कायरों और निकम्मों के लिए नहीं है अध्यात्म
अध्यात्म को लेकर समाज में एक आम धारणा यह हो गई है कि यह उन लोगों का काम है जिन्हें कोई और काम नहीं है, या जो कुछ और नहीं कर सकते। कितनी सही है यह धारणा आइए एक बार सद्गुरु की दृष्टि से इसे देखते हैं:
अध्यात्म को लेकर समाज में एक आम धारणा यह हो गई है कि यह उन लोगों का काम है जिन्हें कोई और काम नहीं है, या जो कुछ और नहीं कर सकते। कितनी सही है यह धारणा आइए एक बार सद्गुरु की दृष्टि से इसे देखते हैं:
अध्यात्म कायरों और निकम्मों के लिए नहीं है। आप अपने जीवन में कुछ और नहीं कर सकते और सोचते हैं कि मैं आध्यात्मिक हो सकता हूं, तो यह संभव नहीं है।
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दो तरह के भिखारी
दो तरह के भिखारी होते हैं। गौतम बुद्ध व उस स्तर के लोग उच्चतम श्रेणी के भिखारी हैं। दूसरे सभी निपट भिखारी हैं। मैं तो कहूंगा कि एक सड़क का भिखारी और राजगद्दी पर बैठा हुआ राजा दोनों ही भिखारी हैं, क्योंकि वे हर वक्त बाहर से कुछ मांग रहे होते हैं। सड़क का भिखारी हो सकता है कि पैसा, भोजन या आश्रय मांग रहा हो। जबकि राजा हो सकता है कि किसी दूसरे राज्य पर विजय, खुशी या कुछ इस तरह की बेकार की चीजें मांग रहा हो। क्या आपने गौर किया है कि हर व्यक्ति किसी न किसी चीज की भीख मांग रहा है? गौतम बुद्ध ने केवल अपने भोजन के लिए भिक्षा मांगी, शेष चीजों के लिए वे आत्मनिर्भर थे। जबकि दूसरे सभी लोग भोजन को छोड़ बाकी सभी चीजों के लिए भीख मांगते हैं। दूसरी ओर एक आध्यात्मिक इंसान केवल भोजन के लिए भिक्षा मांगता है, बाकी सभी चीजें अपने भीतर से अर्जित करता है। अगर वह चाहे तो वह अपना भोजन भी कमा सकता है।
क्या है परम मुक्ति?
आध्यात्मिक होने का अर्थ है - अपने भीतर सम्राट होना। होने या जीने का यही एकमात्र तरीका है। क्या होने या जीने का कोई दूसरा तरीका भी है? कोई व्यक्ति अपनी पूरी चेतना में क्या किसी ऐसे जीवन का चुनाव करेगा, जहां उसे कोई चीज किसी और से मांगनी पड़े?
क्या आप बांटते हैं या लेन-देन करते हैं?
एक बार जब किसी के साथ ऐसा हो जाए, तो फिर उसका जीवन बिलकुल अलग ढंग का हो जाता है। एक बार जब इंसान में कोई लालसा नहीं रह जाती, कोई भीतरी जरूरत नहीं रह जाती, केवल तभी वह जान पाता है कि प्रेम क्या है; आनंद क्या है या वास्तव में बांटने का मतलब क्या होता है। जो लोग इस बांटने के आनंद को खो चुके हैं, वे केवल लेन-देन करना जानते हैं। अधिकतर लोग केवल लेन-देन से परिचित हैं, ’तुम मुझे यह दो, मैं तुम्हें वह दूंगा!’ यह बांटना नहीं है। अधिकांश रिश्ते बांटने के संबंध में नहीं हैं, वे केवल लेन-देन के संबंध में हैं - अपना पैसा, अपना शरीर, अपनी भावनाएं। जबकि सही मायनों में बांटना वह है, जहां यह भाव हो कि ’तुम्हें मुझको कुछ भी देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मैं तुम से कुछ भी नहीं चाहता हूं, फिर भी मैं तुम्हारे साथ यह बांटना चाहूंगा।’ पूरा जीवन इस लेन-देन में बिताना भले ही आरामदायक हो, लेकिन यह कमजोरों का मार्ग है।
ज्ञान और भक्ति में अंतर
अगर आप ईश्वर से मिलना चाहते हैं, तो कमजोरी वह पहली चीज है, जिसे आपको छोड़ना होगा। अगर आप उससे मिलना चाहते हैं, तो बेहतर होगा कि उसकी शर्तों पर मिला जाए। वो एक निपट भिखारी से मिलने नहीं आने वाला। आप या तो उससे उसकी शर्तों पर मिलें या बस विसर्जित हो जाएं, बस यही दो रास्तें हैं। ज्ञान और भक्ति का अर्थ बस यही है। भक्ति का अर्थ है कि आप खुद को शून्य बना लेते हैं, फिर आप ईश्वर से मिलते हैं। ज्ञान का अर्थ है कि आप उनसे उनकी शर्तों पर मिलते हैं। आप असीम हो जाते हैं अन्यथा मिलने की कोई संभावना नहीं है।
देखने में प्रेम या भक्ति का मार्ग बहुत ही आसान लगता है। यह आसान है भी, लेकिन इस मार्ग पर ज्ञान मार्ग की अपेक्षा कहीं ज्यादा गड्ढे हैं, जिनमें गिरने का खतरा बना रहता है। ज्ञान मार्ग पर आपको यह पता होता है कि आप कहां जा रहे हैं। अगर इस राह पर आप गिरते हैं तो आपको पता चल जाता है। भक्ति में कुछ पता नहीं चलेगा। अगर आप किसी गड्ढे में गिर जाएंगे, तब भी आपको इसका अहसास नहीं होगा। यह ऐसा ही मार्ग है। आप अपने बनाए भ्रमों के जाल में फंसे होते हैं, लेकिन आपको पता नहीं चलता। ज्ञान में ऐसा नहीं है।
जैसा हम सोचते हैं, वैसा ही हम बन जाते हैं। आपके लिए जो चीज सबसे अहम है, आपकी सारी ऊर्जा अपने आप उसी तरफ मुड़ जाती है। जैसे एक शराबी हमेशा इसकी बात करता है कि कौन ज्यादा पी सकता है। इसलिए स्वभावतः उनका पूरा जीवन उसी बारे में होता है। इंद्रियों के सुख के पीछे भागने वाले लोग सोचते हैं कि कौन ज्यादा मजे कर सकता है। जो लोग पैसे के पीछे पड़े हुए हैं, वे ज्यादा से ज्यादा पैसे के बारे में सोच रहे होते हैं, ऐसे में उनकी ऊर्जा भी उसी तरफ जाती है। ठीक इसी तरह जो अध्यात्म मार्ग पर चलना चाहता है, उसे अपने मन में इसे वैसा ही बनाना होगा, कि यही सर्वोच्च है। उसे सोचना होगा कि ’यही पहली और अंतिम चीज है, जो मैं अपने जीवन में चाहता हूं।’ फिर स्वभावतः उसकी पूरी ऊर्जा उसी दिशा में जाएगी। केवल तभी आपके जीवन में यह पल-पल का संघर्ष खत्म होगा और खुद को सुधारने के लिए आपको मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।