हिंदू संस्कृति की सबसे बड़ी खूबी यह है - कि यह अपने लोगों को अपने हिसाब से पूजने की आजादी देती है। दूसरी तमाम संस्कृतियों ने वहां के लोगों को ऐसी आजादी नहीं दी। शायद यही वजह है कि हिंदू संस्कृति को अध्यात्म के लिए सबसे उत्तम माना जाता है:

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यहां लोग स्वाभाविक रूप से सांसारिक सुख के परे जाकर अंदरूनी आनंद की ओर देखने लगे। यही वजह है कि इस संस्कृति में इतनी शक्तिशाली आध्यात्मिक प्रक्रियाएं विकसित हुई।
आध्यात्मिक प्रक्रिया किसी भी संस्कृति में आकार ले सकती है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि उस संस्कृति के लोगों की सांसारिक आवश्यकताएं पूरी हो चुकी हों। आमतौर पर लोगों की सोच होती है कि अगर उनकी खाने, रहने और पहनने की चिंता दूर हो जाए, और थोड़ी बहुत भोग-विलास की चीजें उनके पास आ जाएं, तो फिर चिंता की कोई बात नहीं है। फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा। जब इन सभी चीजों का इंतजाम हो जाता है, तब भी कई बार इंसान को अंदर से संतुष्टि महसूस नहीं होती है। यही वह वक्त होता है, जब इंसान स्वाभाविक रूप से अपने अंदर खोजना शुरू करता है। अगर ऐसा होना है, तो आपको एक ऐसी सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति की आवश्यकता होगी, जो लंबे समय तक बरकरार रहे और शांतिपूर्ण हो। यह एक ऐसी स्थिति है, जो सिर्फ हमारी भारतीय संस्कृति में ही रही है। दूसरी सभी संस्कृतियां ज्यादातर समय झगड़े, युद्ध और दूसरों पर विजय हासिल करने की कोशिशों में लगी रहीं। इसकी वजह से वहां कोई स्थाई समाज नहीं बन सके, लेकिन अपनी भारतीय संस्कृति में स्थाई सामाजिक और सांस्कृतिक स्थितियों का एक लंबा युग रहा है। यहां लोग स्वाभाविक रूप से सांसारिक सुख के परे जाकर अंदरूनी आनंद की ओर देखने लगे। यही वजह है कि इस संस्कृति में इतनी शक्तिशाली आध्यात्मिकप्र क्रियाएं विकसित हुई। ऐसे लाखों विभिन्न तरीके हैं, जिनके माध्यम से आप अपनी परम प्रकृति को हासिल कर सकते हैं।

इस संस्कृति में सांस लेने, खाने, बैठने और खड़े होने जैसी सामान्य बातों समेत जीवन का हर पहलू एक आध्यात्मिक प्रक्रिया के तौर पर विकसित हुआ। इंसान की परम प्रकृति को यहां बड़े व्यापक तरीके से खोजा गया है। हालांकि दुर्भाग्य की बात यह है कि हमारी संस्कृति से संबंधित काफी कुछ खो चुका है। वास्तव में हम उसे सुरक्षित ही नहीं रख पाए, लेकिन फिर भी यह एक जीती जागती संस्कृति है। आज भी इसके हजारों साल पुराने कुछ ऐसे पहलू हैं, जिन्हें सजीव रखा गया है। प्रश्न यह है कि - ये पहलू आज एक आदमी की जिंदगी में कितने जीवंत हैं?  लेकिन यह सच है एकसूत्र के रूप में इनका अस्तित्व आज भी है।

हिंदू एक भौगोलिक पहचान है। जो कोई भी सिंधु नदी की जमीन पर या फिर सिंधु घाटी की सभ्यता में पैदा हुआ है, वह हिंदू है।
मार्क ट्वेन ने इस बात को बहुत साधारण तरीके से रखा। भारतीय रहस्यवाद को लेकर उनके मन में बड़ा कौतुहल था। वह इसे प्रत्यक्ष तौर पर देखना चाहते थे, और इसके लिए वह भारत आए। उनके पास एक अच्छा गाइड था, जो उन्हें सही जगहों पर ले गया। उन्होंने यहां तीन महीने से थोड़ा ज्यादा वक्त गुजारा, और जब वह यहां से वापस हो रहे थे, तो उन्होंने कहा था, “किसी इंसान द्वारा या किसी देवता द्वारा जो कुछ भी किया जा सकता है या कभी किया जाएगा, वह इस भूमि में किया जा चुका है”।मार्क का यह कथन उस प्रभाव को दिखाता है, जो उनके ऊपर भारत आकर पड़ा। मानवीय चेतना के बारे में जितना कुछ इस भूमि में किया जा चुका है, वह इस धरती पर कहीं और देखने को नहीं मिलता।

यह एक मात्र ऐसी संस्कृति है, जिसका अपना कोई धर्म नहीं है। अगर अब धर्म ने हमारे यहां अपनी जगह बना ली है, तो यह बाहरी प्रभावों की वजह से है। नहीं तो एक संस्कृति के तौर पर यहां कोई धर्म नहीं है। हमारे यहां अकसर सनातन धर्म की बात होती है, जिसका मतलब है सार्व भौमिक धर्म। जब हम सार्व भौमिक धर्म की बात करते हैं तो हम यह नहीं कहते, कि सभी लोगों के लिए एकही धर्म है। बल्कि हमारे कहने का मकसद यह होता है, कि हममें से हरेक का अपना धर्म है। हिंदू एक भौगोलिक पहचान है। जो कोई भी सिंधु नदी की जमीन पर या फिर सिंधु घाटी की सभ्यता में पैदा हुआ है, वह हिंदू है। ऐसे में हो सकता है कि आप किसी पुरुष की पूजा करते हों, या किसी महिला को पूजते हों। यह भी हो सकता है कि आप किसी सांप की पूजा करते हों, या फिर किसी पत्थर को ही पूजते हों - लेकिन कहलाएंगे तो आप हिंदू ही। अपने पति, पत्नी या बच्चे की पूजा करते हुए भी आप हिंदू हो सकते हैं। ऐसा भी संभव है कि आपने जिंदगी में किसी की भी पूजा न की हो, लेकिन इस दशा में भी आप हिंदू ही रहेंगे। इसलिए हिंदू होने का संबंध किसी धर्म विशेष से नहीं है।

हिंदू कोई धर्म नहीं है। यह तो बस एक संभावना है। यहां हर कोई वह सब करने को आजाद है, जो वह चाहता है। हमारे अलावा, ऐसी कोई भी संस्कृति नहीं है, जिसने अपने लोगों को ऐसी आजादी दी हो। बाकी की सभी संस्कृतियों में इस बात पर जोर था, कि लोगों को ऐसी किसी न किसी चीज में श्रद्धा रखनी ही चाहिए, जो उस संस्कृति में प्रभावशाली है। अगर कोई उसमें भरोसा नहीं करता था, तो उसे अपने आप ही उस सभ्यता का शत्रु मान लिया जाता था। इस गुनाह के लिए या तो उसे सूली पर चढ़ा दिया जाता था, या फिर जला दिया जाता था। लेकिन अपने यहां कभी इस तरह के उत्पीडऩ की परंपरा नहीं रही, क्योंकि किसी का कोई विशेष मत है ही नहीं। आप अपने घर के अंदर ही देख लीजिए। पति एक देवता की पूजा करता है, तो पत्नी किसी दूसरे की, और बच्चे किसी और देवता को मानते हैं। इसमें किसी को कोई समस्या नहीं है। हर कोई अपने हिसाब से चल सकता है। लेकिन इस संस्कृति की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है – कि हर कोई अपनी मुक्ति के लिए कोशिश करता है।

Images courtesy: Amritsar