सद्‌गुरुसद्‌गुरु हमें बता रहे हैं कि मन की प्रकृति ही ऐसी है कि वो हर चीज़ को टुकड़ों में दिखाता है। अगर हम जागरूकता से इस विभाजन को मिटा दें, तो हम वास्तविकता के संपर्क में आ जाएंगे।

अपने जीवन में लोग सोचते अधिक हैं और आनंदित कम होते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिये। आपका मन समाज का बस कूड़ा दान है। आपकी बगल से जो भी गुज़रता हैं आपके दिमाग में कुछ भर कर चला जाता है। वास्तव में आपके पास कोई विकल्प नहीं है, जो भी आपकी ज्ञानेन्द्रियों से टकराता है - दृष्टि या ध्वनि, या संवेदन या स्वाद या गंध, जो भी आपकी ज्ञानेन्द्रियों का स्पर्श करता है, आपके मन में इकट्ठा हो जाता है। तो जिसे आप मन कहते हैं, वह सब जो आपने अपने मन में इकट्ठा किया है, वह उन सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक स्थितियों पर निर्भर है जिसमें आप पले बढ़े हैं।

मन के तीन हिस्से

हम मन को तीन हिस्सों में बांट सकते हैं। मन का विवेक-विचार करने वाला आयाम बुद्धि कहलाता है, दूसरा है संग्रह करने वाला हिस्सा जो सूचनाएँ एकत्रित करता है; और जागरूकता जो प्रज्ञा कहलाती है।

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जीवित रहने के लिये तार्किक-बुद्धि एक बहुत बढिय़ा यंत्र है, साथ ही जीवन की एकता को अनुभव करने में बहुत बड़ी बाधक भी है। यदि आप जानते हैं कि अपने तर्क का इस्तेमाल कहाँ तक किया जाना चाहिये और कहाँ नहीं किया जाना चाहिये, तभी आपका जीवन सुंदर होगा।
आप अपने सिर में जिस तरह का कचरा एकत्रित करते हैं, आप जीवन में वैसे ही सोचते, समझते और महसूस करते हैं। आपमें से कुछ के पास सामाजिक कूड़़ा, धर्मिक कूड़़ा, आध्यात्मिक कूड़़ा है, यह मायने नहीं रखता कि क्या है। लेकिन यह सब कुछ बाहर का है। यह सिर्फ किसी तरह से जीवित रहने के लिये है। जीवन के लिये यह बिल्कुल महत्त्वपूर्ण नहीं है। इस कचरे को रीसाइकल करने की योग्यता आपकी बुद्धि कहलाती है। इस ग्रह पर आपका जीना संभव है क्योंकि आप एक वस्तु और दूसरी में अन्तर करने में सक्षम हैं।

आप जितने ही बड़े बुद्धिजीवी होते हैं, अपने चारों ओर की हर चीज़ को उतना ही अधिक खंडित करते हैं और आप यह नहीं जानते हैं कि कहाँ रुकना है।

यह आपको किसी भी चीज़ के साथ पूर्ण रूप से होने की इजाज़त नहीं देता। जीवित रहने के लिये तार्किक-बुद्धि एक बहुत बढिय़ा यंत्र है, साथ ही जीवन की एकता को अनुभव करने में बहुत बड़ी बाधक भी है। यदि आप जानते हैं कि अपने तर्क का इस्तेमाल कहाँ तक किया जाना चाहिये और कहाँ नहीं किया जाना चाहिये, तभी आपका जीवन सुंदर होगा।

हर अनुभव सिर्फ अंशों में होता है

आपके दिमाग में जितने सारे प्रभाव हैं, वे सिर्फ पाँच ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से ही घुसे हैं और ज्ञानेन्द्रियाँ हर चीज़ का अनुभव सिर्फ तुलना द्वारा ही कर सकती हैं।

इस विभाजन को यदि आप अपनी जागरूकता से मिटा दें, फिर आपकी बुद्धि यह स्पष्ट कर देगी कि क्या सच है और क्या सच नहीं है।
यदि जीवन में आपने अंधकार नहीं देखा होता, आप नहीं जान पाते कि प्रकाश क्या है। इंद्रिय ज्ञान आपको यथार्थ का एक विकृत रूप दिखाता है, क्योंकि ज्ञानेन्द्रियाँ हर चीज़ का अनुभव सिर्फ तुलना द्वारा ही कर सकती हैं और जहाँ तुलना होती है वहाँ हमेशा दोहरापन या द्वैत होता है। आप सिर्फ टुकड़ों में ही अनुभव कर सकते हैं। अतः आपका सारा अनुभव छोटे-छोटे अंशों में है और ये अंश कभी पूर्ण तस्वीर नहीं दिखाते।

इस विभाजन को यदि आप अपनी जागरूकता से मिटा दें, फिर आपकी बुद्धि यह स्पष्ट कर देगी कि क्या सच है और क्या सच नहीं है। तब आपकी बुद्धि चाक़ू के समान तेज़ हो जाती है और इस पर कुछ भी नहीं चिपकता, यह किसी चीज़ के साथ आसक्त नहीं होती। यह किसी वस्तु से पहचान नहीं बनाती, यह हर चीज़ को वैसी दिखाती है जैसी वह है यह आपके संग्रह से, आपकी पहचानों से, आपकी भावनाओं से प्रभावित नहीं होती।

योग और ध्यान की संपूर्ण प्रक्रिया बस यही है। एक बार जब आप अपने और अपने मन के बीच एक स्पष्ट अंतराल बना लेते हैं, यह अस्तित्व का एक पूर्णतः भिन्न आयाम है।