इन्कार नहीं, स्वीकार करना सीखें
सद्गुरु आध्यात्मिक मार्ग पर सहनशीलता और स्वीकृति के अंतर के बारे में बता रहे हैं। वे बताते हैं कि योग आसन भी शारीरिक स्तर पर सहनशीलता पैदा करने के लिए हैं।
चाहे आप कर्म के मार्ग पर चल रहे हों या ज्ञान के, क्रिया के मार्ग पर चल रहे हों या भक्ति के, जो चीज आपको चलायमान रखती है, वह मार्ग नहीं है, वह है आपकी तीव्रता।
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कभी-कभी सहनशीलता छोडनी पड़ सकती है
किसी गांव में एक सांप रहता था। वह बेहद विषैला और दुष्ट था और इसलिए आस-पास के इलाके में वह कुख्यात (बदनाम) हो गया था। गांव में एक रास्ता था, जिस पर से वह लोगों को गुजरने नहीं देता था। कई लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी थी। लोग उस रास्ते पर निकलने से डरने लगे थे क्योंकि उन्हें डर था कि किसी भी समय वह सांप उन पर हमला कर सकता है। एक दिन एक सिद्ध पुरुष उस गांव में आए। हर किसी ने इस सिद्ध पुरुष को चेतावनी दी कि वह उस ओर न जाएं, लेकिन वह फिर भी चले गए। हमेशा की तरह वह सांप इंतजार कर रहा था। सिद्ध पुरुष पर भी वह हमला करना चाहता था। लेकिन उनकी मौजूदगी ऐसी थी कि सांप पिघल गया और सिद्ध पुरुष ने उसे आध्यात्मिक पथ की ओर मोड़ दिया। उन्होंने सांप से कहा - ‘दुष्ट बनकर तुम अपना जीवन नष्ट क्यों कर रहे हो? ऐसा करके तुम कुछ अच्छा हासिल करने नहीं जा रहे हो। हो सकता है, तुम पकड़े न जाओ, पर तुम यहां से वहां दौड़ते-फिरते रहोगे। ऐसा करने का क्या फायदा?’ उस दिन से सांप का रूपांतरण हो गया। उसने ध्यान करना शुरू कर दिया। पहली बार उसने डसने के अलावा कोई दूसरा काम किया था। कुछ समय के बाद गांव के लडक़ों को महसूस हुआ कि या तो सांप के दांत गिर गए हैं या वह अब डंसना नहीं चाहता। धीरे-धीरे उन लोगों में हिम्मत आ गई। वे उस सांप के पास जाकर उस पर पत्थर फेंकने लगे। जब सांप ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो उन्होंने उसे लाठियों से मारना शुरू कर दिया। ऐसा करने के बाद भी सांप उन्हें कुछ नहीं करता था। एक साल के बाद वही सिद्ध पुरुष उधर से फिर गुजरे। अपने गुरु को वहां देखकर सांप उत्साहित हो गया और उनके चरणों में गिर गया। गुरु ने देखा कि सांप काफी बुरी स्थिति में है। उसने काफी समय से कुछ खाया नहीं था, क्योंकि उसे लगता था कि अगर वह बाहर आया तो लोग उसे बहुत ज्यादा परेशान करेंगे, इसलिए वह अपने बिल में ही रहा। उसका शरीर बुरी तरह से छलनी हो गया था। सिद्ध पुरुष ने पूछा, ‘क्या हुआ तुम्हें?’ सांप ने कहा, ‘बस मैंने कुछ खाया नहीं है, इसलिए कमजोर हो गया हूं।’ वह सहनशीलता के उस स्तर तक पहुंच गया था कि यह शिकायत भी नहीं कर रहा था कि लोग उसे सता रहे हैं। सिद्ध पुरुष ने सांप के शरीर में जगह-जगह घाव के निशान देखे और कहा, ‘खाना न खाने से ऐसा तो नहीं हो सकता। सच-सच बताओ हुआ क्या?’ सांप ने कहा, ‘गांव के लडक़े मेरे साथ खेलना चाहते हैं, इसलिए वे आते हैं और मुझे छेड़ते हैं।’ सिद्ध पुरुष ने कहा, ‘मैंने तुम्हें किसी को काटने के लिए मना किया था, फुफ कारने के लिए नहीं। तुम कम से कम फूंफ कार तो सकते ही थे। यह आध्यात्मिकता नहीं है। तुमने बात को ठीक से समझा नहीं। अगर तुम फूंफ करोगे नहीं तो वे भूल जाएंगे कि तुम सांप हो और तुम्हें हर तरीके से परेशान करेंगे।’
हर पल को स्वीकार करना जरुरी है
कभी कभी हमें फूंफकारना पड़ता है। लेकिन एक गुण जो विकसित किया जाना चाहिए, वह है स्वीकृति यानी किसी चीज को स्वीकार कर लेना। स्वीकृति आपको हर चीज से मुक्त कर देगी। यही रास्ता है।
अगर आप वास्तव में यह देख पाते हैं कि अपने कर्मों की वजह से ही आपको जीवन में कष्ट मिल रहे हैं, तो ऐसे शख्स को जो आपके हाथ काट रहा है, बुरा-भला कह कर अपने कर्म और बढ़ाने का क्या मतलब है? आज आप जो भी हैं, जैसे भी हैं, अच्छे या बुरे, उसके लिए आप स्वयं और आपके कर्म जिम्मेदार हैं। ऐसे में अगर कोई चीज सुविधाजनक नहीं है, तो उसके बारे में शिकायत करने का क्या लाभ! कुछ चीजों के लिए हो सकता है कि आप यह कहने के लिए तैयार हों कि ये आपके कर्म हैं, लेकिन बाकी चीजों का क्या! अगर स्वीकार करने की क्षमता है तो कुछ भी संभव है। यही सबसे अच्छा रास्ता है। लेकिन जब लोग इतने सजग नहीं होते कि हर पल को स्वीकार कर सकें, तो विकल्प देने पड़ते हैं। स्वीकार कर लेने की क्षमता का एक बेहद कमजोर विकल्प है सहनशीलता, लेकिन स्वीकार करने की क्षमता नहीं है, तो कम से कम आपके पास सहनशीलता तो होनी ही चाहिए।
योग आसन शरीर के स्तर पर सहनशीलता पैदा करते हैं
आसन शारीरिक सहनशीलता पैदा करने के लिए होते हैं। आप आसन में जितनी देर बैठ पाते हैं, कल से ही आप उस अवधि को बढ़ाने की कोशिश करें। खुद को अधिकतम सीमा तक खींचें और वहां कुछ समय तक रुकें। शुरुआत में दर्द आपको परेशान करेगा, उसके बाद आप उस स्थिति में आसानी से रुक सकते हैं। आपने देखा होगा कि हमारे यहां जब किसी को कहीं दर्द होता है तो लोग ईश्वर का नाम पुकारते हैं। ऐसा मूल रूप से सहनशीलता विकसित करने के लिए होता है। उदाहरण के लिए अगर आपके पैर में चोट लग जाए तो आप कहते हैं - ‘हे शिव’। इससे आपको सहनशीलता मिलती है। ‘उफ ’ या ‘आउच’ बोलने से आपको सहनशीलता नहीं मिलती। यह ईश्वर का नाम लेने का मामला नहीं है। यह एक जरिया है, आपको शांत करने का। ईश्वर का नाम जपने का यही कारण है। यह आपको हल्का कर देता है। दूसरी बात यह है कि कष्ट से बचने के बजाय आपको इसे काबू में कर लेना चाहिए। उदाहरण के लिए आप किसी ऐसे शख्स को देखा होगा जिसकी अभी-अभी उंगली कटी है। आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि वह दर्द को कैसे सहेगा, लेकिन उसके लिए यह उतना भी कष्टकारी नहीं है। पहले पल में दर्द असहनीय लगता है, लेकिन जैसे ही स्वीकार करने की क्षमता विकसित हो जाती है, दर्द उतना असहनीय नहीं रहता। दर्द हो रहा है, बस। दर्द इसी तरह होता है। अगर आपको दर्द से डर लगता है तो कोई ऐसा रास्ता नहीं है, जिसके जरिये आप अपने डर से बाहर निकल पाएं। जब दर्द आपके लिए कोई समस्या नहीं रह जाता है, तो आपका ज्यादातर डर खत्म हो जाता है क्योंकि आपके डर का कम-से-कम आधा हिस्सा शरीर से संबंधित होता है। आपको इस बात का डर लगा रहता है कि कहीं आपके शरीर को कुछ हो न जाए। इसका सीधा सा मतलब है कि इस सबका संबंध दर्द से है।
एक बार अगर आप दर्द को काबू में कर लेते हैं, तो शरीर को लेकर आपका जो डर है, उसका स्तर काफी हद तक कम हो जाता है। लेकिन ये सब कमजोर विकल्प हैं। अगर आप स्वीकार कर लेने की स्थिति में हैं, तो न तो दर्द को काबू में करने की जरूरत है, न सहनशीलता सीखने की जरूरत है और न कुछ और। एक ही वार से सब चीजों पर महारत हासिल हो जाती है। जैसे ही आपकी स्वीकृति पूर्ण हो जाएगी, आप प्रकाशवान हो जाएंगे। आपके भीतर एक नई तरह की ऊर्जा का संचार हो जाएगा। हर चीज नई होगी, और ऐसा ही होना चाहिए।