निकुंज डालमिया: सद्‌गुरु, अगर चीन का बाजार गिर जाए तो क्या होगा?

सद्‌गुरु: मुझे नहीं लगता कि किसी को चीन के बाजार के गिरने की चिंता करनी चाहिए, क्योंकि ये आज के आंकड़े हैं। लेकिन हर आंकड़े के पीछे लोग भी होते हैं। आज दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है, इसके पीछे कौन से लोग हैं, यह बेहद महत्वपूर्ण है। यह एक ऐसी चीज है, जिसके बारे में आंकड़ों की खबरों में जिक्र नहीं किया गया है। चीनी लोग जबरदस्त दृढ़ निश्चयी लोग होते हैं। वे दुविधा में रहने वाले लोगों में से बिल्कुल नहीं हैं। उन्हें जो कुछ भी करना है, वे हर हाल में करके रहते हैं। क्योंकि उन्हें लोकतंत्र की बारीकियों से टकराव नहीं करना पड़ता। इस बात को लेकर वहां कोई संघर्ष नहीं है कि हर बात को लेकर हर व्यक्ति की अपनी राय है। वे लोग सिर्फ वही करते हैं, जिसकी जरूरत होती है। मुझे लगता है कि यह पश्चिमी देशों की उम्मीद है कि चीनी बाजार गिर जाएगा। ऐसा नहीं होगा।

निकुंज डालमिया: आज जब हम अपने आसपास के वित्तीय माहौल पर नजर डालते हैं तो पाते हैं कि लोगों ने अपनी क्षमता और सोच से ज्यादा कर्ज ले रखा है। इसलिए वित्तीय बाजार में एक अव्यवस्था है।

सदगुरु: अगर यहां अव्यवस्था नहीं होगी तो इसका मतलब हुआ कि यह एक बढ़ता हुआ बाजार न होकर एक मरा हुआ बाजार है। भारत में जो लोग छोटे या मझोले कारोबार चलाते हैं, उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती वित्त यानी पैसे की है। यहां ऐसे अनेक योग्य व कुशल लोग हैं, जिन्हें कभी वित्तीय मदद नहीं मिल पाई। हालांकि पिछले दस सालों में स्थितियां काफी सुधरी हैं। लेकिन अगर आप पिछले पचास सालों पर नजर डालें तो आप पाएंगे कि लोगों के पास एक से एक अद्भुत विचार थे, उस विचार को साकार करने की काबिलियत भी थी, लेकिन पैसा नहीं था। मुझे लगता है कि बहुत सारे उद्यमी सरकारी दफ्तरों के क्लर्क या सरकारी अधिकारी बने रहकर मर गए। वे लोग दफ्तरों में कारोबार करने लगे, जिसकी कीमत हम आज भी चुका रहे हैं।

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तो बहुत ज्यादा पैसा ले लिया गया हो, यह भी सच नहीं है। मुझे लगता है कि हम अभी भी सही मायने में विकासशील अर्थव्यवस्था नहीं बन पाए हैं। यहां अर्थव्यवस्था को समझौता करना पड़ता है। हम लोग अर्थव्यवस्था की तरफ बहुत ज्यादा नैतिकता के साथ बढ़ रहे हैं। आज नैतिकता की जरूरत नहीं है। आज अगर किसी चीज की जरूरत है, तो वह है समझ और निष्पक्षता की। आज बाजार में जो कुछ भी हो रहा है, हमें उसकी समझ होनी चाहिए। दूसरी तरफ निष्पक्ष बनना सीखने के बजाय हम हर चीज में अत्याचार देखने लगते हैं। आप इस तरह से अर्थव्यवस्था को आगे नहीं बढ़ा सकते। ‘क्या हम निष्पक्ष हैं’ - इसे देखने के बजाए, हमेशा हम यह देखते हैं कि ‘क्या यह उचित है’। अगर मुझसे पूछा जाए तो यह चीज पूरी तरह से गलत है।

निकुंज डालमिया: तो भारत के बारे में आपकी क्या राय है?

सदगुरु: देखिए, भारत में जबरदस्त प्रतिभाओं का खजाना है। हालांकि यहां यह एक बड़ी समस्या दिखाई देती है, लेकिन यहां लोगों के दिमाग में अद्भुत उद्यमशीलता भी है। कम से कम मानसिक स्तर पर तो यहां व्यक्ति हर चीज में कोशिश करना चाहता है। आप अमेरिका चले जाइए, वहां कोई व्यक्ति अगर एक काम कर रहा है तो वह उस काम को अच्छी तरह से करेगा, लेकिन उस काम के अलावा उसे और कुछ नहीं पता होगा और न ही वह जानना चाहता है। इस मायने में भारत एक अलग किस्म का देश है।

लेकिन एक ऐसा क्षेत्र, जहां यह देश बुरी तरह से असफल रहा है, वह है लीडरशिप। हमारे यहां लीडरशिप की सच में बहुत कमी रही है। मुझे लगता है, अपने यहां लंबे समय से चले आ रहे बाहरी शासन की वजह से यह कमी लगातार बनी रही। हमारे समाज का पूरा ढांचा ऐसा था कि नेतृत्व उभरकर सामने आ ही न सके। उस दौरान हमारी शिक्षा व्यवस्था को इस तरह से तैयार किया गया ताकि कोई लीडरशिप न उभर सके। शिक्षा का पूरा सिस्टम सिर्फ कर्मचारियों को तैयार करने के लिए बनाया गया था। हम लोग आज भी उसी समस्या से जूझ रहे हैं, क्योंकि हम लोगों ने अपनी शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी सुधार नहीं किए। यह देश जबरदस्त प्रतिभाओं का समूह होने के बावजूद बिना आवश्यक नेतृत्व के, जो एक आंदोलन ला सके, यूं ही चलता रहा। अब हम उस तरह के नेतृत्व की शुरुआत होते देख रहे हैं।

 

 

हम लोग काफी लंबे समय तक गुलामी में रहे हैं। गुलाम देश में मानसिकता होती है कि अगर आप समस्या को देखें तो उसे नजरअंदाज कर दें और अपने घर को निकल लें। लंबे समय तक ऐसा करने की वजह से यह हमारी आदत बन गई। जबकि लीडरशिप का मतलब है कि आपको समस्याओं की जड़ को ढूँढना होता है कि वे कहां और कैसी हैं। इससे पहले कि वे आपके सामने सिर उठाएं, आप उन्हें दुरुस्त कर लेना चाहते हैं। यही वह चीज है, जिसकी इस देश में बुरी तरह से कमी है।

अगर हम इस देश में महत्वपूर्ण नेता पैदा कर सकें तो हम इस धरती के सबसे महत्वपूर्ण और एक बिल्कुल अलग तरह के देश होंगे। फिलहाल हम लोग इस संभावना की दहलीज पर बैठे हैं। अगर हम सही काम और चीजें करते हैं, तो हम अगले दस या पंद्रह सालों में साठ करोड़ पिछड़े लोगों को जीवन के अगले स्तर पर ले जा सकते हैं।