पिछले ब्लॉग में अपने पढ़ा शांतनु और सत्यवती के मिलन के बारे में, जानते हैं इसका कुरु वंश पर क्या प्रभाव पड़ा...

महाभारत की कहानी में प्रतिशोध यानी बदले की भावना की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लेकिन द्रौपदी के प्रतिशोध से भी पहले एक और स्त्री थी जिसके दिल में प्रतिशोध की आग लगी हुई थी। कौन थी वह और किससे लेना चाहती थी वह प्रतिशोध?


सद्‌गुरुशांतनु और सत्यवती के दो बच्चे हुए। बड़े पुत्र का नाम चित्रांगद और दूसरे का विचित्रवीर्य पड़ा। चित्रांगद एक अहंकारी युवक था। एक दिन वह वन में गया। एक गंधर्व, जो असाधारण क्षमताओं वाला प्राणी होता है, कहीं से वहां आया। उसका भी नाम चित्रांगद था। जब गंधर्व ने युवक से उसका नाम पूछा, तो युवक ने गर्व से कहा, ‘मेरा नाम चित्रांगद है।’ गंधर्व हंसने लगा और बोला, ‘तुम्हें खुद को चित्रांगद बुलाने का साहस कैसे हुआ? चित्रांगद मैं हूं, यह मेरा नाम है। तुम यह नाम धारण करने के लायक नहीं हो। बेहतर होगा कि तुम इसे बदल लो।’ राजकुमार तैश में आकर बोला, ‘तुम्हारी ऐसा कहने की हिम्मत कैसे हुई? लगता है तुम बहुत जी लिए, मेरे पिता ने मेरा नाम चित्रांगद रखा है, यह मेरा नाम है। चलो हम युद्ध लड़कर इसे तय करते हैं।’ दोनों में लड़ाई हुई और एक पल में राजकुमार की मृत्यु हो गई।

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एक विचित्र राजकुमार

अब शांतनु का सिर्फ एक पुत्र, विचित्रवीर्य बचा था। विचित्र का मतलब है, अजीब या असामान्य और वीर्य का मतलब है, पौरुष। उसके नाम का मतलब है कि वह एक विचित्र पौरुष का स्वामी था। हम नहीं जानते कि इसका असली अर्थ क्या है। कि वह विवाह के अयोग्य था या अनिच्छुक। उन दिनों का विवाह, हमें आज के सन्दर्भ में नहीं देखना चाहिए। उस समय विवाह करना और बच्चे पैदा करना सबसे महत्वपूर्ण होता था। राजा होने के नाते उसके घर में पुत्र होना जरूरी था क्योंकि ऐसा न होने पर उसका उत्तराधिकारी कौन होता? जब आप युद्ध में जाते हैं, तो किसी भी दिन आप मारे जा सकते हैं। इसलिए, सही उम्र में विवाह करके पुत्र पैदा करना बहुत जरूरी था। वरना आपका सारा साम्राज्य तहस-नहस हो सकता था।

चित्रांगद की मृत्यु हो चुकी थी और विचित्रवीर्य विवाह नहीं करना चाहता था। भीष्म भी विवाह न करने का प्रण ले चुके थे। कुरु वंश में ठहराव आ चुका था और वह आगे नहीं बढ़ रहा था। भीष्म अपने पूरे जीवन राजा बने बिना, राज्य के प्रतिनिधि बन कर रहे और उन्होंने हर किसी का, हर चीज का ध्यान रखा। एक दिन, काशी के राजा ने अपनी तीनों बेटियों के स्वयंवर की घोषणा की। हालांकि कुरु वंश उस इलाके का सबसे बड़ा और सबसे गौरवशाली वंश था, मगर काशी के राजा ने उन्हें न्यौता नहीं भेजा। वह नहीं चाहता था कि उसकी बेटियां‍ विचित्रवीर्य से विवाह करें, जिसके पौरुष को लेकर अफवाहें फैली हुई थीं।

इस अपमान से भीष्म गुस्से से आगबबूला हो गए। वह अपने या किसी और के हित से अधिक अपने राज्य और कुरुवंश के प्रति निष्ठावान थे। इस बेइज्जती का बदला लेने के लिए, वह स्वयंवर में गए। स्वयंवर में युवतियों को अपना भाग्य खुद चुनने की आजादी दी जाती थी। जब कोई राजकुमारी विवाह योग्य अवस्था में पहुंचती थी, तो एक समारोह आयोजित किया जाता था, जिसमें विवाह के योग्य क्षत्रिय भाग लेते थे। समाज के योद्धा वर्ग को क्षत्रिय कहा जाता था।

भीष्म ने किया अपहरण

स्वयंवर में सिर्फ राजा और योद्धा वर्ग के सदस्य ही भाग ले सकते थे। युवतियां या राजकुमारियां अपने पति स्वयं चुन सकती थीं, कोई उसमें हस्तक्षेप नहीं करता था। काशी में तीन बहनों – अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका के लिए स्वयंवर आयोजित किया गया था, जिनकी उम्र 18, 17 और 15 वर्ष की थी। अम्बा पहले से शाल्व राज्य के राजा साल्व से प्रेम करती थी। स्वयंवर में उसके पास मौका था कि वह उसे अपने पति रूप में चुन सकती थी। वह सबसे बड़ी राजकुमारी थी इसलिए उसे चुनने का पहला मौका मिला। स्वयंवर में पति चुनने का एक सरल तरीका यह था कि युवती हाथ में वरमाला लेकर सभी उम्मीदवारों पर नजर डालती थी और फिर जिसे पति रूप में चुनती थी, उसके गले में माला डाल देती थी। अम्बा ने साल्व के पास जाकर उसके गले में वरमाला डाल दी।

इसी समय भीष्म ने स्वयंवर में प्रवेश किया। वहां मौजूद दूसरे योद्धा उनसे डरते थे क्योंकि वह एक महान योद्धा थे। साथ ही, वे यह भी जानते थे कि भीष्म ने खुद को संतानोत्पत्ति के अयोग्य बना लिया है और कभी विवाह न करने का प्रण ले चुके हैं। इसलिए उन्होंने भीष्म का उपहास किया, ‘अब यह बूढ़ा यहां क्या करने आया है? क्या इसे दुल्हन की तलाश है? क्या कुरु वंश में ऐसा कोई योद्धा नहीं बच गया है, जो विवाह कर सके? क्या यह इसलिए यहां आया है?’ भीष्म अपने वंश की खिल्ली उड़ाए जाने से गुस्से में आ गए। उन्होंने तीनों युवतियों का अपहरण करने का फैसला किया। बाकी योद्धाओं और उनके बीच युद्ध छिड़ गया, मगर भीष्म ने उन सब को हरा दिया। साल्व ने अपनी दुल्हन के लिए युद्ध किया, मगर भीष्म ने उसे हराकर उसका अपमान किया। फिर वह जबरन तीनों युवतियों को लेकर चले गए।

अम्बा की दुविधा

पिछली पीढ़ियों से अब तक ये बदलाव आ गया था। पहले स्त्रियाँ नियम तय कर सकती थी। अब स्त्री को जबरदस्ती ले जाया जा रहा था। अम्बा आंसुओं में डूबी हुई थी। कुरु राज्य की राजधानी हस्तिनापुर जाने के रास्ते में उसने भीष्म से कहा, ‘आपने यह क्या किया? मैं साल्व से प्रेम करती थी और मैंने उनके गले में वरमाला भी डाल दी थी। वह मेरे पति बन चुके हैं। आप जबरन मुझे नहीं ले जा सकते।’ भीष्म बोले, ‘मैं तुम्हारा अपहरण कर चुका हूं। जो भी चीज मेरे कब्जे में होती है, उस पर कुरुवंश का अधिकार है।’ अम्बा ने पूछा, ‘क्या आप मुझसे विवाह करेंगे?’ वह बोले, ‘मैं नहीं, विचित्रवीर्य से तुम्हारा विवाह होगा।’ विचित्रवीर्य ने अम्बिका और अम्बालिका से विवाह कर लिया मगर उसने यह कहते हुए अम्बा को ठुकरा दिया कि ‘इसने किसी और के गले में वरमाला डाल दी थी और उसे अपना दिल दे दिया था, इसलिए मैं इससे विवाह नहीं कर सकता।’

अम्बा ने पूछा, ‘अब मैं क्या करूं?’ भीष्म ने कहा, ‘मुझे क्षमा कर दो। तुम साल्व के पास वापस चली जाओ।’ वह खुशी-खुशी वापस चली गई। मगर वापस जाने पर उसे झटका लगा। साल्व ने कहा, ‘मैं किसी से दान नहीं लेता। मैं वह युद्ध हार गया था। उस बूढ़े भीष्म ने मुझे हरा दिया था। अब वह दुल्हन के रूप में मुझे दान देने की कोशिश कर रहा है। मैं तुम्हें नहीं अपना सकता। वापस जाओ और विचित्रवीर्य से विवाह कर लो।’ ‘नहीं, उसने मुझसे विवाह करने से इंकार कर दिया है।’ ‘फिर भीष्म से विवाह कर लो। मैं अब तुम्हें नहीं अपना सकता क्योंकि मैं किसी से दान नहीं ले सकता।’

यहां से भी ठुकराए जाने पर, वह हस्तिनापुर वापस चली गई। उसने भीष्म से प्रार्थना की, ‘आपने मेरा जीवन नष्ट कर दिया। आपकी वजह से मैंने उस इंसान को खो दिया, जिससे मैं प्रेम करती थी। आप जबरन मुझे यहां लेकर आए। यहां मुझे जिससे विवाह करना था, वह मुझसे विवाह नहीं करना चाहता। यह सब क्या है? अब आपको मुझसे विवाह करना होगा।’ भीष्म बोले, ‘मैं अपने राज्य के प्रति निष्ठावान हूं। मैंने वचन दिया है कि मैं विवाह नहीं करूंगा, अब मैं ऐसा नहीं कर सकता।’

आगे जारी...