आगे बढ़िए – लेकिन किसी को पछाड़ने के लिए नहीं !
शुरू से ही हम बच्चों को दूसरों से आगे निकलने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। चाहे मां-बाप हों या स्कूल, सब उनमें कंपीटिसन यानी प्रतिस्पर्धाकी भावना बढ़ाने में लगे हैं। लेकिन ऐसा करके क्या हम अपने बच्चों का भला कर रहे हैं?
प्रश्न : सद्गुरु, बहुत से अध्यापकों और माता-पिता को लगता है कि बिना प्रतिस्पर्धा की भावना के विद्यार्थियों में आगे बढ़ने की प्रेरणा लंबे समय तक कायम नहीं रखी जा सकती। आखिर हम मुकाबले की भावना को जगाए बिना उनमें अच्छे से अच्छा करने की चाहत कैसे बनाए रख सकते हैं?
सद्गुरु:
मुकाबले का सीधा सा मतलब है कि आप जो कुछ भी काम कर रहे हैं, उसमें आपकी रुचि नहीं है। यानी आप जो कर रहे हैं, आपको उसकी परवाह नहीं है। आपको सिर्फ इस बात से मतलब है कि आप किसी तरह दूसरों से एक कदम आगे रहें। अगर जीवन के प्रति यही रवैया रहा तो इंसान वो कभी नहीं कर पाएगा, जिसे करने की जरूरत है।
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हम समझदार इंसान पैदा करना चाहते हैं, जो अपनी जिंदगी को सावधानी से परखें और ऐसे काम करें जो न सिर्फ उनके लिए, बल्कि आसपास के लोगों के लिए भी सर्वश्रेष्ठ हो। दुनिया में अगर कोई इंसान कुछ बन पाता है, तो वह सिर्फ इसलिए नहीं कि वह वैसा बनना चाहता था, बल्कि इसलिए क्योंकि उसने अपने अंदर ऐसी काबिलियत पैदा की है,किसी काम को अच्छी तरह से करने के लिए उसमें जरूरी क्षमता और दिमाग में स्पष्टता है।
कोई इंसान कभी भी प्रतिस्पर्धा की वजह से कोई चीज बेहतर नहीं करता है। यह सोच पूरी तरह से गलत है। सीमित समय के भीतर बहुत ज्यादा काम कर डालने के लिए मुकाबले की जरूरत पड़ती है, वह भी कुछ सीमित क्षेत्रों में ही। लेकिन अगर मुकाबले की मानसिकता आपकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन जाती है, तो आप एक बीमार मानसिकता वाले इंसान बन जाएंगे। हम स्कूल में मानसिक तौर पर बीमार इंसान पैदा करना नहीं चाहते।
अगर आप मिल जुल कर काम करें तो आप एक ताकतवर टीम बना सकते हैं। ऐसी टीम वो नतीजे दे सकती है, जो कोई भी अकेला इंसान नहीं दे सकता। हमने इस भावना के साथ ईशा होम स्कूल शुरु किया था कि हम किसी मुकाबले की दौड़ में शामिल नहीं होंगे। इसका यह मतलब नहीं है कि हमारे बच्चे काबिल नहीं बनेंगे। वे कहीं ज्यादा काबिल निकलेंगे। लेकिन उनकी काबिलियत किसी दूसरे को पछाड़कर आगे निकलने में नहीं, बल्कि अपनी क्षमताओं की अधिकतम उंचाई तक पहुंचने में होगी।
यह लेख ईशा लहर दिसंबर 2013 से उद्धृत है।
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