सद्‌गुरुएक साधक ने सद्‌गुरु से सवाल पूछा कि उनके कुछ मित्रों ने किसी और गुरु से योग के अभ्यास सीखें हैं, और ऐसे में ये कैसे पता लगाएं कि कौनसा गुरु सबसे अच्छा है? जानते हैं सद्‌गुरु का उत्तर

 

प्रश्न : सद्‌गुरु, हमने आपसे अनेक क्रियाएं और अभ्यास सीखे हैं, जिसका अनुभव बहुत तीव्र रहा है। बिना किसी पूर्वाग्रह के मैं बताना चाहती हूं कि मेरे कुछ मित्रों और रिश्तेदारों ने कहीं और से जो क्रियाएं और आसन सीखे हैं, उनमें मुझे फर्क महसूस होता है, मुझे लगता है कि उनमें कहीं कुछ कमी है। मुझे नहीं पता कि इसकी वजह मेरा अहं है या यह वाकई सच है। अगर यह सच है, तो क्या आप इसकी वजह बता सकते हैं?

आपके गुरु को आपके लिए सर्वश्रेष्ठ होना ही चाहिए

सद्‌गुरु : आपके गुरु को सबसे अच्छा होना ही चाहिए। हर कोई ऐसा सोचता है, और यह अच्छी बात है। वे जिस भी गुरु के साथ हों, वे ऐसा सोचते हैं कि उनका गुरु सर्वश्रेष्ठ है, जो कि अच्छी बात है। ऐसा ही होना चाहिए।

आपको देखना चाहिए कि अमेरिका में किस तरह का योग हो रहा है। पश्चिम में जिस तरह का योग हो रहा है, वह डरावना है, वाकई डरावना।
अगर आपको लगता है कि कोई और बेहतर है, तो आपको वहां जाना चाहिए। आपको यहां समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। आपकी यह भावना बहुत स्वाभाविक है कि आप अपने गुरु को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। यह जीने का सबसे अच्छा तरीका है। मगर किसी और के लिए, कोई और श्रेष्ठ है - ऐसा होने दीजिए। उसमें कोई व्यवधान डालने की कोशिश मत कीजिए। इसमें कोई बुराई नहीं है। मगर साथ ही अभी दुनिया में बिना आवश्यक स्व-चेतना (सब्जेक्टिविटी) के बहुत से योगाभ्यास हो रहे हैं। दरअसल सिर्फ निर्देश दिए जा रहे हैं। ऐसा या तो अति उत्सुकता के कारण या फिर मूढ़ता या बेईमानी के कारण हो रहा है। जिस भी वजह से हो, यह सच है कि दुनिया भर में बिना किसी चेतना के, सिर्फ मशीनी कसरतों की तरह, ऐसी ढेर सारी चीजें हो रही हैं। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है, मगर खास तौर पर पश्चिम में ऐसा हो रहा है। आपको देखना चाहिए कि अमेरिका में किस तरह का योग हो रहा है। पश्चिम में जिस तरह का योग हो रहा है, वह डरावना है, वाकई डरावना।

कुछ साल पहले की बात है। फ्रांस के पेरिस में एक काफी लोकप्रिय महिला थी, जो अपना योग स्कूल चलाती थी। एक बार उन्होंने कहा कि मैं आकर उनके योग स्कूल में भाषण दूं।

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मैंने कहा, ‘मेरा जन्म वहीं हुआ है और इनमें से किसी एक में महारत हासिल करने में पूरा जीवन लग जाता है, बल्कि उससे भी ज्यादा।’
आम तौर पर मैं ऐसे योग स्कूलों में कभी नहीं जाता, मगर उन्होंने हमारी कुछ मदद की थी, इसलिए कृतज्ञतावश मैंने हां कह दिया था। उस शाम मैं वहां गया, वहां खूब संगीत बज रहा था, डिनर का आयोजन था और लोग वाइन का घूंट भर रहे थे। मैंने सोचा, ‘अच्छा तो यह फ्रांस है!’ फिर मैं अंदर गया और देखा कि उन्होंने एक बोर्ड लगा रखा था। एक लंबा सा बोर्ड, जिस पर योग के प्रकारों के नाम लिखे थे जो वह सिखाती हैं। तेईस प्रकार के योग ‐ नाद योग, मंत्र योग, हठ योग, यह योग, वह योग। मैंने देखा तो मेरी पुतलियां घूम गईं। मैंने पूछा, ‘आपने यह सब योग कहां से सीखा?’ उन्होंने कहा, ‘मैं तीन महीने भारत में रही थी।’ मैंने कहा, ‘मेरा जन्म वहीं हुआ है और इनमें से किसी एक में महारत हासिल करने में पूरा जीवन लग जाता है, बल्कि उससे भी ज्यादा।’

अध्यात्म, चिकित्सा और शिक्षा कारोबार नहीं होने चाहिएं

सूची में पहला नाम नाद योग का था, फिर मंत्र योग, शक्ति योग, कई तरह की चीजें थीं। फि र मैंने नाद योग की बात की कि उसका क्या अर्थ है और नाद योग को जानने में कितनी मेहनत लगती है।

कम से कम इन तीन क्षेत्रों को हमें व्यापार से बाहर रखना चाहिए। इन कामों को ऐसे लोग करें, जो इनके प्रति समर्पित हों। तभी समाज एक सही दिशा में बढ़ पाएगा।
ध्वनि के जरिये परम को जानना एक खूबसूरत तरीका है, मगर इस दिशा में चलने में इंसान को कितनी मेहनत करनी पड़ती है। मैं वहां डेढ़ घंटे बोला जिसका नतीजा हुआ कि उनके सभी ग्राहक भाग गए। तो दुर्भाग्यवश ऐसा हर जगह हो रहा है। जब कोई भी चीज लोकप्रिय होती है, तो ढेरों कारोबारी तुरंत उसके पीछे पड़ जाते हैं। जीवन के कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जिन्हें व्यापार से दूर रखना चाहिए। आपको शिक्षा को व्यापार से दूर रखना चाहिए मगर दुर्भाग्यवश, वह एक बड़ा कारोबार है। आपको मेडिसिन को इससे बाहर रखना चाहिए, मगर वह बहुत ही बड़ा कारोबार है। आपको निश्चित तौर पर आध्यात्मिकता को इससे बाहर रखना चाहिए, मगर वह भी एक बड़ा व्यवसाय बनता जा रहा है। कम से कम इन तीन क्षेत्रों को हमें व्यापार से बाहर रखना चाहिए। इन कामों को ऐसे लोग करें, जो इनके प्रति समर्पित हों। तभी समाज एक सही दिशा में बढ़ पाएगा।

जीवन एक हिसाब किताब बन रहा है

हमने अर्थशास्त्र की एक पूंजीवादी व्यवस्था स्थापित की, जो कुछ क्षेत्रों में हमारे लिए काफी कारगर रही, मगर हम उसे कुछ ज्यादा ही इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके लिए मानवता को बड़ी कीमत चुकानी होगी, जो बहुत कष्टदायक होगी।

आधुनिक विज्ञान, आधुनिक शिक्षा, आधुनिक अर्थशास्त्र इसी ओर बढ़ रहा है। सब कुछ सिर्फ  इस बात पर निर्भर है कि आप अपने आसपास की किसी भी चीज और हर चीज का कैसे फायदा उठा सकते हैं।
पश्चिम में आप यह नतीजा देख सकते हैं। यह बहुत ही पीड़ादायक है क्योंकि पैंतीस से चालीस फीसदी लोगों के अंदर परिवार, जुड़ाव, और साथ होने की कोई भावना नहीं है। क्या मैं यह आंकड़ा बढ़ा-चढ़ाकर बता रहा हूं? शायद इससे अधिक ही होगा। मुझे लगता है कि मैं रूढि़वादी हो रहा हूं। ये सब लोग अपने अंदर अपना मूल संतुलन सिर्फ  इसलिए खो रहे हैं, क्योंकि जीवन का संबंध सिर्फ खुद से हो गया है। जीवन सिर्फ एक हिसाब-किताब बन गया है कि आप अपने आसपास की हर चीज व हर इंसान से कितना ज्यादा फायदा उठा सकते हैं। यही मानसिकता हो गई है। आधुनिक विज्ञान, आधुनिक शिक्षा, आधुनिक अर्थशास्त्र इसी ओर बढ़ रहा है। सब कुछ सिर्फ  इस बात पर निर्भर है कि आप अपने आसपास की किसी भी चीज और हर चीज का कैसे फायदा उठा सकते हैं।

इसलिए आध्यात्मिक प्रक्रिया को निश्चित तौर पर व्यापार के दायरे से बाहर रखना चाहिए, मगर हम वहीं पहुंच रहे हैं। मैं इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहता कि हम किस तरह किसी और से बेहतर हैं। मैं यह इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि मेरे हिसाब से अभी यह सबसे अच्छी चीज है। अगर मैं देखूंगा कि कोई और मुझसे बेहतर कुछ कर रहा है, तो मैं जाकर उसके साथ जुड़ जाऊंगा। हो सकता है कि आप बहुत निराश हों, मगर मैं ऐसा ही करूंगा।

संपादक की टिप्पणी:

*कुछ योग प्रक्रियाएं जो आप कार्यक्रम में भाग ले कर सीख सकते हैं:

21 मिनट की शांभवी या सूर्य क्रिया

*सरल और असरदार ध्यान की प्रक्रियाएं जो आप घर बैठे सीख सकते हैं। ये प्रक्रियाएं निर्देशों सहित उपलब्ध है:

ईशा क्रिया परिचय, ईशा क्रिया ध्यान प्रक्रिया

नाड़ी शुद्धि, योग नमस्कार