सद्‌गुरुमन के दो अलग-अलग आयामों को इंटलेक्ट या बुद्धि और इंटेलिजेंस या प्रज्ञा कहा जाता है। जानते हैं बुद्धि और प्रज्ञा के अंतर के बारे में...

अंग्रेजी शब्द माइंड स्पष्ट नहीं है

अंग्रेजी भाषा इंसानी मन के अलग-अलग आयामों में अंतर नहीं करती। इस भाषा में मन बस एक बड़ी चीज होती है। एक चीज को वे ‘इंटलेक्ट’ यानी बुद्धि कहते हैं और एक चीज को ‘माइंड’ यानी मन। बुद्धि एक धारदार रेजर की तरह होती है। अगर आप इसे धारदार रखेंगे तो यह हरेक चीज की काट-पीट करेगी। तो अगर आप जानना चाहते हैं कि आपकी मां वास्तव में कौन हैं तो आपको अपने मन में उनकी चीरफाड़ करनी चाहिए। लेकिन तब आपको वह निहायत बकवास लगेंगी। उदाहरण के लिए मैं आपको बतौर एक इंसान चीरफाड़ करके अभी दिखा सकता हूं कि आप किस तरह बकवास नजर आते हैं। लेकिन वही एक पहलू सब कुछ नहीं है। आप अगर इसको गले लगाएं या स्वीकार कर लें तो यह बिलकुल दूसरी तरह का नजर आएगा।

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बुद्धि और प्रज्ञा का फर्क समझना होगा हमें

अंग्रेजी में दो शब्द हैं - इंटेलेक्ट और इंटेलीजेंस। हिंदी में इंटेलेक्ट को बुद्धि और इंटेलीजेंस को प्रज्ञा के रूप में समझ सकते हैं। अधिकांश लोग यह समझ ही नहीं पाते कि कहां बुद्धि का दायरा खत्म होता है और कहां से प्रज्ञा का आयाम शुरू होता है।

 यह कुछ वैसा ही है कि अगर आप किसी चीज पर चाकू फेंकें और वह अपने निशाने से चूक जाए तो भी वह उस चीज को काटेगा, जिस पर यह गिरेगा या टकराएगा। फिलहाल आपकी बुद्धि की हालत भी कुछ ऐसी ही है। 
वे लोग हर चीज में अपनी बुद्धि लगा देते हैं। जिससे वे अपने जीवन के सबसे सुंदर पहलू को भी बदसूरत बना लेते हैं। फिर वे अपने जीवन के सबसे बदसूरत पहलू से छुटकारा नहीं पा सकते, क्योंकि उन्हें पता ही नहीं होता कि बुद्धि को कहां रोकना है। आप अपनी बुद्धि को रोक नहीं पाते, क्योंकि उसके लिए न तो कोई साधना की गई है और न ही कोई काम किया गया है। अगर आप अपने शरीर पर भी कोई काम नहीं करेंगे, जैसे आप अगर कोई व्यायाम न करें, कोई भी मेहनत का काम न करें और ऐसे में आपसे थोड़ी दूर भी दौडऩे के लिए कहा जाए तो आप न तो चार कदम से ज्यादा दौड़ पाएंगे और न ही ठीक-ठीक वहां रुक पाएंगे जहां आपको कहा जाएगा। लेकिन अगर आप फिट हैं, शरीर चुस्त है, तो आप बिलकुल वहीं रुकेंगे, जहां रुकने को कहा जाएगा। इसी तरह से अगर बुद्धि भी चुस्त हुई तो यह ठीक वहीं रुक जाएगी, जहां आप इसे रोकना चाहेंगे। लेकिन फिलहाल बुद्धि पर अभी उतना काम नहीं हुआ है, इसलिए एक बार अगर आपने इसे ढीला छोड़ दिया तो यह हर तरफ, हर चीज काट डालेगी। यह कुछ वैसा ही है कि अगर आप किसी चीज पर चाकू फेंकें और वह अपने निशाने से चूक जाए तो भी वह उस चीज को काटेगा, जिस पर यह गिरेगा या टकराएगा। फिलहाल आपकी बुद्धि की हालत भी कुछ ऐसी ही है। आप जिस पर निशाना साधना चाहते हैं, यह उसे नहीं मारता। यह बाकी सभी चीजों को मारता है, उन्हें टुकड़ों में काट देता है, क्योंकि बुद्धि एक छुरी की तरह है। यह जितनी तेज होगी, उतनी ही यह आपके लिए और आपके आसपास के लोगों के लिए तकलीफ का कारण बनेगी।

जानवरों में बुद्धि नहीं प्रज्ञा होती है

यह वाकई अफसोस की बात है, क्योंकि यह अपने आप में एक शानदार औजार है। जरा सोचिए कि इसके बिना आपकी क्या स्थिति होगी? इसके बिना हम बस जानवरों की तरह होंगे। अब यह न सोचें कि जानवरों में प्रज्ञा नहीं होती, उनमें अपनी तरह की प्रज्ञा होती है और वे हमसे बेहतर जीवन जीते हैं। लेकिन उनमें बुद्धि नहीं होती। जंगली जानवरों में अपने इलाके, जगह और अपने जीवन के बारे में बेहतर समझ होती है। उन्हें पता होता है कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं।

बस उनके पास वैसी बुद्धि नहीं है, जिस तरह की आपके पास है। आपको मिला एक वरदान आपके लिए एक अभिशाप में बदल गया है, क्योंकि आपको पता नहीं कि इसे कैसे संभाला जाए। अगर मैं आपको एक चाकू दूं, जो बेहद धारदार हो, अगर आपको पता ही न हो कि इसे कैसे पकड़ा जाए, अगर आपको पता ही नहीं हो कि कहां इसका हैंडल है और कहां इसका ब्लेड, और आपने इसे गलत तरफ से पकड़ लिया तो यह आपको ही नुकसान पहुंचाएगा।

बुद्धि की प्रकृति समझने की कोशिश करें

तो आपने एक जबरदस्त उपहार को आपने एक अभिशाप में बदल दिया है, क्योंकि आपने इस उपहार की प्रकृति को जानने की कोशिश ही नहीं की।

पहले दिन से लोग आपको यह बताते आ रहे हैं कि कैसे इसका इस्तेमाल करें, लेकिन कोई आपसे यह नहीं कह रहा है कि इसे समझने की कोशिश करें।
आपने उसकी ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया। पहले दिन से लोग आपको यह बताते आ रहे हैं कि कैसे इसका इस्तेमाल करें, लेकिन कोई आपसे यह नहीं कह रहा है कि इसे समझने की कोशिश करें। आज की शिक्षा व्यवस्था भी यही बताती है कि आप जो कुछ भी जानते हैं, उसका खूब इस्तेमाल कीजिए और खुद को और धरती को तबाह कर दीजिए। कोई आपको इस पर ध्यान देने के लिए नहीं कह रहा कि यह चाकू कैसे बना है, कैसे हम इसका इस्तेमाल कर सकते हैं और कैसे नहीं। इस दिशा में अभी तक काम नहीं हुआ है। तो इंसान अपनी  बुद्धि के चलते तकलीफ पा रहा है। बुद्धि ही है जो इस धरती पर विचरने वाले दूसरे जीवों से हमें अलग करती है और हमारे लिए एक उपहार है। लेकिन अफसोस की बात कि यही चीज हमारे दुखों का मूल बनती है। फिलहाल यह बुद्धि हमारे लिए इतनी अधिक पीड़ा व मुश्किलों का कारण इसलिए बनी हुई है, क्योंकि आप बुद्धि रूपी चाकू को गलत छोर से पकड़े हुए हैं। भारत में एक परंपरा है कि जब आप किसी को चाकू दें तो उसे एक खास तरीके से देते हैं। नहीं तो आप दूसरे को घायल कर देंगे।

स्वामी विवेकानंद के जीवन की रोचक घटना

इसी से जुड़ी एक रोचक घटना है। रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने उनके संदेश व शिक्षाओं को फैलाने के लिए अमेरिका जाने का फैसला किया।

नरेन ने चाकू के धार वाले सिरे को हाथ में पकडक़र मां को चाकू का हत्था पकडऩे को दिया। मां ने चाकू ले लिया और उसे एक तरफ रख दिया और बोली, ‘तुम जा सकते हो।’
उन दिनों समुद्र पार कर किसी दूसरे देश जाना किसी दूसरे ग्रह पर जाने जैसा था। अगर आप भाप से चलने वाले पानी के जहाज से तीन महीने की यात्रा पर जाएं तो यह कहना मुश्किल था कि आप वापस लौटेंगे भी या नहीं। तो वे जाने से पहले परमहंस की पत्नी शारदा देवी से आशीर्वाद लेने पहुँचे। जब वह उनके पास पहुंचे और उन्होंने अपनी इच्छा उन्हें बताई तो उस वक्त वह कुछ काम कर रही थीं। शारदा देवी ने बिना सिर उठाए उनकी बातें सुनी। विवेकानंद ने कहा, ‘मैं पश्चिमी देशों में जाकर अपने गुरु की शिक्षाओं को फैलाना चाहता हूं। क्या मैं जा सकता हूं?’ अपने काम में व्यस्त, बिना अपना सिर उठाए उन्होंने विवेकानंद से कहा, ‘नरेन क्या तुम मुझे वह चाकू दे सकते हो?’ नरेन ने चाकू उठाया और गुरु मां को दे दिया। चूंकि नरेन एक खास तरीके के व्यक्ति थे, इसलिए उन्होंने एक खास तरीके से वह चाकू उन्हें दिया। नरेन ने चाकू के धार वाले सिरे को हाथ में पकडक़र मां को चाकू का हत्था पकडऩे को दिया। मां ने चाकू ले लिया और उसे एक तरफ रख दिया और बोली, ‘तुम जा सकते हो।’ तब नरेन ने इस बात पर गौर किया और फिर उन्होंने उनसे पूछा, ‘आपने मुझसे चाकू क्यों मांगा? आपको तो सब्जी काटनी नहीं थीं। जो भी काटना था, वह सब पहले ही बर्तन में कटा रखा हुआ है। फिर आपने चाकू क्यों मांगा?’ गुरु मां ने कहा, ‘मैं यह देखना चाहती थी कि तुम चाकू कैसे पकड़ाते हो। तुम अपने गुरु की शिक्षाओं को फैलाने के लिए जा सकते हो।’