सद्‌गुरुहमारा ये ब्लॉग उस नदी पुनरुद्धार नीति सिफारिश दस्तावेज का अंश है, जिसे सद्‌गुरु ने माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को भेंट किया था। दस्तावेज के इस शुरूआती अंश में सद्‌गुरु बता रहे हैं कि हमारी नदियों को राष्ट्रीय कोष के रूप में पहचाने जाने की जरुरत है।

नदियाँ सबसे पुरानी मानव सभ्यताओं का जन्म स्थल रही हैं। चट्टानी इलाकों को काटते हुए उन्होंने अपने मार्ग पर उपजाऊ बाढ़ के मैदान बनाए हैं। नदियों में जैव विविधता की एक विस्तृत श्रृंखला पाई जाती है, इसीलिए नदियों ने दुनिया भर में ‘जीवनदायिनी’ के रूप में एक अलग पहचान बनाई है। भारत की नदियाँ सिर्फ आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण नहीं हैं, बल्कि वे हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत से भी जुड़ी रही हैं।

अगले 15-20 सालों में गंभीर समस्या का सामना करना पड़ सकता है

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पिछले कुछ दशकों में, विभिन्न कारणों जैसे बहुत ज्यादा पानी निकालना, वनों की कटाई, प्वाइंट सोर्स (यानी औद्योगिक सीवेज) और नॉन-प्वाइंट सोर्स (यानी खेती अपवाह) से प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन (बढ़ते तापमान और बदलते वर्षा पैटर्न) की वजह से हमारी नदियों में पानी की मात्रा भयंकर तरीके से कम हो रही है।

नदियों को पुनर्जीवित करने की कोशिश के साथ-साथ नदी के आस-पास के समुदायों की आजीविका में सुधार लाने की भी कोशिश होनी चाहिए। इससे समुदाय में नदी के प्रति गहरा अपनापन पैदा होगा और आर्थिक लाभ सुनिश्चित होंगे
प्रमुख नदियां तेजी से सिकुड़ रही हैं, और कई बारहमासी नदियाँ मौसमी बन गई हैं, यहां तक कि साल के कई महीनों तक वे महासागरों तक नहीं पहुंच पातीं। गोदावरी ऐतिहासिक प्रवाह से लगभग 20% कम हो गई है, कावेरी में 40% की कमी आई है, जबकि कृष्णा और नर्मदा 60% कम हो गई हैं। अनुमान के मुताबिक, 2030 तक हमारे पास अपने गुजर-बसर के लिए आवश्यक पानी का केवल 50% पानी ही उपलब्ध होगा। इसके अलावा, भारत का 25% हिस्सा रेगिस्तान में बदल रहा है। 1947 की तुलना में, आज हमारे पास प्रति व्यक्ति लगभग 25% पानी ही उपलब्ध है। नदियों से कुल सिंचाई के लिए जरुरी पानी की मात्रा का एक-तिहाई हिस्सा और देश के पीने के पानी की जरूरतों का 20% हिस्सा प्राप्त होता है। भूजल और अन्य जल निकाय/संसाधन जो कि हमारी बाकी पानी की जरूरतों को पूरा करते हैं, देश भर में पहले से ही बहुत ज्यादा दबाव में हैं, और हम एक खतरनाक दर से उनका अति उपयोग कर रहे हैं। भारत के 32 प्रमुख शहरों में से 22 को हर दिन पानी की कमी का सामना करना पड़ता है। भारत में आज की पीढ़ी के लिए पानी की कमी और सूखा एक वास्तविकता बन गई है। अगर पानी की आपूर्ति बढ़ाने और हमारे जल संसाधनों का शोषण कम करने को प्राथमिकता देते हुए कार्रवाई शुरू नहीं की जाती है, तो पंद्रह से बीस साल के समय में देश को गंभीर जल और खाद्य संकट का सामना करना पड़ सकता है।

एक व्यापक नीति बनाने की जरुरत है

इस संकट को पहचानते हुए, सरकार ने नदियों की स्थिति में सुधार के लिए नमामी गंगे और नमामी देवी नर्मदा जैसे कार्यक्रम शुरू किए हैं। हालांकि, अब बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप की जरुरत है, जिससे हमारे नदी पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा की जा सके और उन्हें पुनर्जीवित किया जा सके। मौजूदा स्थिति को देखते हुए, एक समग्र नीति ढांचा बनाने की जरूरत है, जो नदी के पुनर्जीवन पर ध्यान केंद्रित करे, और जो स्रोतों की वृद्धि और नदियों के संरक्षण को एक सूत्र में बांधे। ऐसा राष्ट्रीय स्तर और राज्यसरकार – दोनों ही स्तरों पर होने की जरूरत है।
इसके अलावा, नदियों को पुनर्जीवित करने की कोशिश के साथ-साथ नदी के आस-पास के समुदायों की आजीविका में सुधार लाने की भी कोशिश होनी चाहिए। इससे समुदाय में नदी के प्रति गहरा अपनापन पैदा होगा और आर्थिक लाभ सुनिश्चित होंगे, जिससे आगे चलकर नदी का प्रभावशाली ढंग से सुरक्षा व संरक्षण हो पाएगा।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, भारत संयुक्त राष्ट्र के टिकाऊ विकास लक्ष्यों यानी सस्टैनेबल डिवेलप्मन्ट गोल्स (एसडीजी) 2030 के लिए प्रतिबद्ध है, जो ‘सभी को साथ लेकर चलने’ को महत्व देते हैं। हमारी नदियों को पुनर्जीवित करने और नदी के किनारे के किसानों और समुदायों की आजीविका बढ़ाने के लिए बनाया गया एक समग्र नीति ढांचा भारत को एसडीजी 6 (स्वच्छ जल और स्वच्छता), लक्ष्य 15 (भूमि पर जीवन) और लक्ष्य 13 (जलवायु कार्य) को प्राप्त करने में मदद करेगा। इसके अलावा अन्य टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एसडीजी) पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा - विशेष रूप से लक्ष्य 1 (गरीबी), लक्ष्य 2 (कोई भूखा नहीं), लक्ष्य 3 (अच्छा स्वास्थ्य और खुशहाली), लक्ष्य 8 (शिष्ट कार्य और आर्थिक विकास), लक्ष्य 9 (उद्योग, नई खोज और बुनियादी ढांचे), लक्ष्य 10 (असमानता में कमी), लक्ष्य 11 (टिकाऊ शहर और समुदाय) और लक्ष्य 12 (टिकाऊ उत्पादन और उपभोग)।

नदियों को राष्ट्रीय कोष की पहचान मिलनी चाहिए

नदियों को ‘राष्ट्रीय कोष’ के रूप में पहचाना जाना चाहिए। नदियों की सुरक्षा में दो चीज़ें शामिल होनी चाहिएं: क) पूर्ण पारिस्थितिकी या इकोलॉजिकल/पर्यावरण प्रवाह सुनिश्चित करना; और ख) जीन पूल की रक्षा करने वाले पानी की जैविक, रासायनिक और भौतिक विशेषताओं को संरक्षित करना। नदियों को भारत के विकास एजेंडे में उचित स्थान दिए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि वे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से एक बड़ी आबादी के जीवन का सहारा हैं। इसलिए हमारी नदियों को संरक्षित करने और पुनर्जीवित करने की मांग सर्वोपरि है। नदियों को पुनर्जीवित करने और समुदायों की आजीविका को सुरक्षित करने के लिए गहन शोध और रिमोट सेंसिंग/जीआईएस, और डेटा विश्लेषण जैसी उपयुक्त नवीनतम प्रौद्योगिकियों के उपयोग से मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।

नदियों के किनारे पेड़ लगाने होंगे

नदियों के किनारे पेड़ लगाकर सूखती नदियों का पुनरोद्धार संभव है। प्रस्तावित समाधान और नीति सिफारिश में नदी के दोनों ओर, नदी की पूरी लंबाई में, कम से कम 1 किलोमीटर की चौड़ाई में पेड़ लगाने का सुझाव दिया गया है।

प्रस्तावित नीति सिफारिश वास्तव में एक आर्थिक कार्यक्रम है, जिसका इकोलॉजिकल यानी पारिस्थितिकीय परिणाम लाभकारी होगा। यह प्रस्ताव मुख्य रूप से नदी की स्थिति को सुधारेगा और साथ ही नदी के आस-पास बसे किसानों की आय में बढ़ोतरी लाएगा
नदी के दोनों ओर की पूरी सार्वजनिक भूमि को देशी और स्थानीय पेड़ प्रजातियों से पूरी तरह जंगल में परिवर्तित किया जाना चाहिए। नदी के तटवर्ती खेतों में नदी के दोनों ओर एक किलोमीटर की न्यूनतम चौड़ाई में अलग अलग तरह के पेड़ लगाए जाने चाहिए। नदी के दोनों ओर के खेतों में एग्रो फॉरेस्ट्री (बाग-बगीचे) करने के लिए, लक्ष्य क्षेत्र के भीतर आने वाले सभी गांवों को शामिल करने का सुझाव दिया गया है। लक्ष्य क्षेत्र नदी से कम से कम 1 किलोमीटर की दूरी का क्षेत्र है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि एक गांव एक इकाई के रूप में कार्य करेगा, और इस प्रकार संविधान का 73वां संशोधन, जो ग्राम पंचायत को स्व-शासन की सबसे विकेन्द्रित इकाई के रूप में सशक्त बनाता है, लागू किया जा सकेगा।

एक आर्थिक कार्यक्रम, जो पर्यावरण को लाभ पहुंचाएगा

प्रस्तावित नीति सिफारिश वास्तव में एक आर्थिक कार्यक्रम है, जिसका इकोलॉजिकल यानी पारिस्थितिकीय परिणाम लाभकारी होगा। यह प्रस्ताव मुख्य रूप से नदी की स्थिति को सुधारेगा और साथ ही नदी के आस-पास बसे किसानों की आय में बढ़ोतरी लाएगा, सामाजिक समावेश को मजबूत करेगा, पर्यावरणीय स्थिरता को आगे बढ़ाएगा, और पर्याप्त पानी तक पहुंच की अंतर-पीढ़ीगत समानता को सुनिश्चित करेगा। यह राष्ट्रीय जल नीति 2012, राष्ट्रीय पर्यावरण नीति 2006, राष्ट्रीय कृषिवानिकी (एग्रो फॉरेस्ट्री) नीति 2014 और किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति 2007 के पहलुओं को अपनाते हुए एक ‘जनकेंद्रित’ दृष्टिकोण के साथ एक सुसंगत रूपरेखा प्रदान करता है। यह नीति सरकारी योजनाओं जैसे एमजीएनआरईजीए; परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई); प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई); जलवायु प्रत्यास्थी कृषि पर राष्ट्रीय पहल; स्थायी कृषि पर राष्ट्रीय मिशन (एनएमएसए); ग्रीन इंडिया मिशन (जीआईएम); स्किल इंडिया मिशन / प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई); प्रधान मंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (पीएमजीडीएसए); मुद्रा योजना; और अन्य योजनाओं के साथ संयोजन को भी प्रोत्साहित करता है।
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