जब टैगोर को हुआ सत्य का बोध
गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर को विश्व के महानतम कवियों में से एक माना जाता है। उनकी अधिकतर कवितायेँ दिव्यता, कुदरत और सौन्दर्य के बारे में हैं। लेकिन क्या यह सारी कवितायेँ उन्होंने अपने निजी अनुभव से लिखी थीं?
आइए आज जानते हैं उस घटना के बारे में जिसने गुरुदेव टैगोर का सत्य का बोध करा दिया।
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यह गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के जीवन से जुड़ी एक खास घटना है। टैगोर ने ढेर सारी कविताएं लिखी हैं। वह अकसर दिव्यता, अस्तित्व, कुदरत व सौंदर्य सहित तमाम चीजों के बारे में बहुत कुछ कहते व लिखते थे, जबकि खुद उन्हें इन चीजों का कहीं कोई अनुभव नहीं था। वहीं पास में एक बुजुर्ग व्यक्ति रहा करते थे, जो एक आत्मज्ञानी व्यक्ति थे। यह बुजुर्ग दूर से कहीं उनके रिश्ते में भी कुछ लगते थे। जब भी टैगोर कहीं भाषण देने जाते तो यह बुजुर्ग भी वहां पहुंच जाते और उन्हें देखते रहते। जब भी रवींद्रनाथ उनकी तरफ देखते तो अचानक असहज हो जाते। दरअसल, वह बुजुर्ग मौका मिलते ही टैगोर से सवाल करने लगते कि तुम इतना सत्य के बारे में बातें करते हो, लेकिन क्या सचमुच तुम इसके बारे में जानते हो? टैगोर सत्य को नहीं जानते थे और उनको यह अहसास भी था कि वो नहीं जानते हैं।
हालांकि टैगोर इतने महान कवि थे कि जब आप उनकी कविता पढ़ते हैं, तो कहीं से भी यह नहीं लगता कि बिना अनुभव या बिना जानें उन्होंने ऐसी कविताएं लिखी होंगी। लेकिन वह बुजुर्ग फिर भी उनसे इस मसले पर लगातार सवाल करते रहते। इसलिए जब भी गुरुदेव की नजरें उनसे मिलती, वह सकपका जाते। हालांकि धीरे धीरे उनके भीतर भी इसे लेकर एक खोज जारी हो चुकी थी, कि आखिर वो क्या है, जिसके बारे में मैं बातें तो करता हूं, लेकिन उसे जानता नहीं हूं।
एक दिन बारिश हुई और फिर रुक गई। टैगोर को हमेशा नदी के किनारे सूर्यास्त देखना बहुत अच्छा लगता था। तो उस दिन भी टैगोर सूर्यास्त देखने के लिए नदी किनारे चले जा रहे थे। रास्ते में ढेर सारे गड्ढे थे, जो पानी से भरे थे। टैगोर उन गढ्ढों से बचते हुए सूखी जगह पर कदम बढ़ाते आगे बढ़ रहे थे। तभी उनका ध्यान पानी से भरे एक गढ्ढे पर गया, जिसके पानी में प्रकृति का पूरा प्रतिबिंब झलक रहा था। उन्होंने उसे देखा और अचानक उनके भीतर कुछ बहुत बड़ी चीज घटित हो गई। वह वहां से सीधे उस बुजुर्ग के घर गए और जाकर उनका दरवाजा खटखटाने लगे। बुजुर्ग ने दरवाजा खोला व एक नजर टैगोर को देखा और फिर बोले, ’अब तुम जा सकते हो। तुम्हारी आंखों में साफ दिखाई दे रहा है कि तुम सच जान चुके हो।’