प्रश्न: सद्‌गुरु, आपने बताया था कि आदियोगी ने योग के सात आयामों में से एक-एक आयाम एक-एक सप्तर्षि को दिया था। आखिर वह क्या कारण था कि हर ऋषि आदियोगी के सारे ज्ञान को एक साथ पाने में सक्षम(काबिल) नहीं था? एक सामान्य इंसान अपने शरीर के भीतर कितना संजो सकता है, क्या इसकी कोई सीमा है?

आम इंसान बहुत सी संभावनाओं से अछूता रहता है

सद्‌गुरु: इसके कई आयाम हैं। मानव शरीर के कई स्तर या आयाम होते हैं। हमने मानव सिस्टम में मौजूद 114 चक्रों के बारे में कई बार बात की है। आध्यात्मिक तौर पर पूरी तरह से तैयार शरीर में ये 114 चक्र अपने आप में 114 संभावनाएं हैं। लेकिन अगर व्यक्ति में केवल 21 चक्र भी सक्रिय हों तो वो एक सम्पूर्ण भौतिक जीवन जी सकता है। तब आपके साथ सब कुछ अच्छा होगा। आपका दिमाग और आपका शरीर अच्छी तरह से काम करेगा और आप अपने आपमें अच्छे खासे सफल भी रहेंगे। इसके अलावा, अगर व्यक्ति के कुछ और चक्र सक्रिय हो जाते हैं तो अचानक वह व्यक्ति किसी न किसी रूप में विशेष हो उठता है। अगर कुछ और चक्र सक्रिय हो जाएं तो वही व्यक्ति दुनिया को असाधारण लगने लगता है।

तो इस मामले में, एक सामान्य इंसान द्वारा इंसानी सिस्टम के बहुत सारे आयाम अनछुए रह गए। अगर आप इसे अनुभव के लिहाज व संभावनाओं को तलाशने के लिहाज से देखें तो एक आम इंसान अपनी संपूर्ण संभावनाओं का एक प्रतिशत से भी कम होता है। उसकी 99 प्रतिशत से ज्यादा संभावनाएं अनछुई रह जाती हैं।

समय सीमा की वजह से ऐसा हो सकता है

आदियोगी ने सभी सप्तर्षियों को सात अलग-अलग आयामों को करने के लिए कहा। हालांकि यह सातों अपने आप में महान प्राणी थे जिन्हें शायद पूरी तरह से प्रशिक्षित किया जा सकता था, लेकिन हो सकता है कि ऐसा करने के लिए उनके पास समय ना हो। तो इन सात लोगों को सात अलग-अलग आयामों में प्रशिक्षित करना और फिर उन्हें इन आयामों को दुनिया को पहुंचाने के लिए कहना शायद ज्यादा आसान रहा होगा।

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पिछली पांच से छह पीढ़ियों से हम लोग प्राकृतिक तत्वों से दूर होकर काफी सुरक्षित माहौल में रहने लगे हैं। इसी वजह से हमारा ऊर्जा शरीर इतना नाजुक और कमजोर हो गया है।

हो सकता है कि आदियोगी को एक भौतिक शरीर को तैयार करने की प्रक्रिया में लगने वाला समय एक सीमा या बंधन लगा हो। मैं यहां मांसपेशियों पर आधारित शक्ति की बात नहीं कर रहा हूं। ऊर्जा शरीर को एक खास स्तर की शक्ति व स्पंदन तक विकसित करने के लिए एक खास समय की जरूरत होती है। कई मायनों में मौजूदा पीढ़ी अब तक की सबसे कमजोर पीढ़ियों में से एक है। हम लोग सिर्फ मांसपेशीय ताकत के हिसाब से ही कमजोर नहीं हैं। हम लोग दूसरी पीढ़ियों की तुलना में कम शारीरिक श्रम करने की वजह से अब तक की सबसे कमजोर पीढ़ी तो हैं ही, पर साथ ही ऊर्जा शरीर की दृष्टि से भी हम अब तक की सबसे कमजोर पीढ़ी है। अगर आपको लोगों से उनके भीतर से कुछ साकार करवाना है तो इसके लिए आपको पहले कई महीनों का इंतजार करना पड़ता है। आपने ऐसा नहीं किया तो वे अपना संतुलन खो देंगे और धड़ाम से गिर पड़ेंगे। पिछली पांच से छह पीढ़ियों से हम लोग प्राकृतिक तत्वों से दूर होकर काफी सुरक्षित माहौल में रहने लगे हैं। इसी वजह से हमारा ऊर्जा शरीर इतना नाजुक और कमजोर हो गया है।

मुझे विश्वास है आदि योगी के पास इससे बेहतर शरीर रहे होंगे, लेकिन इसके बावजूद उन्हें इस तरीके से काम करना ज्यादा आसान लगा होगा। उन्होंने हर व्यक्ति(सप्तर्षि) को योग के एक आयाम में प्रशिक्षित किया और फिर वे लोग उस आयाम को दुनिया में प्रसारित करने के लिए चल दिए। यह उनका निर्णय था। इस पर सवाल उठाना मेरा काम नहीं है। मुझे विश्वास है कि उस समय जो भी सर्वश्रेष्ठ संभव था, वही उन्होंने किया होगा।

आदियोगी ने मांगी गुरु दक्षिणा!

जब योग की शिक्षा पाकर यह सातों सप्तर्षि उसके प्रचार प्रसार के लिए दुनिया के अलग-अलग कोनों में जाने के लिए तैयार थे तो उस समय आदि योगी ने एक बेहद असामान्य अंदाज में उनसे पूछा, ‘मेरी गुरुदक्षिणा कहां है?’ यह सुनकर सप्तर्षि अचंभित हो उठे। उन्होंने कहा, ‘दक्षिणा? आप तो हमारा जीवन हैं। हमारे पास आपको देने के लिए क्या है?’ सप्तर्षि लंबे समय से आदियोगी के पास ही थे और उनके पास अगर कुछ था तो बस उनके बदन पर पहना हुआ बाघ चर्म। सवाल था कि आदियोगी को क्या दिया जाए? आदियोगी की मांग पूरी तरह से कल्पना से परे थी, वे उनकी मांग पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे। आदियोगी उनसे दक्षिणा या शुल्क मांग रहे थे।

दरअसल, अगर आपको अपने गुरु को दक्षिणा के रूप में कुछ देना है, तो आपको वही चीज देनी चाहिए जो आपके लिए सबसे कीमती हो।

तब अगस्त्य ऋषि, जो शारीरिक लिहाज से उन सातों में सबसे कमजोर थे, आदि योगी के कथन का मतलब समझ गए। उन्होंने कहा, ’अगर मेरे पास कोई सबसे अनमोल चीज है जो मैं आपको दे सकता हूं तो वह है - इतने सालों में आपके द्वारा दी गई शिक्षा व ज्ञान। यह शरीर मेरे लिए कोई अर्थ नहीं रखता, अगर यह कीमती होता तो मैं आपको यही दे देता। इसलिए मैं आपको शिक्षा के वो 16 आयाम गुरु दक्षिणा के रूप में समर्पित करता हूं, जो आपने मुझे दिए हैं।’ इतना कहकर अगस्त्य ऋषि ने अपना सारा ज्ञान आदि योगी के चरणों में समर्पित कर दिया। दरअसल, अगर आपको अपने गुरु को दक्षिणा के रूप में कुछ देना है, तो आपको वही चीज देनी चाहिए जो आपके लिए सबसे कीमती हो। अगस्त्य ऋषि से सीख लेते हुए बाकी छह ऋषियों ने भी उनकी देखादेखी अपना सारा ज्ञान दक्षिणा के रूप में आदियोगी के चरणों में रख दिया। यह देख आदियोगी ने उन लोगों से कहा, ‘अब तुम लोग अपनी अपनी आगे की यात्रा पर निकलो।’

यह सप्तर्षि कई दशकों से आदियोगी के साथ थे। यह समय देखने में हजारों साल की तरह लगता था। सप्तर्षियों के पास आदि योगी द्वारा दिए गए ज्ञान के अलावा और कुछ नहीं था। इतने सालों की कड़ी तपस्या और मेहनत के बाद उन्होंने आदियोगी से जो कुछ सीखा था, वह सब उन्होंने गुरु दक्षिणा के रूप में आदियोगी को ही सौंप दिया और खाली हाथ अपनी भावी यात्रा पर निकल पड़े।

पूरी तरह से खाली सप्तर्षि, अदियोगी की मौजूदगी से भर गए

Saptarishi

चूंकि वे लोग वहां से खाली हाथ निकले थे, इसलिए आदियोगी की मौजूदगी के चलते योग के सभी 112 आयाम उनके भीतर साकार हो उठे। आदियोगी उन सभी के भीतर जीवंत हो उठे। अगर ऐसा नहीं होता तो उनके भीतर योग के सिर्फ 16 आयाम ही रहते। वे सब इसलिए अनंत हो उठे, क्योंकि इतने सालों तक कष्ट सहकर अपनी साधना से जो कुछ भी हासिल किया था, वह सब अपने गुरु के चरणों में समर्पित कर, वे पूरी तरह से खाली हो गए थे और खाली होकर ही वह अपने रास्ते पर चल पड़े थे।