कहते हैं कि जब क्रिकेट का विश्व कप शुरु होता है तो लोगों को 'क्रिकेट का बुखार' चढ़ जाता है। अब जैसे-जैसे अंतिम मुकाबला करीब आ रहा है यह बुखार भी बढ़ता जा रहा है। सबकी चाहत है कि हमारा देश इसे जीते, लेकिन उसके लिए क्या करना चाहिए खिलाड़ियों को, बता रहे हैं सद्‌गुरु:

सद्गुरुस्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था कि प्रार्थना करने की तुलना में आप फुटबॉल खेलकर ईश्वर के ज्यादा करीब जा सकते हैं। क्योंकि प्रार्थना तो आप बिना पूरी एकाग्रता के या कहें बिना पूरी सहभागिता के कर सकते हैं मगर कोई खेल उसमें पूरी तरह शामिल हुए बिना नहीं खेल सकते और शामिल होना यानी सहभागिता ही जीवन का सार तत्व है। खेल-भावना का मतलब है कि आप खेलना चाहते हैं। खेलने की इच्छा का मतलब है कि आप जिस भी हालात में हैं, आप उसमें पूरे तौर पर जीवंत हैं, उसमें पूरी तरह शामिल हैं। यही जीवन का सार तत्व है। आम जीवन में, अगर कोई चीज आध्यात्मिक प्रक्रिया के वाकई करीब है, तो वह खेल है।

बैट, बॉल और आप

बचपन में हम कोई खेल सिर्फ इसलिए खेलते थे क्योंकि उसमें हमें मजा आता था। लेकिन धीरे-धीरे खेल निवेश के एक अवसर के रूप में विकसित हुआ है।

आप कभी हारने के लिए कोई खेल नहीं खेलते, आप हमेशा जीतने के लिए खेलते हैं, मगर यदि आप हार जाते हैं, तो उसे भी आप सहजता से स्वीकार कर लेते हैं। अगर आप जीवन के हर पहलू में इस मूल तत्व को याद रखें, तो आप खेल-भावना वाले इंसान हैं।
जैसे क्रिकेट विश्व कप को ही लें, बहुत से खिलाड़ियों के साथ ऐसा होता है कि जैसे-जैसे वे चैंपियनशिप में ज्यादा से ज्यादा शामिल होते जाते हैं, वे खेल भूल जाते हैं। तब खेल एक काम बन जाता है।
खिलाड़ी अपना बेहतरीन प्रदर्शन तभी कर सकते हैं, जब वे खेल का आनंद उठाएं। भारत के लिए खेलने का मतलब है, एक अरब लोगों की उम्मीदों को पूरा करना और यह आसान काम नहीं है। जब खिलाड़ी दूसरे लोगों की उम्मीदों को पूरा करने के लिए खेलना शुरू कर देते हैं, तो उनके ऊपर दबाव होता है और उनकी शारीरिक क्षमता भी सीमित हो जाती है।
जब आप क्रीज पर होते हैं, तो वहां सिर्फ आप हों, बैट हो और बॉल हो। यह क्रिकेट की, भारत की या एक अरब लोगों की भी बात नहीं है। आपको विपक्षी टीम को हराने की कोशिश करने की भी जरूरत नहीं है। आपको बस बॉल को मारना है।
इंसानी दिमाग में तीन चीजें होती हैं - बोध, याद्दाश्त और कल्पना। खेल से जुड़ी कुछ याद्दाश्त होती है, इस बात की कल्पना होती है कि आप कप को कैसे उठाएंगे और आपकी ओर आती गेंद एक हकीकत होती है। लोग इन चीजों को अलग-अलग नहीं रख पाते। आप याद्दाश्त और कल्पना को दिमाग में तो रख सकते हैं मगर संभालना आपको सिर्फ हकीकत को ही है। हकीकत यह है कि बॉल आपकी ओर आ रही है और आपके हाथ में बैट है और आपको बॉल को उस तरह मारना है, जिस तरह मारे जाने लायक वह बॉल है – उस तरह नहीं जैसे भारत या कोई इंसान आपसे उम्मीद कर रहा है।
आप कोई खेल इसलिए नहीं जीतते क्योंकि आप जीतना चाहते हैं। आप कोई काम सही तरीके से करते हैं, तभी आपको कामयाबी मिलती है। कुछ तरीकों से आप मन की इस स्पष्टता को कायम रख सकते हैं। इसके लिए आपको दिन में 12 घंटे खर्च करने की जरूरत नहीं है। अगर आप दिन में 20 से 30 मिनट खर्च करें, तो आप अपने लिए चमत्कारी चीजें कर सकते हैं।
जब कोई इंसान वाकई खुश और बेफिक्र होता है, तो वह जबर्दस्त शारीरिक क्रियाएं कर सकता है। यह योग का मुख्य पहलू है।
जब आप क्रीज पर होते हैं, तो वहां सिर्फ आप हों, बैट हो और बॉल हो। यह क्रिकेट की, भारत की या एक अरब लोगों की भी बात नहीं है। आपको विपक्षी टीम को हराने की कोशिश करने की भी जरूरत नहीं है। आपको बस बॉल को मारना है।
व्यक्ति खेल की मांग के अनुसार बहुत सहजता से क्रियाएं कर सकता है। इस तरह दूसरी टीम उनकी ओर जो भी बॉल फेंकेगी, वे दक्षता से उस पर अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं।
क्रिकेट का कोई धुरंधर या महान खिलाड़ी कैसे पैदा होता है? निश्चित रूप से इसलिए नहीं क्योंकि उसके खिलाफ खेलने वाली टीम बेहद कमजोर थी। ऐसे खिलाड़ी में तालमेल जबरदस्त होता है। वह जानता है कि वह अपने जीवन से क्या चाहता है। वह जो चाहता है, उसके लिए वह इतना समर्पित होता है कि उसकी इच्छा एक हकीकत बन जाती है। अगर हमारे क्रिकेटर अपनी ऊर्जा, शरीर और मन को इस तरह व्यवस्थित कर सकें कि वे अधिक केंद्रित और एकाग्र हो सकें तो सब कुछ बेहतरीन होगा।

खेल की पवित्रता

किसी खेल की पवित्रता को इसी से समझ सकते हैं कि इसके द्वारा इंसान अपनी सीमाओं से ऊपर उठ जाता है और उन्मुक्तता की ऐसी स्थिति प्राप्त कर लेता है जो आम तौर पर सिर्फ आध्यात्मिकता के शिखर पर ही देखने को मिलती है। इसलिए खेल हमेशा से ईशा का एक हिस्सा रहा है। हमारे सभी कार्यक्रमों में खेल का एक तत्व होता है। क्योंकि खेल जीवन है और जीवन खेल है।
किसी भी खेल का मूल तत्व यह है कि अगर आप कोई खेल खेलना चाहते हैं तो आपके अंदर जीतने की आग होनी चाहिए। साथ ही आपके अंदर यह देखने का संतुलन भी होना चाहिए कि ‘अगर मैं हार जाता हूं, तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।’ आप कभी हारने के लिए कोई खेल नहीं खेलते, आप हमेशा जीतने के लिए खेलते हैं, मगर यदि आप हार जाते हैं, तो उसे भी आप सहजता से स्वीकार कर लेते हैं। अगर आप जीवन के हर पहलू में इस मूल तत्व को याद रखें, तो आप खेल-भावना वाले इंसान हैं, आप सच्चे खिलाड़ी हैं। और दुनिया आपसे बस इसी की उम्मीद करती है कि आपके अंदर खेल-भावना हो। आप कहीं भी हों, जो कुछ भी कर रहे हों, जिस तरह के हालात में हों, आपके अंदर खेल-भावना हो।

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