आप पुरुषोचित गुणों को जड़ मान सकते हैं और स्त्रियोचित गुणों को फूल और फल। जड़ का मकसद ही पौधे में फल और फूल खिलाना है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो जड़ व्यर्थ हो जाएगा।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

सद्‌गुरु :

लंबे समय से मानव-जाति पौरुष यानी पुरुषोचित गुणों को बहुत अधिक महत्व देती आ रही है। इसका कारण ये रहा है कि अब तक गुजर-बसर करना एक अहम पहलू रहा है। जब गुजर-बसर सबसे महत्वपूर्ण कारक होगा तो स्वाभाविक रूप से पौरुष यानी पुरुष-गुण प्रमुख हो जाएगा। स्त्री-गुणों को तभी उनका उचित स्थान मिल सकता है, जब समाज जीविकोपार्जन के संघर्ष से आगे बढ़ गया हो और संस्कृति और संभ्यता के एक खास मुकाम पर पहुंच गया हो। आज कई समाज उस अवस्था तक पहुंच गए हैं, लेकिन दुनिया में अर्थ-व्यवस्था मुख्य ताकत बन गई है। जब आर्थिक ताकत प्रभावशाली होगा, तो हम लोग एक बार फिर हर चीज को गुजर-बसर के स्तर तक ले आएंगे। यह भी खुद को जीविकोपार्जन का ही एक संघर्ष है, बेशक वह एक अलग स्तर पर है। ऐसा होने पर, फिर से पुरुष-प्रकृति प्रमुख हो जाएगी।

पुरुष-प्रकृति हमेशा हर चीज पर विजय हासिल करना चाहती है। स्त्री-प्रकृति फलने-फूलने और ज़िंदगी को जीने से जुड़ी हुई है। मानव-जाति के लिए सामाजिक रूप से यह बहुत महत्वपूर्ण है कि स्त्रियोचित-गुणों को भी उतनी ही अभिव्यक्ति मिले, जितनी पुरुषोचित-गुणों को।

सुकून की एक खास अवस्था में ही स्त्री-गुण फल-फूल सकते हैं। अगर स्त्री-गुणों का विकास नहीं हो पाया, तो आपके जीवन में सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं होगा। इसलिए किसी समाज में सजगता पूर्वक स्त्रैण गुणों यानी स्त्री-प्रकृति को विकसित करना बहुत जरूरी है। मैं स्त्री-प्रकृति और पुरुष-प्रकृति की बात कर रहा हूं। स्त्री-प्रकृति किसी स्त्री के साथ-साथ किसी पुरुष में भी हो सकती है क्योंकि यह एक खास गुण है। पुरुष-प्रकृति भी एक खास गुण है। किसी इंसान के भीतर इन दोनों गुणों का संतुलन होने पर ही, वह एक तृप्त और संतुष्ट जीवन जी सकता है। 

स्त्रैण गुणों का विकास स्कूल के समय से ही किया जाना चाहिए। बच्चों को संगीत, कला, दर्शन और साहित्य की ओर उतना ही प्रेरित करना चाहिए जितना कि विज्ञान और टेक्नोलॉजी की ओर। अगर ऐसा नहीं होता, तो दुनिया में स्त्रैण गुणों के लिए कोई जगह नहीं रह जाएगी। हो सकता है आप स्त्री हों फिर भी आपके अंदर पुरुषों वाले गुण होंगे। स्त्रैण गुणों को सराहना बल्कि यूं कहें कि स्त्री-प्रकृति का उत्सव मनाना बहुत जरूरी है। यह बात स्त्री की नहीं, स्त्रैण की है, स्त्रियोचित गुणों की है।

पुरुष-प्रकृति हमेशा हर चीज पर विजय हासिल करना चाहती है। स्त्री-प्रकृति फलने-फूलने और ज़िंदगी को जीने से जुड़ी हुई है। मानव-जाति के लिए सामाजिक रूप से यह बहुत महत्वपूर्ण है कि स्त्रियोचित-गुणों को भी उतनी ही अभिव्यक्ति मिले, जितनी पुरुषोचित-गुणों को। अगर आप उपमाओं का इस्तेमाल करना चाहें, तो आप पुरुष-गुणों को जड़ मान सकते हैं और स्त्री-गुणों को फूल और फल। जड़ का मकसद ही पौधे में फल और फूल खिलाना है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो जड़ व्यर्थ हो जाएगा। सिर्फ गुजर-बसर ही सब कुछ नहीं होता। जीविकोपार्जन का संघर्ष समाप्त होने के बाद ही जीवन में बेहतरीन चीजें घटित होंगी।