जब आपके चारों पहलू - शरीर, मन, भावना और ऊर्जा एक ही दिशा में काम करने लगती हैं, तब आप जो भी इच्छा करेंगे, पूरी हो जाएगी, और आप खुद ही एक कल्पवृक्ष बन जाएंगे।
एक इंसान के तौर पर हमने इस धरती पर जो कुछ भी बनाया है, असल में उसकी रचना पहले हमारे मन में हुई। आप देख सकते हैं कि इंसान द्वारा किए गए हर काम का विचार पहले उसके मन में आया, उसके बाद ही वह चीज बाहरी दुनिया में हुई। इस धरती पर जो भी खूबसूरत या भयानक काम हुए हैं, वे दोनों ही हमारे मन की उपज हैं। अगर हम चाहते हैं कि दुनिया खूबसूरत बने, तो सबसे पहले हमें अपने मन में सही चीजों की रचना करना सीखना होगा। हमें अपने मन को सम्हालना होगा।

जब आपके चारों पहलू - शरीर, मन, भावना और ऊर्जा एक ही दिशा में काम करने लगती हैं, तब आप जो भी इच्छा करेंगे, पूरी हो जाएगी, और आप खुद ही एक कल्पवृक्ष बन जाएंगे। लेकिन मन की समस्या यह है कि यह हर पल दिशा बदल रहा है। यह ऐसे ही है जैसे आप कहीं जाना चाहते हैं और हर दो कदम पर अपनी दिशा बदल रहे हैं। ऐसी हालत में आपके लिए मंजिल तक पहुंचने की संभावना बहुत कम हो जाती है। अगर संयोग से पहुंच गए तो बात दूसरी है।

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आपने शायद उन लोगों के बारे में सुना होगा, जिन्होंने किसी चीज की इच्छा की और वह उन्हें मिल गई। आमतौर पर ऐसा उन्हीं लोगों के साथ होता है, जिन्हें अटल विश्वास होता है। मान लीजिए कि आप एक घर बनाना चाहते हैं। अगर आप सोचते हैं, ’मैं एक घर बनाना चाहता हूं। इसके लिए मुझे पचास लाख रुपये की जरूरत है पर मेरी जेब में बस पचास रुपये हैं, यह संभव नहीं है।’ जिस पल आप कहते हैं ‘यह संभव नहीं है,’ तब आप यह भी कह रहे होते हैं कि मुझे यह नहीं चाहिए।

यह इस पर निर्भर है कि आप कैसे सोचते हैं, कितनी गहराई से सोचते हैं, आपके विचारों में कितनी स्थिरता है।
जिन लोगों को किसी भगवान, किसी मंदिर या किसी अन्य चीज में भरोसा होता है, वे सरल बुद्धि के होते हैं। विश्वास केवल ऐसे लोगों के लिए ही काम करता है। एक बच्चे जैसा सरल इंसान जब कहता है, ’शिवजी, मुझे एक घर चाहिए। मुझे नहीं पता कैसे, पर आपको मेरे लिए इसे बनाना होगा।’ तब उसके मन में कोई नकारात्मक विचार नहीं होता, कोई शक नहीं होता। उसे अटल विश्वास होता है कि शिव उसकी इच्छा पूरी करेंगे। आपको क्या लगता है? क्या शिव आकर घर बना देंगे? नहीं। मैं आपको समझाना चाहता हूं कि भगवान आपके लिए अपनी छोटी उंगली भी नहीं उठाएंगे। जिसे आप भगवान कहते हैं, वह सृष्टि का स्रोत है। और सृष्टि ही उसके लिए यह करेगी।

अगर जीवन को वैसा होना है, जैसा आप सोचते हैं, तो वह जरूर हो सकता है। लेकिन यह इस पर निर्भर है कि आप कैसे सोचते हैं, कितनी गहराई से सोचते हैं, आपके विचारों में कितनी स्थिरता है। यही तय करेगा कि आपका विचार हकीकत बनता है या सिर्फ एक सतही विचार बना रहता है। क्या संभव है और क्या नहीं, यह सोचना आपका काम नहीं है। यह प्रकृति का काम है। आपका काम तो बस उस चीज के लिए कोशिश करना है, जो आपको चाहिए।