क्या ध्यान रिश्तों की उलझन सुलझा सकता है?
एक साधक का कहना है कि सिर्फ ध्यान करते समय उसे अपने रिश्तों की समस्याओं के हल सूझते हैं। सद्गुरु हमें बता रहे हैं कि रिश्तों की समस्याओं के समाधान के लिए ध्यान का सहारा लेना ठीक नहीं है। वे कहते हैं कि ध्यान का मकसद अस्तित्व की बुनियादी समस्या को सुलझाना है।
प्रखर : सद्गुरु, मैं फिलहाल अपने एक रिश्ते में कुछ समस्याओं से जूझ रहा हूं। मैं जब सुबह ध्यान के लिए बैठता हूं तो मुझे इस समस्या का समाधान मिलता है, एक जवाब मिलता है। यह जवाब कहां से आता है? क्या यह जवाब आकाशीय है, दैवीय है या फिर महज मेरे दिमाग की उपज है?
सद्गुरु : मेरे पूरे जीवन की कोशिश यही रही है कि रहस्यवाद को, आध्यात्मिकता को सरल व तार्किक तरीके से आपके सामने पेश कर सकूं, ताकि आप उसे आसानी से समझ सकें, ग्रहण कर सकें। लेकिन तमाम लोग ऐसे हैं जो आसान चीजों को भी रहस्यमय या दैवीय बनाने में लगे हैं। अगर कहीं घंटी बजती है या कोई फूल गिरता है या फिर अगर बिजली चली जाती है, तो लोग इसमें दैवीय आयाम ढूंढने लगते हैं। दैवीय आयाम को इंसानों की पहुंच में लाने के बजाय वे लोग जीवन के सहज व सरल पक्षों(भागों) को दूसरे आयामों में ले जाने की कोशिशों में लगे हुए हैं।
रिश्तों की उलझनों के लिए ध्यान का सहारा न लें
अगर आप मानव अस्तित्व की सबसे बुनियादी समस्या से निबटने की कोशिश करते हैं तो बाकी सभी समस्याएं तुच्छ और अर्थहीन नजर आती हैं। अगर आप इस स्थिति तक नहीं पहुंचे हैं तो कोई बात नहीं। लेकिन फिर भी जुकाम ठीक करने के लिए कीमो का इस्तेमाल करना ठीक नहीं। यह बेहद अफसोस की बात है कि जब आप ध्यान करते हैं, केवल तभी आपके मन में कुछ स्पष्टता रहती है, बाकी समय आपके मन में भारी हलचल या कोलाहल रहता है। इसकी वजह है आपके भीतर बुनियादी तौर पर एक भ्रम है। हम ईशा क्रिया द्वारा इसको सरल तरीके से दूर करने की कोशिश करते हैं। क्रिया के दौरान कहा जाता है- ‘न ही मैं शरीर हूं और न ही मन हूं।’ अगर आपने यह चीज अनुभव के स्तर पर समझ ली तो आपकी बाकी समस्याएं एक झटके में गायब हो जाएंगी।
खुद को जानने पर सब कुछ एक खेल होता है
क्या आपने परोपकार(दूसरे पर उपकार) के लिए शादी की थी? आपने शादी इसलिए की थी कि आप अकेले नहीं रह सकते थे। अगर कोई आपका सहारा है और उसी सहारे को लात मार रहे हैं तो आपका औंधे मुंह गिरना तय है। आपकी दलील होगी, ‘अरे सद्गुरु, ये सब इतना आसान नहीं है। आप नहीं जानते कि हर दिन मेरे साथ क्या कुछ हो रहा है?’ मुझे ये सारी चीजें पता हैं। बल्कि आप अपनी जिंदगी का सही नजरिया खो रहे हैं। आपका ध्यान रोजमर्रा की तुच्छ समस्याओं के हल के लिए नहीं हैं, बल्कि यह मानव अस्तित्व की सबसे बुनियादी समस्या से निबटने के लिए है।
आप नहीं जानते कि आप इस दुनिया में क्यों आए हैं और आपके अस्तित्व की प्रकृति क्या है? अगर आप अपने अस्तित्व की मूल प्रकृति को जानते तो फिर ये सारी चीजें आपके लिए महज एक खेल होतीं, एक नाटक होता। आप जिंदगी के इस खेल या नाटक को जब तक, जहां तक और जिस तरह खेलना चाहते, अपनी जरूरत के हिसाब से खेल सकते थे। हर व्यक्ति को एक ही तरह से, एक ही स्तर तक नाटक खेलने की जरूरत नहीं है। कुछ लोग इस जीवन लीला में पूरी तरह से लीन हो जाते हैं तो कुछ लोग इस नाटक में सिर्फ ऊपरी तौर पर शामिल होते हैं। आप कह सकते हैं कि ‘अरे, आप मेरे परिवार, मेरे काम और मेरे रोजगार को एक नाटक कह रहे हैं।’ अगर आप अभी इस बात को नहीं समझे तो आपको यह सब तब समझ में आएगा, जब नाटक का पर्दा गिरने वाला होगा। बेहतर होगा कि आप अभी इसे समझ जाएं। अगर अभी आप समझ गए तो इस जीवनरूपी नाटक का आनंद ले पाएंगे। अगर आप इस नाटक के कारण दुख झेल रहे हैं तो जीवन बेकार है।
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