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क्योंकि भक्ति आपको भ्रम में डाल सकती है!

प्रश्नकर्ता : ध्यानलिंग की मूल विशेषता ध्यान क्यों है ?

सद्‌गुरु: हमने ध्यानलिंग के लिये ध्यान क्यों चुना है और ये इसका सबसे अधिक प्रभावशाली गुण क्यों है -- इसका अर्थ ये नहीं है कि भक्ति का कोई स्थान नहीं है। भक्ति अच्छी है पर ध्यानलिंग का सर्वाधिक प्रभावशाली गुण और वह मुख्य कार्य जो हम करते हैं , वह ध्यान है, भक्ति नहीं ! इसका कारण बहुत सरल है क्योंकि भले ही (आध्यात्मिक) विकास के लिये भक्ति सबसे तेज़ मार्ग है लेकिन भक्ति, बहुत ही ज़्यादा भ्रामक हो सकती है। आप ये जानते हैं, है कि नहीं ? आज आप सोचते हैं, आप पूरी तरह भक्ति में हैं। कल सुबह अगर कोई छोटी सी बात भी गलत हो गई, तो आपकी भक्ति गायब हो जाएगी। लेकिन ध्यान की प्रकृति ऐसी नहीं है -- आप ध्यान में खुद से छल नहीं कर सकते। हो सकता है कि लंबे समय तक ये न हो, आप का ध्यान न लगे पर जब ये होता है तो होता ही है। वहां से आप पीछे नहीं लौटते।

इसलिये हमने ध्यान को चुना है क्योंकि विचारशील मन और भक्ति, साथ साथ नहीं रह पाते । अगर आप वास्तव में बस समर्पित हो सकते तो हम आप को भक्ति की तरफ ले जाते क्योंकि आध्यात्मिक विकास के लिये ये ज्यादा तेज़ मार्ग है।

इसलिये हमने ध्यान को चुना है क्योंकि विचारशील मन और भक्ति, साथ साथ नहीं रह पाते । अगर आप वास्तव में बस समर्पित हो सकते तो हम आप को भक्ति की तरफ ले जाते क्योंकि आध्यात्मिक विकास के लिये ये ज्यादा तेज़ मार्ग है। लेकिन समस्या ये है कि भक्ति में आप को पता नहीं चलता कि आप आगे जा रहे हैं या पीछे। आप को पता नहीं चलता कि आप किस तरफ जा रहे हैं क्योंकि ये सिर्फ भावना है -- भावना को इतनी ऊंचाई पर ले जाना है कि आप के लिये सारी रुकावटें ख़त्म हो जायें, सारे बंधन टूट जायें, सीमाएँ समाप्त हो जायें। लेकिन इस पर कोई रोक या नियंत्रण नहीं है और विचारशील मन भक्ति के मामले में बहुत भ्रम में पड़ सकते हैं। शायद भक्ति हो ही नहीं, सिर्फ उसका दिखावा ही हो, ऐसा हो सकता है। इसलिए हमने ध्यान को चुना, वही ध्यानलिंग की मूल विशेषता है।