सद्‌गुरुभारतीय परंपरा में बच्चे के जन्म पर उस समय और दिन के हिसाब से, सौर्यमंडल की स्थिति को देखकर नामकरण किया जाता है। क्या है इसके पीछे का विज्ञान?

प्रश्न : सद्‌गुरु, किसी बच्चे का नामकरण उसके जन्म के समय और जन्मस्थान के आधार पर किए जाने का क्या महत्व है?

सद्‌गुरु : देखिए, संस्कृत की वर्णमाला इस ब्रह्मांड की एक खास समझ से पैदा हुई है। दरअसल यह भाषा बातचीत के लिए नहीं बनी थी। यह एक ऐसी भाषा है, जिसे लोगों ने इस अस्तित्व से निकाला है। यह वह भाषा है जो अवलोकन से यानी चीजों को गहराई से देखने से विकसित हुई है, कल्पना से नहीं। आप जो भी ध्वनि उत्पन्न करते हैं और उस ध्वनि के संकेत के रूप में जिस आकृति का इस्तेमाल करते हैं, उन दोनों का आपस में संबंध होता है और इन्हें ही मंत्र कहा जाता है।

मंत्र का मतलब एक ऐसी ध्वनि है जो पवित्र है और यंत्र का मतलब एक ऐसी आकृति है जो उस ध्वनि से संबंधित है। अगर आप भौतिक विज्ञान के बारे में कुछ भी जानते हैं तो आप इसे समझ लेंगे। आपको याद होगा कि जब आप ऑसिलोस्कोप यानी ध्वनि मापक यंत्र में अलग-अलग तरह की आवाजें भेजते हैं तो उसमें से हर बार आपको एक खास आकृति हासिल होती है। इसका मतलब हुआ कि किसी भी ध्वनि के साथ एक आकृति भी जुड़ी होती है। इसी तरह हर आकृति के साथ एक खास ध्वनि जुड़ी होती है।

सही नामकरण से सही ध्वनी पैदा होती है

लोगों के जीवन को बदलने के लिए आपको सही आवृति की ध्वनि पैदा करनी होगी। नाद-योग में इसका पूरा प्रशिक्षण दिया जाता है कि कैसे किसी आवाज को इस तरह व्यवस्थित किया जाए कि जैसे ही आप कोई शब्द कहें तो वह आपके आसपास का सारा वातावरण ही बदल दे। यह एक बेहद सूक्ष्म पहलू है। ‘‘मैं अपनी आवाज को कैसे बदल सकता हूं।’’

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आज से लगभग पच्चीस साल पहले तक ज्यादातर महिलाएं विवाह के समय अपने पति के नाम के अनुसार या उसकी विशेषताओं को ध्यान में रखकर और खगोलीय ज्यामिति के हिसाब से अपना नाम बदला करती थीं
हर व्यक्ति अपनी आवाज बदल सकता है बशर्ते वह उसके लिए जरूरी साधना करे। हर सुबह आप अपने शरीर को आसन, सूर्य-नमस्कार या किसी और तरीके के आसन से मथिए और ऐसे मथिए कि जब आप एक स्थान पर बैठें तो आपका शरीर एक सही तरह की प्रतिध्वनि पैदा करे।

खैर जब एक बच्चे का जन्म होता है तो उस दिन और समय के हिसाब से लोग सौरमंडल की ज्यामितीय स्थिति का आकलन करते हैं और इसके आधार पर एक ऐसी खास ध्वनि तय करते हैं जो नवजात बच्चे के लिए सर्वश्रेष्ठ हो। वैसे ऐसा करने का एक तरीका और भी है जिसमें और बड़े ब्रह्मांड को आधार बनाया जाता है लेकिन वह जरा पेचीदा तरीका है और इसलिए सौरमंडल की ज्यामितीय स्थिति को ही आधार बना लिया जाता है। इसका एक खास वैज्ञानिक आधार है लेकिन साथ ही साथ इसमें एक कमी भी है। संस्कृत भाषा में 54 वर्ण होते हैं। इन वर्णों को और भी कई सारी छोटी ध्वनियों में तोड़ा जा सकता है। इन छोटी ध्वनियों के जरिए लोगों का नामकरण और भी कठिन हो जाता है।

पुनः नामकरण की स्थिति

जब ब्रह्मचर्य या संन्यास की स्थिति में लोगों का पुन: नामकरण किया जाता है, तो कुछ ज्यादा सावधानी बरती जाती है। इस नामकरण का आधार उनका जन्म नहीं होता, बल्कि उनकी पहचान के खास पहलुओं पर ध्यान दिया जाता है। उसी के अनुरूप हम नाम तय करते हैं ताकि उस नाम और उस ध्वनि का आपस में तालमेल रहे, न कि उसके अर्थ का। वैसे भी अर्थ तो बेकार होता है, क्योंकि अर्थ तो आप अपने हिसाब से कुछ भी बना सकते हैं।

जब मैं एक पेड़ के बारे में बात करता हूं तो आप सब सहमत होते हैं कि यह एक पेड़ है। लेकिन अगर हम सब सहमत हों तो हम एक खंभे को भी पेड़ कह सकते हैं। कोई भी भाषा अपने अर्थ के आधार पर महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि उसकी अहमियत ध्वनि के आधार पर होती है। जब हम अंग्रेजी भाषा बोलते हैं तो उसकी ध्वनि-सीमा बहुत सीमित होती है।

कोई भी भाषा अपने अर्थ के आधार पर महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि उसकी अहमियत ध्वनि के आधार पर होती है। जब हम अंग्रेजी भाषा बोलते हैं तो उसकी ध्वनि-सीमा बहुत सीमित होती है।
लेकिन जब आप कोई भारतीय भाषा बोलते हैं तो उसकी ध्वन्यात्मक सीमा काफी बड़ी होती है, क्योंकि ये सभी भाषाएं संस्कृत भाषा का ही कमजोर रूप हैं। ध्वनि का पूरा विज्ञान और एक खास रूप व समय से उसका जो संबंध है, वह एक विशेष प्रकार की संभावना को सरल बनाने का ही एक खास तरीका है। आपको समझना होगा कि पिछले कई हजार सालों में इस दुनिया में जितने भी लोगों का जन्म हुआ है, उनका एकमात्र लक्ष्य केवल मुक्ति ही रहा है और ये सारी बातें इसी मूल सिद्धांत की उपज हैं। इसके अलावा सब कुछ दूसरी श्रेणी में आता है, जैसे आपका काम, आपका परिवार, आपकी शादी, यहां तक कि आपकी सेहत भी।

नाम पुकारने से मुक्ति घटित होनी चाहिए

आपका आनंद और आपकी शिक्षा का भी महत्व कम है, एकमात्र लक्ष्य मुक्ति ही है। जीवन को जीते हुए आप जो कुछ भी करते हैं, वह सब कुछ आप बस इसके लिए ही करते हैं, क्योंकि हमारी संस्कृति है ही कुछ इस तरह की। लोग इन सभी पहलुओं में इसीलिए जकड़े हुए हैं, वरना देखा जाए तो इसकी कोई खास अहमियत ही नहीं है।अब हमें आपके बच्चे का नाम ऐसे रखना है कि जितनी बार वह पुकारा जाए, उतनी बार उसमें से कुछ मुक्त होना चाहिए। लेकिन अगर आपने उसका नाम अनिरुद्ध रखा और वह अगर इस देश से बाहर जाता है या अगर इसी देश में रहे तो जब वह बेंगलूर जाएगा तो वहां लोग उसे ऐंडी के नाम से बुलाएंगे। अगर आपने उसका नाम जनक रख दिया तो वहां उसे जैक के नाम से बुलाया जाएगा।

अगर आप मुक्ति की तलाश में हैं तो जो भी नाम आप बोलते हैं या जो आवाज निकालते हैं, वह महत्वपूर्ण हो जाती है।

लड़कों और लड़कियों के नामकरण में भेद

भारतीय समाज में एक लडक़ी के बजाए एक लडक़े के नामकरण में ज्यादा सावधानी बरती जाती थी, लेकिन ऐसा इसलिए नहीं होता था क्योंकि हमारे यहां लडक़ों को ज्यादा महत्व दिया जाता है, बल्कि इसलिए क्योंकि आपको उस लडक़े के साथ रहना है और आपकी मौत होने तक वह आपके पास ही रहेगा।

भारतीय समाज में एक लडक़ी के बजाए एक लडक़े के नामकरण में ज्यादा सावधानी बरती जाती थी, लेकिन ऐसा इसलिए नहीं होता था क्योंकि हमारे यहां लडक़ों को ज्यादा महत्व दिया जाता है।
अब जब आप मर रहे होते हैं और अगर आप अपने बेटे को शिव नाम से बुलाते हैं तो यह सुनने में अच्छा लगता है। और अगर उसका नाम सैम हो तो आप क्या करेंगे? इसी वजह से माता-पिता चिंतित रहते हैं, क्योंकि आमतौर पर बच्चा तो अपना नाम नहीं लेता, लेकिन माता पिता को तो उसका नाम बार-बार लेना ही पड़ता है। लडक़ी के मामले में उन्हें नहीं पता होता कि वे उसे किस नाम से बुलाएं, क्योंकि वे नहीं जानते कि उसका विवाह किससे होगा।

लड़कियों की शादी पर होता था नामकरण

आमतौर पर जब किसी लडक़ी की शादी होती थी तो उसका नाम बदल दिया जाता था। आपको पता है न। आज से लगभग पच्चीस साल पहले तक ज्यादातर महिलाएं विवाह के समय अपने पति के नाम के अनुसार या उसकी विशेषताओं को ध्यान में रखकर और खगोलीय ज्यामिति के हिसाब से अपना नाम बदला करती थीं, लेकिन आजकल इसे अपमानजनक माना जाता है। लडक़ी को लगता है कि मैं अपना नाम क्यों बदलूं। चूंकि अब हर चीज में एक तरह का शोषण होता है इसी कारण हर चीज के लिए एक तरह का प्रतिरोध पैदा हो रहा है। अगर इस प्रक्रिया को सही तरीके से लागू किया जाए तो सभी इसे स्वीकार लेंगे लेकिन जब इसे ठीक तरह से नहीं अपनाया जाता तो यह एक समस्या बन जाती है। इसलिए एक लडक़े का नामकरण एक आवश्यक प्रक्रिया है, क्योंकि आपको उसके साथ रहना है। यह बात अलग है कि अब वे बाहर चले जाते हैं। लेकिन उस दौर में वे आपके मरने तक आपके साथ रहते थे। ऐसे में यह जरूरी था कि आप उन्हें जिस भी नाम से पुकारें, वह आपके परिवार की ज्यामितिय समीकरण में सही बैठे।