सद्‌गुरुएकेश्वरवादी धर्मों के अनुसार जिन धर्मों में ईश्वर की बहुत सारी आकृतियों की पूजा की जाती है, वे धर्म ईश्वर के असली स्वरूप को नहीं पहचानते। क्या कारण है इतनी सारी आकृतियों के पूजे जाने का?

पूरा ब्रह्माण्ड आकृतियों का मिश्रण है

जिसे हम ब्रह्मांड या सृष्टि कहते हैं, वह विभिन्न रूपों व आकृतियों का एक जटिल मिश्रण है।

अगर कोई आकृति समय के साथ इतनी ज्यादा विकसित हो जाए कि वह इंसानी क्षमता से आगे निकल जाए, तो हम उसे ईश्वरीय कह देते हैं, क्योंकि जो कुछ भी हमारी क्षमताओं और गुणों से परे है, वह हमारे अनुभव में ईश्वरीय हो जाता है।
सभी ग्रह, तारे, पूरा सिस्टम, ये सभी आकृतियां ही हैं। समय के साथ-साथ ये आकृतियां प्रभावशाली आकृतियों में बदल जाती हैं और हमारे अनुभव में शाश्वत लगने लगती हैं। इसकी वजह यह है कि इन्होंने ज्यामितीय पूर्णता को हासिल कर लिया है। यह सब अचानक नहीं हुआ है, इनमें से हर आकृति को विकसित होने में लंबा समय लगा है। अगर कोई आकृति समय के साथ इतनी ज्यादा विकसित हो जाए कि वह इंसानी क्षमता से आगे निकल जाए, तो हम उसे ईश्वरीय कह देते हैं, क्योंकि जो कुछ भी हमारी क्षमताओं और गुणों से परे है, वह हमारे अनुभव में ईश्वरीय हो जाता है।

आकृतियों का इस्तेमाल करना सीखना पड़ता है

एकेश्वरवादी धर्मों में ऐसी गलत समझ है कि जिन धर्मों में कई ईश्वरीय आकृतियों की मान्यता होती है, वे भटके हुए हैं, और उन्हें पता ही नहीं कि ईश्वर क्या है।

इन्हीं सब आकृतियों को ईश्वरीय माना और पूजा गया। सबसे बड़ी बात कि इन आकृतियों का इस्तेमाल करना, और उनके लिए उपलब्ध होना हमें सीखना पड़ता है।
इसीलिए उन्होंने इतनी सारी आकृतियों का आविष्कार कर लिया है। मैं आपको बताना चाहता हूं कि इन आकृतियों का आविष्कार नहीं किया गया है, ये इस सृष्टि की प्रकृति को ध्यान से देखने से प्राप्त हुई हैं। यह पाया गया कि इनमें से कुछ आकृतियां एक ऐसी शक्ति के साथ गुंजायमान हैं, जो इंसानी क्षमताओं से परे हैं, और जो इंसान के लिए मददगार साबित होती हैं। ये इस योग्य हैं कि इनकी तरफ मदद के लिए देखा जा सकता है। इन्हीं सब आकृतियों को ईश्वरीय माना और पूजा गया। सबसे बड़ी बात कि इन आकृतियों का इस्तेमाल करना, और उनके लिए उपलब्ध होना हमें सीखना पड़ता है।

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दरअसल, योग यही सिखाता है कि अपनी आकृति को व्यवस्थित या फिर से व्यवस्थित कैसे किया जाए। शरीर में 114 चक्र होते हैं, जो खास तरह के ऊर्जा-रूप हैं। अगर हम इन चक्रों को दोबारा से व्यवस्थित कर लें तो वही इंसान जो हाड़-मांस का टुकड़ा था और अब तक अपनी तमाम बाध्यताओं के साथ जी रहा था, अचानक एक उच्च संभावना में बदल जाता है। ऐसे लोग अपने अनुभव, समझ या ऊर्जा की तीव्रता से खुद को या अपने अस्तित्व की ज्यामिति को उच्च स्तर तक ले जाते हैं।

सही ज्यामिति वाले लोगों को भगवान कहा जाता है

यही वजह है कि भारत मेंं ऐसे लोगों को भगवान कह दिया जाता है।

वह सितारे, ग्रह दशा आदि नहीं देखता था, बस बच्चे के शरीर की ज्यामिति, उसके ऊर्जा शरीर की ज्यामिति देखकर ही वह उसके जीवन के बारे में बता देता था।
मानव -शरीर की प्रकृति में एक खास तरह की व्यवस्था होती है। एक पूरा विज्ञान है जो अब नाम का ही रह गया है। अंतर्ज्ञान से पैदा हुए विज्ञान का दुरुपयोग होने लगा है, क्योंकि समाज में निष्ठा का स्तर गिरा है। लोग कुछ भी बोल देते हैं - तुक्के को अंतरज्ञान मान लिया जाता है। पहले भारत में बच्चे के जन्म के समय एक ऐसे शख्स को बुलाया जाता था, जिसके पास अंतर्ज्ञान होता था। ऐसा शख्स बच्चे के शरीर की ज्यामिति को देखकर बताता था कि उसके जीवन में क्या-क्या संभावनाएं हैं। वह सितारे, ग्रह दशा आदि नहीं देखता था, बस बच्चे के शरीर की ज्यामिति, उसके ऊर्जा शरीर की ज्यामिति देखकर ही वह उसके जीवन के बारे में बता देता था।

गौतम बुद्ध की ज्यामिति देखकर की थी भविष्यवाणी

आपमें से बहुतों ने सुना ही होगा कि कैसे एक आदमी ने गौतम बुद्ध के भविष्य के बारे में भविष्यवाणी की थी।

अगर एक खास तरह की तीव्रता बच्चे में है, तो वह लोगों पर शासन करने में अपना जीवन क्यों बर्बाद करेगा, इसकी बजाय वह उन्हें गले से लगाएगा, जोकि ज्यादा समझदारी का काम होगा।
उसने कहा था - या तो वह महान शासक बनेगा या बहुत बड़ा महात्मा। तार्किक दिमाग वाले लोग कहेंगे - अरे, आपने तो दोनों बातें कह दीं। आप तो सही होंगे ही। लेकिन ऐसा नहीं है, उसने केवल उनके शरीर की ज्यामिति की तीव्रता को देखा होगा। उसके कहने का मतलब था कि गौतम महान चीजों को हासिल करेंगे। चूंकि वह राजा के पुत्र हैं इसलिए कहा गया कि वह महान शासक बन सकते हैं। अगर एक खास तरह की तीव्रता बच्चे में है, तो वह लोगों पर शासन करने में अपना जीवन क्यों बर्बाद करेगा, इसकी बजाय वह उन्हें गले से लगाएगा, जोकि ज्यादा समझदारी का काम होगा। वह उन्हें रूपांतरित करने की कोशिश करेगा, जो बेहतर काम होगा।

इसीलिए उन्होंने कहा - इस बच्चे की तीव्रता शासक बनने से भी आगे जा रही है। राजा का पुत्र होने की वजह से शायद वह राजा बन जाए, लेकिन जब मैं उसकी ज्यामिति की तीव्रता को देखता हूं, तो लगता है कि वह महान संत बनेगा। हुआ भी वही, गौतम महान संत बने। भविष्यवाणी गलत नहीं थी। अगर वह किसी वजह से जीवन में पीछे रह जाते तो हो सकता था कि वह महान शासक बनते।

क्या शरीर में कुछ गलत है?

तो शरीर की ज्यामिति को दोबारा व्यवस्थित करने का अर्थ सामान्य हाड़-मांस के शरीर को ईश्वरीय रूप में बदल देना है।

बस बात इतनी है कि अगर आप कुछ बेहतर बनने की संभावनाओं की खोज किए बिना ही दुनिया से चले गए, तो आपके भीतर मौजूद जीवन तृप्त महसूस नहीं करेगा।
तो क्या इस हाड़-मांस के शरीर में कुछ गलत है?कुछ भी नहीं। बस इसकी अपनी सीमाएं हैं। यह बाध्यकारी आकृति है। तो क्या बाध्यकारी स्वभाव कुछ गलत है? अगर मुक्त होना आपको पसंद नहीं है तो कुछ भी गलत नहीं। क्या इस धरती का प्राणी होने में कुछ गलत है? बिल्कुल नहीं। बस बात इतनी है कि अगर आप कुछ बेहतर बनने की संभावनाओं की खोज किए बिना ही दुनिया से चले गए, तो आपके भीतर मौजूद जीवन तृप्त महसूस नहीं करेगा।

महत्वाकांक्षाओं से परे का जीवन जी सकते हैं

अगर आप अपनी अंदरूनी ज्यामिति को सही तरीके से व्यवस्थित कर लें तो आप एक ऐसी मशीन बन सकते हैं, जो बहुत कारगर साबित हो सकती है।

ऐसा करने से वह ऐसे काम करने लगेगी जिसकी आपने कभी कल्पना भी न की होगी। फिर आप अपनी महत्वाकांक्षाओं के परे जाकर जीवन जी सकते हैं।
अपने भीतर कोई इंसान कितनी दूर जाएगा, यह पूरी तरह उसी को तय करना है, लेकिन दुनिया में वह कितना आगे जाएगा, यह सामाजिक ताने-बाने से, वक्त से और ऐसी ही कई दूसरी चीजों से तय होता है। रास्ते में कोई आपको गिरा भी सकता है, इसलिए दुनिया में आप कितना आगे जाएंगे, वह कई बातों पर निर्भर है। शारीरिक आसनों से लेकर कई दूसरी चीजों तक, पूरे के पूरे योग सिस्टम का मकसद अपनी ज्यामिति को दुबारा से ढालना और उसे दोबारा व्यवस्थित करना है। ऐसा करने से वह ऐसे काम करने लगेगी जिसकी आपने कभी कल्पना भी न की होगी। फिर आप अपनी महत्वाकांक्षाओं के परे जाकर जीवन जी सकते हैं।