहे हैं। ये काम समझदार लोगों के द्वारा किए जा रहे हैं, जिन्हें पता है कि क्या करना है और क्या नहीं।

आप जैसे भी हैं - खुद की रचना हैं

तो इस बात को समझने की जरूरत है। आप जो भी हैं, आप जैसे भी हैं, आपने खुद अपने आपको ऐसा बनाया है। सवाल बस यह है कि आपने पूरी चेतना में खुद को ऐसा बनाया या अचेतन तरीके से।

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आप चाहे जो भी हों, अगर आपने खुद को अचेतन तरीके से बनाया है और आप सफल भी हैं तो वह सफलता केवल दूसरों की नजरों में ही होगी।
आपने अचेतन ही खुद को ऐसा बनाया है इसलिए आप एक उलझे हुए इंसान बन गए हैं - कभी उलझे हुए सफल इंसान, तो कभी उलझे हुए असफ ल इंसान। आप चाहे जो भी हों, अगर आपने खुद को अचेतन तरीके से बनाया है और आप सफल भी हैं तो वह सफलता केवल दूसरों की नजरों में ही होगी। जीवन के अपने अनुभव में आप खुद को सफल नहीं पाएंगे। अगर आपने खुद को पूरी जागरूकता के साथ बनाया है तो आप अपनी नजरों में सफल होंगे। यह बड़ा महत्वपूर्ण है कि आप खुद की नजरों में सफल हों, दूसरों की नजर में नहीं और न ही समाज की नजर में। अगर ऐसा हुआ तो आपको महसूस होगा कि आप सफल हैं। आप जो कर रहे हैं, उसमें अगर आपको पूर्ण संतुष्टि मिलती है, अगर उससे आपका कल्याण होता है तो आप खुद को सफल महसूस करेंगे।

करिश्माई नेता नहीं, सजग नेता की जरूरत है

एक नेता के लिए सिर्फ अपनी मंडली में ही चोटी पर होना जरूरी नहीं है, उसे अपने भीतर भी चोटी पर होना चाहिए। अगर वह खुद के ऊपर काम नहीं करता तो वह दूसरों के लिए जो भी करेगा, वह बस संयोगवश होगा।

नेतृत्व का मतलब है कि आप अपने भीतर चोटी पर हैं और जब आपके भीतर की क्षमताओं को संपूर्ण अभिव्यक्ति मिलेगी, काम अपने आप होने लगेंगे।
नेतृत्व का मतलब यह कतई नहीं है कि आपको लोगों के ऊपर राज करना है। नेतृत्व का मतलब है कि आप अपने भीतर चोटी पर हैं और जब आपके भीतर की क्षमताओं को संपूर्ण अभिव्यक्ति मिलेगी, काम अपने आप होने लगेंगे। जहां तक क्षमताओं की बात है तो आपको पता है कि इंसान को किसी भी काम में प्रशिक्षित किया जा सकता है। यह सच है कि कुछ लोगों के भीतर कुछ खास सहज प्रतिभा होती है, लेकिन अगर आपके पास सहज प्रतिभा है, तो वह भी खुद आपके द्वारा पैदा की हुई है, लेकिन इसे आपने अनजाने में पैदा किया है। कहने का मतलब यह है कि नेता हमेशा बनाए जाते हैं। अगर आप खुद को एक सजग नेता के रूप में तैयार कर लेते हैं तो अच्छा है, क्योंकि तब आप बुद्धिमानी से काम करेंगे।

अगर आप बस एक करिश्माई नेता है, तो जान लें कि करिश्मा आपके खुद के लिए और दूसरों के लिए बहकाने वाला हो सकता है और आप लोगों को विनाश की ओर ले जा सकते हैं। ऐसे बहुत सारे नेता हुए हैं, जिनके पीछे भीड़ चलती थी, लेकिन वे दुनिया के लिए विनाशकारी साबित हुए। उन्होंने उन लोगों को युद्ध की ओर धकेल दिया, उन्हें विनाशकारी स्थितियों में पहुंचा दिया, क्योंकि उन्होंने करिश्मे के आधार पर नेतृत्व किया, समझदारी के आधार पर नहीं।

सभी की बात ध्यान से सुनें

अगर आपमें समझ नहीं है तो आपको सुनने के लिए तत्पर रहना चाहिए। आपको हर बात सुननी चाहिए। हो सकता है कोई महा-बेवकूफ ी की बातें कर रहा हो, लेकिन आपको उसे भी सुनना चाहिए।

अपने आसपास के जीवन और परिस्थितियों को गौर से सुनना सीखें। जब आप अपने आसपास की हर चीज को गौर से सुनते हैं, तो आपको यह बात समझ आती है कि अभी क्या हो रहा है और इससे आगे अगला कदम क्या होगा।
क्योंकि दुनिया में ऐसे कई प्रतिभावान व्यक्ति हुए हैं, जिन्होंने उस समय की दुनिया के अनुसार महामूर्खतापूर्ण बातें कीं। कई पीढिय़ां बीत जाने के बाद लोगों को इस बात का अहसास हुआ कि उन लोगों ने जो बातें कहीं, वे बुद्धिमानी से भरी थीं। तो अगर आप नेता हैं तो यह जरूरी नहीं है कि आपको दुनिया के बारे में सब कुछ पता ही हो। बस इतना है कि आप सुनने के इच्छुक हैं, भले ही कोई भी बोल रहा हो। चाहे कोई बच्चा कुछ कह रहा हो, चाहे कोई महान आदमी, चाहे कोई मजदूर कुछ कह रहा हो, चाहे कोई मैनेजर, आपको हरेक की बात को सुनना सीखना होगा। यह बहुत महत्वपूर्ण है। सुनने का मतलब आपके कानों की क्षमता से नहीं है। अपने आसपास के जीवन और परिस्थितियों को गौर से सुनना सीखें। जब आप अपने आसपास की हर चीज को गौर से सुनते हैं, तो आपको यह बात समझ आती है कि अभी क्या हो रहा है और इससे आगे अगला कदम क्या होगा। अभी क्या हो रहा है, अगर आपको इसकी कोई समझ नहीं है, अगर आप कोई ऐसा कदम उठाते हैं जो वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब के अनुकूल नहीं है तो आप कितना भी महान कदम उठा लें, वह बेकार ही जाएगा।

एक दिन की बात है। शंकरन पिल्लै का दोस्त उसके पास आया। वह शंकरन के गधे को अपने कुछ काम के लिए उधार लेना चाहता था। शंकरन पिल्लै ने कहा - ‘गधा तो मैंने पहले ही किसी को उधार दे दिया है। गधा यहां है ही नहीं।’ दोस्त जैसे ही चलने को हुआ, उसे गधे की आवाज सुनाई दी। वह फ़ौरन मुड़ा और शंकरन पिल्लै से बोला- ‘मैंने गधे की आवाज सुनी है, वह यहीं है।’ शंकरन ने कहा - ‘तुम किस पर भरोसा करना चाहते हो, मुझ पर या गधे पर?’