सद्‌गुरुसद्‌गुरु से एक प्रश्न पूछा गया कि ईशा में साधना या योग अभ्यास करते समय चश्मा क्यों उतारा जाता है? और क्या यही बात कांटेक्ट लेंस के लिए भी लागू होती है? जानते हैं सद्‌गुरु का उत्तर

प्रश्न : सद्‌गुरु, क्या आप बता सकते हैं, कि जब हम साधना या अभ्यास करते हैं तो हम अपना चश्मा क्यों उतारते हैं? और क्या चश्मे की तरह कॉन्टैक्ट लेंस उतारना भी जरूरी होता है?

सिले हुए कपड़ों से भी ऊर्जा का प्रवाह रुकता है

सद्‌गुरु : चश्मा तो आपको जरूर उतार देना चाहिए। आपको याद होगा कि मैंने हाल ही में बताया था कि जब हम हठ योग करते थे, तो हमें बदन पर सिर्फ एक छोटे से छोटा कपड़ा डालने की इजाजत होती थी।

अगर आपके शरीर पर धातु या कोई अन्य चीज है तो उसे हटा देना चाहिए। कपड़ा भी जो आप इस्तेमाल करते हैं, वह भी कोशिश करना चाहिए कि जैविक हो जैसे सूती या रेशमी वस्त्र।
इसके पीछे सोच थी कि कुछ भी बाधक नहीं होना चाहिए। आपने देखा होगा कि भारत में पारंपरिक तौर पर जो लोग योगिक मार्ग पर होते हैं, वे कभी सिले हुए वस्त्र नहीं पहनते। वे लोग साधारण सा एक कपड़ा लपेटते हैं। हम धोती पहनते हैं, जो सिली हुई नहीं होती। महिलाएं साड़ी पहनती हैं। यह भी सिला हुआ नहीं होता। अगर सिले हुए वस्त्र पहनेंगे तो ऊर्जा की गतिविधि रुक जाएगी। इसलिए इंसान को खुद को ढंकने के लिए बस एक कपड़ा चाहिए। इसलिए जब आप साधना कर रहे हैं तो आप कम से कम चीजें धारण करें। अगर आपके शरीर पर धातु या कोई अन्य चीज है तो उसे हटा देना चाहिए। कपड़ा भी जो आप इस्तेमाल करते हैं, वह भी कोशिश करना चाहिए कि जैविक हो जैसे सूती या रेशमी वस्त्र।

शरीर से धातु हटा देना चाहिए

सिर्फ सूती या रेशमी वस्त्र ही पहनने चाहिए। मैं सोच रहा था कि अगर हम किसी तरह डेमो के जरिए आप लोगों के सामने यह चीज रख पाते।

इसलिए जब लोग योग करते हैं तो वे अपने बदन से हर तरह की चीजें यहां तक कि नाक की कील तक हटा देते हैं।
अगर आप विद्युतचुंबकीय तरंगों की तस्वीर लें तो आप पाएंगे कि उसके ऊपर कोई छोटा सा सामान या चीज रख देने पर एक सामान्य सा दबाव क्षेत्र बन जाएगा। इसीलिए योग करते समय कुछ जगहों को छोडक़र बदन के बाकी हिस्से पर धातु की कोई चीज रखने की इजाजत नहीं होती है। कुछ ऐसी जगहें, जो लगभग निष्क्रिय होती हैं, जैसे कान की लौ या इयरलोब, वहां धातु पहनने की इजाजत होती है। उसके अलावे कहीं कुछ और नहीं, यहां तक कि नाक में भी कुछ पहनने की इजाजत नहीं होती है। इसलिए जब लोग योग करते हैं तो वे अपने बदन से हर तरह की चीजें यहां तक कि नाक की कील तक हटा देते हैं।

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तीन मंडलों में बदलाव नज़र आ जाएंगे

जब योग अभ्यास या साधना के लिए आप लोगों को निर्देश दिया जाता है और हम प्रक्रिया शुरू करते हैं तो उस समय हम आपको ये सारी चीजें बताते हैं। हमने इसे तीन मंडलों के रूप में तैयार किया है।

इसलिए हमने इसे 147 दिनों का कार्यक्रम बनाया है। यह तीन मंडलों की साधना है।
एक मंडल 48 दिनों का होता है। इसलिए तीन मंडल 144 दिनों के हुए। तीन दिन इधर-उधर की चीजों और शुरुआत व अंत की तैयारी में निकल जाते हैं। इसलिए हमने इसे 147 दिनों का कार्यक्रम बनाया है। यह तीन मंडलों की साधना है। अगर आपने तीन मंडलों की साधना कर ली तो आपका सिस्टम अपने आप रूपांतरित हो जाएगा। अगर शुरू करने से पहले आपकी मेडिकल जांच की जाए - आपकी नब्ज, ब्लड प्रेशर जैसे दूसरे पैमानों को अगर देखें और उसके बाद तीन मंडलों की साधना पूरी होने के बाद इन्ही पैमानों को फिर देखें तो दोनों नतीजों में खासा फर्क दिखाई देगा। इसलिए आप कम से कम तीन मंडलों के लिए खुद को समर्पित कीजिए। दरअसल, लोग योग के लिए केवल वही एक दिन समर्पित करता हैं, जिस दिन वह योग सीखते हैं, अगली सुबह ही यह छूट जाता है।

रीढ़ पर धातु नहीं होना चाहिए

तो अगर आप अपने शरीर पर कोई बाहरी तत्व रखेंगे या पहनेंगे तो आपकी ऊर्जा तुरंत उस तरफ मुडऩे लगेगी, ऊर्जा की गति मुक्त नहीं होगी। हालांकि रुद्राक्ष भी अलग रखा जाता है, फिर भी रुद्राक्ष चल जाता है, क्योंकि यह कार्बनिक होता है। मैं यहां धातु, प्लास्टिक या किसी दूसरी चीजों की बात कर रहा हूं। महिलाओं के लिए, अगर वे अपने मेरूदंड पर किसी तरह के धातु से बनी कोई क्लिप इस्तेमाल कर रही हैं तो वह नहीं होनी चाहिए। अगर वह क्लिप सामने है, तो रीढ़ की हडड़ी पर होने की तुलना में फिर भी ठीक है। मुझे लगता है कि ऐसी क्लिपें अब बदल चुकी हैं। अब तो हर चीज प्लास्टिक की हो गई है। अगर धातु की है तो निश्चित तौर पर उससे बचना चाहिए।

हो सकता है चश्मा लगाने की जरुरत न रहे

इसलिए चश्मे को भी हटा देना चाहिए। वैसे बता दूं कि अगर आप तीन मंडलों तक साधना करते हैं तो आपका चश्मा वैसे ही उतर जाएगा। ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने योग का ठीक से अभ्यास किया तो उन्हें चश्मे से मुक्ति मिल गई।

अगर आपको इससे सिर दर्द या दूसरी समस्याएं हो रही हैं तो आप ज्यादा समय आंखें बंद करके बिताएं। अगले 90 दिनों में आपका चश्मा उतर सकता है।
मैं तो कहूंगा कि अगर चश्में के बिना चलना-फिरना आपके लिए बहुत ज्यादा जोखिमभरा या मुश्किल नहीं हो तो आप अगले दो मंडलों तक योग अभ्यास के दौरान बिना चश्मे के रहने की कोशिश कीजिए। अगर आपको इससे सिर दर्द या दूसरी समस्याएं हो रही हैं तो आप ज्यादा समय आंखें बंद करके बिताएं। अगले 90 दिनों में आपका चश्मा उतर सकता है। अगर आप कॉन्टैक्ट लेंस का इस्तेमाल कर रहे हैं तो बार-बार इनका उतारना व्यावहारिक नहीं होगा, इसलिए उन्हें लगे रहने दीजिए। अगर आप पूरी तरह से इनके बिना काम चला सकते हैं तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन क्लास के दौरान इन्हें बाहर निकालने और फिर लगाने का झंझट मत कीजिए। सुबह की साधना आप इनके बिना करने की कोशिश कीजिए। जहां तक ऊनी वस्त्र का सवाल है तो यह चलेगा, क्योंकि यह पूरी तरह से कार्बनिक होता है।

संपादक की टिप्पणी:

*कुछ योग प्रक्रियाएं जो आप कार्यक्रम में भाग ले कर सीख सकते हैं:

21 मिनट की शांभवी या सूर्य क्रिया

*सरल और असरदार ध्यान की प्रक्रियाएं जो आप घर बैठे सीख सकते हैं। ये प्रक्रियाएं निर्देशों सहित उपलब्ध है:

ईशा क्रिया परिचय, ईशा क्रिया ध्यान प्रक्रिया

नाड़ी शुद्धि, योग नमस्कार