गुरु किसी आर्थिक सम्मेलन में क्यों हिस्सा लेंगे?
सद्गुरु ने विश्व आर्थिक सम्मलेन और अन्य मंचों से कई बड़े कारोबारियों को संबोधित किया है। एक साधक ने उनसे पूछा कि वे विश्व के आर्थिक नेतृत्व में किस प्रकार का बदलाव लाना चाहते हैं। जानते हैं सद्गुरु का उत्तर..
प्रश्न : सद्गुरु, आप उद्योग व व्यापार जगत के लोगों को प्रेरित कर रहे हैं। इसी सिलसिले में आप दावोस और भारत में कुछ कारोबारियों से भी मिले। आप उनमें किस तरह का बदलाव लाना चाहते हैं?
कुछ लोग सफलता पाने में सफल रहे हैं
सद्गुरु: देखिए, सबसे पहले तो मैं यह कहना चाहूंगा कि आमतौर पर लोगों का यह मानना है कि कारोबार से जुड़े सभी लोग लालची होते हैं, जो कि बिल्कुल गलत है। कुछेक जागरूक लोगों को छोड़ दें, तो आजकल पूरी दुनिया ही कामयाबी के पीछे भाग रही है। कुछ लोगों ने इसे हासिल कर लिया है, जिससे बाकी लोग चिढ़े हुए या नाराज हैं। कुछ लोगों ने अगर कामयाबी हासिल कर ली है तो आपके मन में उनके लिए नाराजगी क्यों है? हर कोई कामयाबी पाना चाह रहा है। कुछेक जागरूक लोगों ने सचेतन रूप से खुद को कुछ और बनाने का फैसला किया है। बाकी लोग कामयाबी की उस मंजिल तक पहुंच पाने में असमर्थ रहे हैं।
थोड़ा और पाने की चाहत
तो बात लालच की नहीं है। आपको यह समझना होगा कि इंसान हमेशा उस जगह से थोड़ा-सा और आगे बढऩे की कोशिश में लगा है, जहां वह आज है। अगर उसके पास पैसा है, तो वह थोड़ा और पैसा कमाने के बारे में सोचता है। अगर उसके पास सत्ता, शक्ति या वर्चस्व है तो उसे वही थोड़ा और चाहिए।
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तो आपको हमेशा थोड़ा ज्यादा पाने की इच्छा होती ही है। अगर आपने उस थोड़े ज्यादा को पा भी लिया तो फ़ौरन ही आप उससे और थोड़ा ज्यादा पाने की इच्छा करने लगेंगे। इसका मतलब है कि आपके भीतर कुछ है, जो लगातार विस्तार चाहता है। यह क्या है? मान लें आप पैसे और पावर के बारे में सोच रहे हैं, पैसे का उदाहरण इसलिए लिया, क्योंकि हम यहां कारोबार जगत के बारे में बात कर रहे हैं। तो मान लें जो आप चाहते हैं, आपको मिल गया। छोटी-मोटी चीजें छोडि़ए, मान लीजिए आपको इस धरती का राजा या रानी बना दिया गया। क्या आप उससे संतुष्ट हो जाएंगे? नहीं, अब आप सितारों की ओर देखने लगेंगे। आप निश्चित रूप से ऐसा करेंगे, क्योंकि आपके भीतर कुछ ऐसा है जो किसी भी सीमा में खुद को स्थिर नहीं होने देना चाहता। यह असीमित हो जाना चाहता है। यह शानदार बात है कि आप असीमित को पाना चाहते हैं, लेकिन आपकी समस्या यह है कि असीमित को आप किस्तों में पाना चाहते हैं।
ऐसे अनंत तक कभी नहीं पहुँच सकते
एक, दो, तीन . . . ऐसे गिनती करके आप अनंत तक कभी पहुंच ही नहीं पाएंगे। आपकी इच्छाएं शानदार हैं, लेकिन इस धरती पर उनके नतीजे बड़े ही भयानक आ रहे हैं, क्योंकि अगर उन इच्छाओं का पीछा करने के लिए आप अपने दिमाग का प्रयोग करते हैं, तो आपको महत्वाकांक्षी या लालची कहा जाएगा। अगर आप अपनी भावनाओं का प्रयोग करते हैं तो आपको प्रेमी कहा जाएगा। महत्वाकांक्षा का अर्थ है कि इस दुनिया में आप ज्यादा से ज्यादा चीजों को हासिल करना चाहते हैं।
तो अभी आर्थिक नेताओं के साथ मेरी कोशिश यही है। आप एक ऐसी अर्थव्यवस्था को चला रहे हैं, जिसमें दुनिया की पचास से साठ फीसदी जनता शामिल ही नहीं है। मैं आपसे दान करने की बात नहीं कह रहा हूं। आप ऐसे ही कुछ दान मत दीजिए। सीएसआर यानी कॉरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी जैसी भारी भरकम चीजों को भी छोडि़ए। मैं तो बस बिजनेस के बारे में बात कर रहा हूं। अगर आप कारोबार करना चाहते हैं तो सबसे अहम बात यह है कि आपके पास अच्छी गुणवत्ता वाले लोग हों। मानव संसाधन और बाजार आपके कारोबार का आधार हैं। पचास फीसदी जनता को नजरंदाज करके अगर आप कारोबार कर रहे हैं तो आपको कारोबार की समझ ही नहीं है।
शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश जरुरी है
जब मैं ‘इंडिया इकॉनमिक सम्मिट’ यानी भारतीय आर्थिक शिखर सम्मेलन में था, तो एक भारतीय मंत्री ने कहा था कि शिक्षा और स्वास्थ्य को छोडक़र हम सभी सेवा क्षेत्रों का निजीकरण कर सकते हैं। ऐसा क्यों, शिक्षा और स्वास्थ्य को छोडक़र क्यों? क्योंकि आपको लगता है कि ये क्षेत्र लाभ नहीं देते, क्योंकि आप लाभ को तिमाही बैलेंस शीट की तरह से देखते हैं। आप लाभ को इस तरह नहीं देखते कि वह आपके कारोबार के भविष्य को संवारने वाला हो।
सभी को शामिल करने वाली नीति
मैं सभी को साथ लेकर चलने वाली आर्थिक नीति की बात कर रहा हूं। इसी नीति का एक हिस्सा है - अंग्रेजी और कंप्यूटर आधारित शिक्षा, जिसे भारत के गांवों तक हम पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं।
अभी भारत में हम दस फीसदी विकास दर तक पहुंचने के ख्वाब में डूबे हुए हैं। मैं कहता हूं कि यह खोखला ख्वाब है, क्योंकि भारत की केवल पांच फीसदी जनसंख्या ही अंग्रेजी में बात कर सकती है और कंप्यूटर जानती है। इसलिए केवल वही पांच फीसदी लोग ही इस विकास में हिस्सा ले पा रहे हैं। पंचानबे फीसदी को छोड़ देना कारोबार के लिहाज से कोई अक्लमंदी की बात नहीं होगी। इसलिए आपको कोई दान करने की जरूरत नहीं है। कृपया मानवीय स्वास्थ्य और कल्याण में निवेश कीजिए, क्योंकि यही आपको फायदा पहुंचाएगा। आपका बिजनेस खूब फूलेगा-फलेगा।
आर्थिक सम्मलेन में आध्यात्मिक गुरु किसलिए
बात तब की है जब मैं पहली बार विश्व आर्थिक सम्मेलन में भाग लेने गया था। लोग मेरी ओर बड़े ही नाराजगीपूर्ण और अनमने ढंग से देख रहे थे। उन्हें लग रहा था कि इस सम्मेलन में एक आध्यात्मिक गुरु क्या कर रहा है? मैंने सोचा कि चलो इनकी भाषा में ही इनसे बात करते हैं। मैंने उनमें से एक से पूछा - आप क्या करते हैं? मतलब आपका बिजनेस क्या है? उस व्यक्ति ने कहा- मैं दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कंप्यूटर निर्माता कंपनी में काम करता हूं।