यह माना जाता है कि विश्व में धर्म को स्थापित करने के लिए कृष्ण ने अवतार लिया था। भगवद गीता में भी कृष्ण अर्जुन को स्व-धर्म की याद दिलाते हैं। आइये जानते हैं कि कृष्ण किसे सच्चा धर्म मानते हैं...

 

कृष्ण ने विनम्र इंसान के धर्म को कायरता कहा ; जबकि ईसा का कहना है, 'विनम्र इंसान धन्य हैं। यह धरती उन्हें मिलेगी।‘

कृष्ण और ईसा की बातों में यह अंतर क्यों है ?

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सद्गुरुकृष्ण ने धर्म की स्थापना करने के लिए अपना सारा जीवन लगा दिया। काफी चीजें वैसे ही हुईं जैसी वे चाहते थे, और कुछ हद तक उन्होंने हालातों को अपनी इच्छानुसार भी बनाया। लेकिन कुछ बातें ऐसी भी थीं, जो उनकी मर्जी के खिलाफ हुईं और लोगों ने अपनी सोच के मुताबिक धर्म का सही-गलत मतलब निकालना शुरू कर दिया।

एक बार ऐसा हुआ कि कृष्ण कुछ लोगों से मिले और उनसे धर्म के बारे में उनकी राय जाननी चाही। उनमें से हर एक ने उन्हें बताया कि उसके लिए धर्म का क्या मतलब है।

एक आदमी पवित्रता की निशानियां धारण किए हुए आया और बोला, 'मैं पवित्र इंसान हूं और पाप के रास्ते से बहुत दूर हूं। मैंने न तो कभी किसी की हत्या की है और न ही कभी कुछ चुराया है। मैं किसी तरह के पाप कर्मों में भागीदार नहीं रहा हूं। मैं हमेशा नेक रास्ते पर चला हूं। मैं भगवान से डरता हूं।’

कृष्ण बोले, 'मैं जानता हूं कि तुम्हारा धर्म डर से पैदा हुआ है। तुम धार्मिक नहीं हो, तुम जा सकते हो।’

इसके बाद एक विनम्र सा दिखने वाला व्यक्ति आया और बोला, 'मैं शांत और संतोषी स्वभाव का दीन व्यक्ति हूं। मैं बिना विरोध किए किसी भी दुख को हंसकर सह लेता हूं।

किसी भी शिक्षा या ज्ञान का एक पहलू ऐसा होता है, जिसकी प्रकृति शाश्वत होती है। उस पहलू के बारे जो भी बात करेगा, एक ही तरह से करेगा। लेकिन शिक्षा या ज्ञान का एक दूसरा पहलू भी होता है जिसका संदर्भ उन लोगों के लिए होता है, जो उस समय वहां उपस्थित होते हैं।
मैं भूख, प्यास, ठंड और यहां तक कि दुर्भाग्य को भी बर्दाश्त कर लेता हूं।’ कृष्ण बोले, तुम्हारा धर्म एक गुलाम मानसिकता से जन्मा है। तुम अपने अंदर मौजूद ईश्वर को नहीं जानते। तुम्हें धर्म का ज्ञान नहीं।’ यह कह कर कृष्ण ने उस विनम्र आदमी को भी जाने दिया।

एक संत दिखने वाला आदमी कृष्ण के पास आया और बोला, 'मेरा धर्म विवेक का धर्म है। मैं संतों की वाणी का जीवन में पालन करता हूं - बुराई का विरोध न करना, मौन रह कर तकलीफ झेलना। मुझे ईश्वर के दरबार में जगह मिलेगी।’ उसकी बात सुनकर कृष्ण बोले, ‘तुम्हारा धर्म कर्महीनता से जन्मा है। तुम धार्मिक नहीं हो।’ फिर वह भी चला गया।

एक बात आपको हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए कि मैं कृष्ण के जीवन की सभी कहानियों को इसलिए विस्तार से सुना रहा हूं, ताकि आप कृष्ण को सही संदर्भ में देख सकें और समझ सकें। यह हमेशा बहुत महत्वपूर्ण होता है कि हम उस समाज की, जिसमें वो लोग रहते थे, हकीकत और हालात को समझें, तभी हम समझ पाएंगे कि जो कुछ उन्होंने कहा, वो क्यों कहा।

किसी भी शिक्षा या ज्ञान का एक पहलू ऐसा होता है, जिसकी प्रकृति शाश्वत होती है। उस पहलू के बारे जो भी बात करेगा, एक ही तरह से करेगा। लेकिन शिक्षा या ज्ञान का एक दूसरा पहलू भी होता है जिसका संदर्भ उन लोगों के लिए होता है, जो उस समय वहां उपस्थित होते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी इसका संदर्भ बदलता है और इसलिए इसकी प्रासंगिकता भी बदलती रहती है। इतना ही नहीं, हर समाज के लिए, हर समुदाय के लिए, यहां तक कि हर इंसान के लिए इसकी प्रासंगिकता बदल जाती है, इसके मायने बदल जाते हैं। हर किसी के लिए यह एक अलग तरह का सत्य होता है।

ईसा ने अपने शिष्यों से कहा था - 'जब तुम मेरे संदेश को लेकर दूसरों के पास जाओगे और लोग तुम्हे एक गाल पर थप्पड़ मारें तो तुम अपना दूसरा गाल भी आगे कर देना।’ लेकिन यह सीख आप सब के लिए नहीं है।
तो अगर हम कृष्ण या ईसा की शिक्षाओं के इस पहलू को समझना चाहते हैं तो हमें उनके समय के सामाजिक माहौल और स्थिति को समझना और उसके साथ अपनी सामाजिक परिस्थितियों को जोडक़र देखना होगा, जिनमें हम आज जी रहे हैं।

ईसा ने विनम्र होने की बात कही थी। उन्होंने कहा था, 'अगर कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे तो तुम दूसरा गाल भी आगे कर दो।’

दरअसल, यह बात उन्होंने अपनी बेहद नजदीकी शिष्यों से उस वक्त कही थी, जब वे उनके संदेशों को आम लोगों के बीच फैलाने जा रहे थे। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा था - 'जब तुम मेरे संदेश को लेकर दूसरों के पास जाओगे और लोग तुम्हे एक गाल पर थप्पड़ मारें तो तुम अपना दूसरा गाल भी आगे कर देना।’ लेकिन यह सीख आप सब के लिए नहीं है। क्या आप इस शिक्षा का पालन करते हुए जिंदगी चला सकते हैं? आप में से ऐसे कितने लोग हैं जो अपने जीवन में ऐसा कर सकते हैं? आप यह कर ही नहीं सकते।


Image courtesy: Christ