अगर आप ध्यान कर रहे हैं और यह जानना चाहते हैं कि आपका ध्यान आपको रूपांतरित कर रहा है, तो वे कौन से संकेत हैं, जिनसे ये पता लगाया जा सकता है?

ध्यान एक गंभीर मामला हो गया है। आजकल बहुत सारे लोग इसे लेकर इतने गंभीर हो गए हैं कि वे हंसना ही भूल गए हैं। मैं केवल यहां के ध्यानियों की बात नहीं कर रहा हूं, मैं उन तमाम लोगों के बारे में बात कर रहा हूं जो ध्यानी होने का दावा करते हैं। ये लोग हंसना ही भूल गए हैं क्योंकि किसी चीज के प्रति जागरूक होने की कोशिश में वे बाकी सब चीजों को भूल गए हैं।

नारद मुनि की कथा

एक बड़ी दिलचस्प कहानी है। आपमें से ज्यादातर लोग नारद की साधना के बारे में जानते होंगे। उस वक्त हर साल सबसे बड़े भक्त के लिए एक इनाम घोषित होता था। एक साल स्वर्ग में यह बात प्रकाशित हुई कि साल का सबसे बड़ा भक्त स्थानीय गांव रामपुर का एक अनपढ़ किसान है।

अगर आप सीमित बुद्धि के साथ काम करते हैं, तो आपको लगेगा कि आपकी बहुत उपयोगिता है। अगर आपकी बुद्धि का विस्तार हो जाए, और आप हर चीज को सहज देखें, तो आपको एहसास होगा कि वास्तव में आप बिल्कुल बेकार हैं।
नारद एक महान भक्त के रूप में जाने जाते थे।

नारद ने कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? मैं रोजाना दस लाख सात हजार तिरसठ बार ईश्वर के नाम का जाप करता हूं और मेरी जानकारी के अनुसार इस धरती पर ऐसा कोई दूसरा मानव नहीं है जो दिन में इतनी बार जाप करता हो। जाहिर है, मैं ही सबसे महान भक्त हूं।’’

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वह विष्णु के पास गए और बोले, ‘‘मैं हर वक्त आपके नाम का जाप करता हूं। ऐसे में हर वर्ष मेरा नाम ही सबसे बड़े भक्त के तौर पर प्रकाशित होना चाहिए। यह किसान कौन है?’’

विष्णु ने कहा, ‘‘जाओ और खुद ही पता लगाओ।’’

नारद रामपुर पहुंचे और उस किसान को खोजने लगे। नारद खूब सवेरे पहुंचे, उस वक्त किसान अभी सो ही रहा था। सूर्य उगने से ठीक पहले वह जागा और बोला, नारायण और अपने रोजमर्रा के कामों में व्यस्त हो गया। वह अपने खेत पहुंचा और काम करना शुरू कर दिया। दोपहर बाद उसकी पत्नी उसका खाना लेकर पहुंची। जब वह खाना खाने बैठा तो खाने से पहले उसने एक बार फिर कहा नारायण और खाना खाकर फिर से काम में जुट गया। उसने पूरे दिन काम किया और शाम को घर लौटा। उसने परिवार की देखभाल की, बच्चों को सुलाया और तमाम दूसरे काम निपटाये। जब वह सोने चला तो उसने एक बार फिर नारायण बोलने की चेष्टा की, लेकिन ‘नाराय’ ही बोल पाया कि उसे नींद आ गई। नारद ने गिना कि उसने पूरे दिन में बस पौने तीन बार ही नारायण शब्द का जाप किया। ‘एक मैं हूं जो दिन में इतनी बार नारायण का जाप करता हूं और यह पूरे तीन बार भी जाप नहीं कर पाया। ऐसे में यह मुझसे बेहतर साधक कैसे हो सकता है ?’ नारद गए और इस बात पर उलझ पड़े।

विष्णु ने उन्हें एक बर्तन दिया और बर्तन के मुंह तक उन्होंने तेल भर दिया, फिर कहा, ‘‘तुम तेल से भरे इस बर्तन को लो, पृथ्वी का एक चक्कर लगाओ और फिर मेरे पास आओ।’’ नारद विश्व भ्रमण पर निकल पड़े। यात्रा के दौरान उन्होंने इस बात का पूरा ध्यान रखा कि बर्तन से तेल की एक बूंद भी बाहर न गिर पाए।

यात्रा पूरी करके वह लौटे और बोले, ‘‘मैं कामयाब हुआ। मैंने एक भी बूंद नीचे नहीं गिराई।’’

विष्णु ने पूछा, ‘‘यह बताओ कि तुमने नारायण कितनी बार बोला।’’

नारद बोले, ‘‘अरे, मैं कैसे बोलता? मेरा ध्यान तो तेल पर था। ऐसे में मैं नारायण कैसे बोलता?’’

यानी अगर आपके पास कुछ भी करने को नहीं है, तो आप आराम से बैठकर चौबीस घंटे नारायण का जाप कर सकते हैं। कुछ काम न होने पर आप आंखें बंदकर बैठ जाएं, यह महत्वपूर्ण नहीं है। आपके पास करने को काफी कुछ है, फिर भी आप जागरूक हैं, यह महत्वपूर्ण है। आप सब कुछ करते रहते हैं और फिर भी ध्यान की अवस्था में रहते हैं। यह ज्यादा महत्वपूर्ण है।

ऐसे बनें कि हर पहलू ध्यान मय हो जाए

ध्यान का मतलब यह नहीं है कि आप जीवन के हर पल बनावटी हंसी अपने चेहरे पर लादे रखें। आपको अपने हर पहलू के साथ मुस्कराना सीखना होगा। क्या आप सिर्फ अपनी आंखों से मुस्करा सकते हैं? अगर आपके शरीर की हड्डियां भी मुस्कराने लगें तो वह ध्यान है। ध्यान एक फूल के खिलने की तरह है। कोई फूल हिस्सों में नहीं खिलता। जब यह खिलता है तो उसका सब कुछ खिलता है। इसलिए खुद को ऐसे ही बनाने की जरूरत है। आपके अंदर हर चीज अपनी उत्तम स्थिति में है, यही खिलना है। यही ध्यान है। आप अपनी आंखे बंद करके बैठते हैं, यह इसलिए है कि आपकी मुस्कान सिर्फ होंठों तक ही नहीं, बल्कि शरीर की हर कोशिका तक फैल जाए। अगर आप चैन और आराम की एक खास अवस्था में हैं और आपके आसपास कोई भी नहीं है तो भी आपके चेहरे पर मुस्कान होगी।

आप इस बात का अभ्यास करें कि आपके चेहरे के अलावा शरीर के बाकी हिस्से भी मुस्कराएं। अगर आप यहां बैठते हैं तो हर चीज मुस्करानी चाहिए। आपके आसपास इसे महसूस किया जाना चाहिए। कोई फूल किसी के पास नहीं जाता। जिस किसी की उसमें दिलचस्पी होती है, वह अपने आप ही उसकी ओर खिंचा आता है क्योंकि वह खिला हुआ है। इसी तरह अगर यह जीवन पूरी तरह खिल जाए तो इसके लिए जो भी जरूरी है, वह अपने आप ही इसकी तरफ खिंचा चला आएगा। इसे किसी चीज की खोज में जाने की जरूरत नहीं है।

आपने अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीजों की ओर ध्यान ही नहीं दिया। आपकी ऊर्जा, आपकी अक्ल, आपका ध्यान हमेशा इस बात पर केंद्रित रहता है कि गुजर बसर कैसे किया जाए और आज आप जो हैं, उससे बड़ा कैसे बना जाए। इस कोशिश में लोग मुस्कराने की क्षमता भी खो बैठते हैं। उनकी मुस्कान बस एक मकसद को लेकर होती है। अगर हम स्वयं में पूरी तरह संतुष्ट महसूस करते हैं, स्वयं के साथ हम चैन में हैं, तो मुस्कान बिल्कुल सहज होगी। तो आपको मुस्कान बिखेरनी चाहिए। कोई मकसद नहीं है, बस यूं ही।

असल में यहां कोई काम नहीं है

कभी किसी दिन सोचकर देखिए कि इस दुनिया में आपका काम क्या है? वास्तव में आपको कोई काम नहीं है। अगर कल आपका अस्तित्व नहीं रहा तो भी यहां सब कुछ ठीक ठाक चलता रहेगा। आप कहेंगे, ‘मेरे बिना यह नहीं होगा, ईश्वर की दी गई मेरी यह भूमिका है या वह भूमिका है।’ देखा जाए तो ईश्वर का दिया हुआ कोई रोल नहीं होता। अगर आप कल सुबह नहीं रहेंगे तो भी यह धरती ऐसे ही घूमती रहेगी और सब कुछ शानदार तरीके से चलता रहेगा।

अगर आप सीमित बुद्धि के साथ काम करते हैं, तो आपको लगेगा कि आपकी बहुत उपयोगिता है। अगर आपकी बुद्धि का विस्तार हो जाए, और आप हर चीज को सहज देखें, तो आपको एहसास होगा कि वास्तव में आप बिल्कुल बेकार हैं।
उपयोगिता और अनुपयोगिता के अर्थ में अगर देखें तो आप वाकई जीवन के एक बेकार हिस्से हैं। अगर आप जीवित रहने के आनंद और खूबसूरती को जानते हैं, तो इसको उपयोगी होने की जरूरत नहीं है, यह बस खूबसूरत है। अगर आप सीमित बुद्धि के साथ काम करते हैं, तो आपको लगेगा कि आपकी बहुत उपयोगिता है। अगर आपकी बुद्धि का विस्तार हो जाए, और आप हर चीज को सहज देखें, तो आपको एहसास होगा कि वास्तव में आप बिल्कुल बेकार हैं।

तो बात उपयोगिता की नहीं है। बात आपके अस्तित्व की खूबसूरती की है। ध्यान अस्तित्व की इस खूबसूरती को महसूस करने का साधन है। ध्यान करने का मकसद तो यह है कि हम स्वयं फूल की तरह खिल जाएं और यहां एक फूल की तरह बैठें। अगर आप यहां बैठते हैं, आप मुस्कराते हैं, तो आपकी हड्डियों को भी मुस्कराना चाहिए। एक बार अगर आपकी हड्डियां मुस्कराने लगीं तो आपके जीवन में बाकी सब चीजें उत्तम ढंग से घटित होगीं।