प्रश्न: सद्‌गुरु, एक बार मैं कार-एक्सीडेंट में महज़ कुछ सैकंड के अंतर से मौत के मुँह में जाते-जाते बचा। उन कुछ सैकेंड के दौरान मैंने हर चीज को धीमी गति से और विस्तार के साथ घटित होते देखा। उन क्षणों में ऐसा क्यों हुआ और क्या मैं जीवन को उसी विस्तार से सचेतन रूप में देख सकता हूँ?

सद्‌गुरु: एक बार ऐसा हुआ - इंडियाना के एक छोटे से शहर में, दो बूढ़े लोग एक स्थानीय बार में मिले। वे दोनों अलग-अलग मेजों पर दुखी बैठे पी रहे थे। तभी उनमें से एक ने, दूसरे के माथे पर एक जन्मजात निशान देखा। उसने उसे देखा और कहा, ‘तुम जोशुआ हो?’ ‘हम्म! तुम कौन हो?’ दूसरे ने पूछा। ‘तुम नहीं जानते। मैं मार्क हूँ। हम दूसरे विश्व युद्ध में एक साथ थे।’ ‘हे भगवान! हम उस युद्ध में एक साथ थे। इस बात को पचास साल हो गए हैं।’ फिर वे एक ही मेज पर बैठ कर बातें करते हुए, खाने-पीने लगे। उन्होंने यूरोप में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सिर्फ चालीस मिनट का युद्ध देखा था। वे दो घंटों तक उन्हीं चालीस मिनटों की बातें करते रहे। जब वे बातें कर चुके तो एक ने दूसरे से पूछा, ‘उसके बाद से तुम क्या कर रहे हो?’ दूसरे ने कहा, ‘ओह मैं तो एक सेल्समैन हूँ।’

सिर्फ मृत्यु का सामना होने पर जीवंतता आती है

उसने चालीस मिनट की लड़ाई के बारे में दो घंटे तक बात की और अपने जीवन के चालीस सालों को केवल एक वाक्य में समेट दिया। बस यही हो रहा है। बदकिस्मती से, तकरीबन लोग तभी जीवित महसूस करते हैं जब उनका सामा मृत्यु से होता है। फिर चाहे वह लड़ाई में होने वाली मौत हो या फिर कार में एक्सीडेंट से होने वाली मौत। जब आपके सामने मौत नाचती है तब आप जीवंत हो उठते हैं - कैसी बदकिस्मती है! जब आप सही मायनों में अपने नश्वर स्वभाव का सामना करते हैं, तो आपको समझ आता है कि आपका जिंदा रहना ही सबसे अहम बात है।

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जब मैं लोगों को देखता हूँ, लगता है कि वे सब कब्र में जाने का अभ्यास कर रहे हैं - कब्र में उनकी मुद्रा कैसी होनी चाहिए, चेहरे के भाव कैसे हों, बस इसी का अभ्यास करते रह जाते हैं। वे यह नहीं समझते कि वे नश्वर हैं।

उस दिन जब आपकी ये रचना टूटी थी, जब आप केवल हालात के खतरे की वजह से भाव या विचार पैदा नहीं कर पाए, ठीक उसी समय आपको सही मायने में अपने जिंदा होने का एहसास हुआ था। 
उन्हें लगता है कि वे हमेशा जीवित रहने वाले हैं। वे जीवित अवस्था में ही मरने का अभ्यास करते रहते हैं। पर जब आप उन्हें मौत की धमकी देते हैं तो वे जीवंत हो उठते हैं। आपको क्या लगता है, कृष्ण ने रणक्षेत्र में अपना उपदेश क्यों दिया? उन्होंने किसी एकांत आश्रम, भारत के किसी सुंदर जंगल या हिमालय की गुफा की बजाए भयंकर युद्ध भूमि को इसलिए चुना क्योंकि जब तक लोगों को उनके नश्वर होने का एहसास न हो उनमें जीवन की ओर देखने की बुद्धि ही नहीं होती।

मुझे लगता है कि जब ये अपने-आप चलने वाली कारें आ जाएँगी तो बहुत से लोगों को आत्म-ज्ञान हो सकता है! हो सकता है कि आपको कुछ समय बाद उसमें सोने का अभ्यास हो जाए पर पहले तो यही लगता रहेगा कि वह अपने-आप रुकेगी भी या नहीं, या कहीं टक्कर हो जाएगी। आपको पता नहीं होगा कि वो समय पर रुकेगी या टक्कर कर देगी। मुझे लगता है कि जब इन कारों को कानूनी मान्यता मिलेगी तो उसके शुरुआती कुछ महीनों में इस ग्रह पर कुछ लोगों को आत्म-ज्ञान होगा! हमें उन आत्मज्ञानियों के स्वागत के लिए तैयार रहना चाहिए।

खतरे के समय विचार और भाव शून्य हो गए

किसी कार दुर्घटना की प्रतीक्षा न करें। आपको पता होना चाहिए कि आप किसी भी क्षण मर सकते हैं। मैं आपके लिए ऐसी आशा नहीं करता। मैं आपके लंबे जीवन की कामना करता हूँ, पर ऐसा हो सकता है। हर रोज दुनिया में जाने कितने लोग ऐसे ही मर रहे हैं। चलते-फिरते, बैठे हुए, सोते हुए - लोग अलग-अलग मुद्राओं में जान गँवा रहे हैं।

जब आपको एहसास होगा कि आप भी मर सकते हैं, तो अचानक आप अपने जीवन का मोल करने लगेंगे। इसके प्रति जीवंत होंगे। मैं लोगों को यकीन दिलाता रहता हूँ कि आप इस जीवन में फ़ेल नहीं हो सकते, हर कोई पास हो जाएगा। आपने किसी ऐसे इंसान को नहीं देखा होगा जिसे सही तरह से न जीने की वजह से रोक लिया गया हो। सब पास होकर चले जाते हैं। लेकिन अधिकतर लोगों को यह एहसास तक नहीं होता की वे किस चीज़ से गुज़र रहे हैं। जब आपका एक्सीडेंट हुआ था तो उन कुछ क्षणों में आप जानते थे कि आप किस चीज़ से गुज़र रहे हैं। बाकी समय में आपको इस बात का एहसास नहीं होता। अभी, आपके दिमाग में चल रहा तमाशा, हर दूसरी चीज पर हावी है।

आपकी अपनी रचना, इस सृष्टि की अद्भुत रचना को ढंके हुए है। उस दिन जब आपकी ये रचना टूटी थी, जब आप केवल हालात के खतरे की वजह से भाव या विचार पैदा नहीं कर पाए, ठीक उसी समय आपको सही मायने में अपने जिंदा होने का एहसास हुआ था। हम आपको योग सिखा रहे हैं, आपको कई तरह की प्रक्रियाओं में दीक्षित किया जा रहा है ताकि आपको अपने तमाशे से दूर करने में मदद कर सकें। तभी आपको इस सृष्टि में चल रही घटनाओं का बोध होगा। अगर ऐसा नहीं होता तो इस जीवन में कुछ नहीं है।