सद्‌गुरुआध्यात्मिक पथ पर एक स्थिति ऐसी आती है, जहां स्थिर होकर बैठना सहज हो जाता है और कर्म करनी की विवशता से मुक्ति हो जाती है। कैसे पहुंचे ऐसे स्थिति तक?


इच्छाओं को कैसे पाएं

अपनी इच्छाओं को साकार करने का मतलब क्या है - कल्पना करना, सपने देखना, इच्छा को तेज करना, इंतज़ार करना, प्रार्थना करना और माँगना।

अपनी ऊर्जा को उबाल बिंदु तक पहुंचाने और आगे बढऩे के लिये कम से कम थोड़ी देर के लिये उन्मादी होना लाभदायक हो सकता है।
परन्तु पाने का एक दूसरा तरीका भी है जिसमें बिना कुछ माँगे, बिना कुछ सोचे सब कुछ अपने आप घटित होता हैं। इसके पहले कि हम वहाँ पहुंचे, हमें थोड़े जोश के साथ भिडऩा होगा। जो कभी आग में नहीं जले वे पानी की ठंडक को नहीं जान पाएँगे। जिन लोगों ने अपना जीवन आधा अधूरा जिया है, जो अपने जीवन में बस औपचारिक रहे हैं, वे दूसरे तरीके को कभी नहीं जान पाएँगे। अपनी ऊर्जा को उबाल बिंदु तक पहुंचाने और आगे बढऩे के लिये कम से कम थोड़ी देर के लिये उन्मादी होना लाभदायक हो सकता है। तब उसे किसी दूसरे रूप में रूपांतरित करना बहुत आसान हो जाता है। कर्म या क्रिया का सारा मकसद यही है। यही कारण है कि एक साधक कर्म को चुनता है।

कर्म हर हाल में करना होगा

वैसे भी हमें काम तो करना ही होगा। अब हमारे पास विकल्प यह है कि हम महात्मा गाँधी जैसा काम करना चाहते हैं या हिटलर जैसा। जिसे भी हम उत्तम महसूस करते हैं वही करें। बात बस इतनी ही है।

लगभग हर आदमी दुनिया पर शासन करना चाहता है। बस इतना ही है कि क्योंकि वह अनमना होता है, इसलिए वह मुश्किल से अपनी पत्नी पर ही शासन कर पाता है।
काम तो वैसे भी करना ही है, तो हम उसे पूरे मन से करें और उस काम को चुनें जो वाकई में हम करना चाहते हैं। क्या आप जानते हैं कि आप अपनी कैसी छवि बनाना चाहते हैं? आप दुनिया पर शासन करना चाहते हैं या दुनिया की सेवा करना चाहते है? यही विकल्प है आपके पास। लगभग हर आदमी दुनिया पर शासन करना चाहता है। बस इतना ही है कि क्योंकि वह अनमना होता है, इसलिए वह मुश्किल से अपनी पत्नी पर ही शासन कर पाता है। उसे दुनिया पर शासन करने का मौका नहीं मिलता तो वह बस अपने बच्चों पर, अपनी पत्नी पर ही शासन कर पाता है, लेकिन असल में वह पूरी दुनिया पर शासन करना चाहता है। उस मूर्ख में इतनी क्षमता नहीं होती या करने की तीव्रता नहीं होती, नहीं तो वह एक दमदार हिटलर बन जाता। वह आदमी जो अपनी पत्नी या बच्चे को शारीरिक तकलीफ देता है क्योंकि वे उसके बातों को नहीं मानते - कल को अगर उसे संसार का राजा बना दिया जाए तो वह डंडे की जगह तलवार का इस्तेमाल करेगा। यही करेगा वह। वह नाकाबिल है और उसमें दुनिया पर शासन करने की तीव्रता नहीं है, नहीं तो शासक तो वह है ही।

लोगों के लिए कर्म करे, या दूसरों पर शासन

अब विकल्प बस यही है - शासन करें या सेवा। जिस भी छवि को आप सबसे ज़्यादा सुसंगत, चैतन्य के सबसे नज़दीक और ज्ञान के सबसे करीब मानते हैं, आप उसी तरह के कर्म का चुनाव कीजिये। एक क्षण भी बर्बाद किए बिना, आप उसे हर पल तीव्रता के साथ कीजिए।

मैं निरन्तर दिन के चैबीसों घंटे, हरेक सजग पल में, यहाँ तक कि नींद में भी अत्यधिक तीव्रता के साथ इसमें लगा रहता हूँ। केवल यही कारण है कि मेरे जीवन में यह सब घटित हुआ है।
फिर एक दिन आएगा जब कर्म करने की ज़रूरत नहीं रह जाएगी। वह आदमी जो कर्म को नहीं जानता - वास्तविक कर्म को, गहन कर्म को नहीं जानता - वह अकर्म में कभी नहीं जा पाएगा। अगर आप कोशिश करेंगे तो अकर्म मात्र आलस्य बन जाएगा। आप अकर्म को केवल तभी जान सकते हैं जब आपने कर्म की तीव्रता को जाना हो। जो लोग जीवन में हमेशा आराम करते रहे हैं, उन्हें तो आराम का विशेषज्ञ होना चाहिए। लेकिन यह सच नहीं है। जो आदमी पूरी तीव्रता के साथ कार्य करता है, वही जान सकता है कि आराम क्या है। इसलिये यह अकर्म का धंधा है। अगर आप वाकई में इसे जानना चाहते हैं तो पहले आप तलाशें कि कर्म क्या है। अभी तक आपने ऐसा नहीं किया है। जीवन के हर सजग पल में, निरंतर मैं खुद को शारीरिक और मानसिक स्तर पर अर्पित करने में लगा रहता हूँ। मैं निरन्तर दिन के चैबीसों घंटे, हरेक सजग पल में, यहाँ तक कि नींद में भी अत्यधिक तीव्रता के साथ इसमें लगा रहता हूँ। केवल यही कारण है कि मेरे जीवन में यह सब घटित हुआ है। यह बहुत प्रबल हो गया है क्योंकि मेरे लिये इसका कोई अर्थ नहीं है, लेकिन चैबीसों घंटे मैं काम में लगा रहता हूँ। अब, इसमें एक अलग तरह की शक्ति है। त्याग का संपूर्ण अर्थ यही है। और इसका एक अनूठा फल होता है, कुछ अनूठा घटित होता है - भीतर और बाहर दोनों जगह - जिसे कभी शब्द नहीं दिए जा सकते।

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