पद्मा: सद्‌गुरु, ध्यानलिंग मंदिर में अनुष्ठान क्यों नहीं किए जाते हैं?

सद्‌गुरु: पारंपरिक तौर पर, अस्तित्व की कुछ खास प्रक्रियाओं को समझने के बाद ही अनुष्ठान बनाए गए थे। उन्हें इसलिए बनाया गया था, क्योंकि अनुष्ठान वाली जगह पर कुछ मात्रा में ऊर्जा, कुछ मात्रा में प्राण इकठ्ठा हो जाते हैं, जिससे लोग फायदा उठाते हैं। अलग-अलग तरह के फायदों के लिए कई तरह के अनुष्ठान किए जाते हैं। इसके पीछे एक विज्ञान है। अगर इसे सही तरह से किया जाए तो इससे एक खास ऊर्जा-क्षेत्र बनाया जा सकता है - बशर्ते अनुष्ठान के बुनियादी कायदों को बरकरार रखा गया हो। यह इस पर भी निर्भर करता है कि अनुष्ठान कराने वाला कैसा और कितना काबिल है। लेकिन ये अनुष्ठान ध्यानलिंग में अर्थहीन होंगे, जहां पहले ही ऊर्जा की तीव्रता इतनी प्रबल है।

ऊर्जा के रूप में ध्यानलिंग की मौजूदगी बहुत शक्तिशाली है। इस तरह के ऊर्जा क्षेत्र में अनुष्ठान बेकार होंगे, क्योंकि ध्यानलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा ही कुछ इस तरह से की गई है। यह तीव्रता के उस उच्च स्तर पर है, जिस पर कोई आकार कायम रह सकता है। अगर आप ऊर्जा को उससे ज़्यादा तीव्र बनाते हैं, तो यह निराकार हो जाएगी। जब इस स्तर की तीव्रता और इस किस्म की ऊर्जा मौजूद हो, तो किसी तरह का अनुष्ठान बेकार होगा। ध्यानलिंग सभी सात चक्रों के साथ मौजूद है। ये सात चक्र जीवन के सात आयामों को दिखाते हैं। यह ऊर्जा का एक संपूर्ण तंत्र है, जिसका इस्तेमाल एक इंसान जीवन के कई स्तरों पर कर सकता है।

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दक्ष: सद्‌गुरु, अगर मैं पूजा ही नहीं कर सकता, तो फिर मैं मंदिर के अंदर क्या करूंगा? मेरे लिए मंदिर और पूजा साथ-साथ हैं। इसके बिना तो मैं मंदिर में खो ही जाऊंगा।

सद्‌गुरु: मैंने तो सोचा कि आप पहले ही खो चुके हैं! तो अब, शायद खुद को खोजने के लिए, बिना अपनी पूजा प्रक्रिया के, आपको वहां जाकर बैठना चाहिए। जैसा मैं पहले भी कह चुका हूं, जब कोई इंसान अर्पण की अवस्था में होता है, जब वह खुद एक अर्पण बन जाता है, तब वह सबसे ज़्यादा ग्रहणशील होता है। सभी योग अभ्यासों को इस तरह से बनाया गया है कि अभ्यासों को गुरु को अर्पित करने के भाव से किया जाता है। मंदिर से ज़्यादा से ज़्यादा फायदा उठाने के लिए इंसान को उसमें उसी भावना से जाना चाहिए, जिस भावना से वह अपने योग अभ्यास करता है, खुद को अर्पित करते हुए। जब हम योग सिखाते हैं, तो अभ्यासों को हमेशा इस तरह से सिखाया जाता है कि वे सिर्फ अभ्यास न होकर गुरु के प्रति अर्पण अधिक होते हैं। यह आपको खोलने और ग्रहणशील बनाने का एक साधन है, एक तरीका है। हमारी परंपरा में, झुककर प्रणाम करने और जो दूसरी तरह की प्रक्रियाएं बनाई गई हैं, वे इसी पर आधारित हैं। मिसाल के लिए, अगर आप पहले अभ्यास को लेते हैं, सूर्य नमस्कार, जिसे योगाभ्यास करने वाले ज़्यादातर लोग सुबह करते हैं, तो यह सिर्फ आपके सिस्टम को संतुलित बनाने के लिए किया जाने वाला एक अभ्यास ही नहीं है, यह खुद को अर्पित करने का एक तरीका भी है। अपने पूरे शरीर का इस्तेमाल करके की जाने वाली यह एक तरह की पूजा है। खुद को अर्पित करने की प्रक्रिया में, आप उस चीज के प्रति सबसे ज़्यादा ग्रहणशील बन जाते हैं, जो सुबह का सूरज आपको देना चाहता है, जो वह दिन आपको देना चाहता है। अपनी पूरी प्रणाली को एक अर्पण बनाकर आप सबसे बेहतर को आत्मसात कर सकते हैं।

जब कोई इंसान अर्पण की अवस्था में होता है, जब वह खुद एक अर्पण बन जाता है, तब वह सबसे ज़्यादा ग्रहणशील होता है।

 

मंदिर जाने का सही तरीका

निश्चित रूप से मंदिर में जाने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि अर्पण की भावना से जाया जाए, कोई चीज चढ़ाने या कुछ हासिल करने नहीं, बस ख़ुद को एक अर्पण बनाकर जाना चाहिए। मंदिर में जाने से पहले अपने सिस्टम को संतुलित करना एक इंसान के लिए निश्चित रूप से सहायक होगा। जो लोग मंदिर में घुसने से पहले, कुछ मिनट की नाड़ी-शुद्धि प्रक्रिया से अपने सिस्टम को संतुलित करना चाहते हैं, उनकी मदद के लिए अब वहां पर ब्रह्मचारी मौजूद रहते हैं। इससे, वहां जो कुछ भी मौजूद है, उसके प्रति आपका सिस्टम अधिक ग्रहणशील हो जाता है। जब आप ध्यानलिंग के प्रभाव क्षेत्र में होते हैं, जब आप इतने तीव्र ऊर्जा-क्षेत्र में होते हैं, तो यह कुछ मांगने का वक्त नहीं होता। आप अपने दिमाग से जो कुछ भी मांगते हैं, वह सिर्फ एक सीमित संभावना होती है। उस स्थान में जो संभावना मौजूद है, वह आपकी कल्पना से कहीं ज़्यादा विशाल है। अगर आपको भरोसा है कि चैतन्य आपसे ज़्यादा बुद्धिमान है, तो यही बेहतर होगा कि आप खुद को बस एक अर्पण बना लें और चैतन्य को खुद के जरिए काम करने दें, बजाय इसके कि आप यह तय करें कि क्या होना चाहिए। यही वजह है कि हम कहते हैं कि यह प्रार्थना करने की जगह नहीं है। यह आपके मांगने की जगह नहीं है, यह सुझाव देने की जगह नहीं है, यह कोई ऐसी जगह भी नहीं है, जहां आप आदेश दें कि आपके साथ क्या होना चाहिए। बस इसे अपने साथ घटित होने दें, एक उच्च स्तर की बुद्धि को अपने सिस्टम के जरिए काम करने दें।