सद्‌गुरुहजारों साल पहले आदियोगी शिव के बताए परम खुशहाली के व्यापक और गूढ़ विज्ञान में हाल के समय में बहुत से बदलाव और विकृतियां आई हैं। आज योग एक ऐसी दिशा में बढ़ रहा है, जो इस युगों पुरानी परंपरा का सम्मान करने वाले बहुत से लोगों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है।

21वीं सदी में योग इतना लोकप्रिय हो गया है जितना पहले कभी नहीं था। दुनिया के हर बड़े शहर में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर ही इसका सबूत देखा जा सकता है। चाहे वह योग कक्षाएं लेने वाला एक स्टुडियो या क्लब हो या किसी खूबसूरत मॉडल की ‘योग जैसी’ मुद्रा वाला पोस्टर, हर शहर में यह प्रमाण है कि योग बिक रहा है।

• फैशनेबल कपड़ों को ‘योगा वियर’, पैकेटबंद नाश्तों को ‘योगा फ़ूड’, दुबली-पतली, छरहरी और युवा काया को ‘योगा बॉडी’ के रूप में पेश किया जाता है। योग की मुद्रा में लिए गए चित्र नियमित रूप से पत्र-पत्रिकाओं के मुखपृष्ठों पर चमकते हैं, जो इसी तरह के संदेशों को फैलाते हैं।

• आज योग का एक प्रमुख लक्ष्य बन गया है - एक मजबूत, लचीले और टिकाऊ शरीर का विकास करना। शारीरिक करतब और शक्ति को बहुत ज्यादा महत्व दिया जाता है और बहुत सी पुस्तकों ने योग से जुड़े शारीरिक अभ्यासों को और भी मजबूत और संगठित कर दिया है।

फिलहाल दुनिया में एक चीज जो सबसे ज्यादा असहनीय हो रही है, वह है कि हठ योग को इस तरह से पेश किया जा रहा है, मानो वह कोई कसरत हो।
बदकिस्मती से आजकल अधिकांश योग शिक्षक स्वयं योग का अभ्यास करने वाले योगी नहीं हैं, वे किताबी योगी हैं जिन्हें इस विज्ञान की थोथी समझ और अनुभव है, जिसे वे सिखाना भी चाहते हैं। इनमें से कई अभ्यास पूरी तरह शारीरिक प्रकृति के हैं।

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• योग जीवन के इस अति सरलीकरण का हालांकि कुछ अच्छा असर पड़ा है लेकिन इसने योग संस्कृति को बहुत हद तक विकृत कर दिया है। इस सरलीकरण ने कुछ लोगों को एक बेहतर संतुलित और सेहतमंद भौतिक जीवन जीने में मदद तो की है, लेकिन इसकी वजह से खास कर पश्चिम में योग के असली मकसद और तकनीक के बारे में गलत धारणा कायम हो गई है।

• अब लोग इंटरनेट और किताबों से योग सीख रहे हैं, और बिना किसी तैयारी के, बिना किसी अंदरूनी अनुशासन के, योग का अभ्यास किया जा रहा है। एक समय था जब योग की शिक्षा सिर्फ ऐसे लोगों को दी जाती थी, जिन्हें निर्मल और उपयुक्त अधिकारी माना जाता था।

योग जीवन के इस अति सरलीकरण का हालांकि कुछ अच्छा असर पड़ा है लेकिन इसने योग संस्कृति को बहुत हद तक विकृत कर दिया है।
गुरु और शिष्य के बीच जीवनपर्यंत और बहुत पवित्र रिश्ता रहता था। जब ऋषि अपने आध्यात्मिक ज्ञान को अपनी शिक्षाओं में ढालते थे, तो वे उस शिक्षा को अपने शिष्यों को मौखिक रूप से, अंतरंग तरीके से और एक-एक को व्यक्तिगत रूप से सौंपते थे।

• लेकिन योग के इतिहास के इस काल में, योग का अभ्यास बड़े पैमाने पर उपयोगितावादी नजरिये से जनता में लोकप्रिय होने लगा है। योगासनों के ज्यादा फुर्ती, मजबूती और कलाबाजी वाले पहलू आकर्षक हो गए हैं, खासकर पश्चिम में रहने वालों और शारीरिक चुनौतियों से जूझ रहे लोगों के लिए। नतीजा यह है कि इस प्राचीन विज्ञान के उच्चतर आध्यात्मिक और नैतिकता आधारित लक्ष्यों को पूरी तरह अनदेखा कर दिया गया है।

• पश्चिम में अब एक बड़ी मार्केटिंग मशीन ने योग की बागडोर को अपने वश में कर लिया है। योगिक इतिहास के इस वर्तमान चरण में, भगवा चोले पहने, सफेद दाढ़ी वाले भारतीयों को दरकिनार कर दिया गया है क्योंकि स्टाइलिश कपड़ों में युवा, छरहरे और टैटूधारी शहरी हिप्पियों ने हमारे जहन पर कब्जा कर रखा है।

• ऐसा लगता है कि कुछ गुरु अपना प्रभावशाली संगठन बनाने के मकसद से ‘योग’ नामक चीज को लोकप्रिय बनाने की जल्दबाजी में हैं। और इस जल्दबाजी में यह पता करने की परवाह ही नहीं कर रहे कि योग असल में है क्या। वे उसे खेल और मनोरंजन के एक और रूप की तरह देखते हैं, या शायद और भी बदतर रूप में - बेचे जाने लायक एक लोकप्रिय उत्पाद की तरह...।

• योग का ‘पॉप नजरिया’ इसलिए नुकसानदेह है क्योंकि इसकी वजह से लोग इस प्राचीन और खूबसूरत कला व विज्ञान के साथ गलत मेल स्थापित कर लेंगे, जिसे बाद में तोडऩा बहुत ही मुश्किल होगा।

बदकिस्मती से आधुनिक योग शिक्षक की शिक्षा से काफी कुछ गायब है, जिसका नतीजा यह है कि रोजाना लाखों विद्यार्थियों को ‘योग’ एक कमजोर और बेअसर तरीके से सौंपा जाता है। तो क्या योग इतिहास बन चुका है? नहीं, उम्मीद अब भी बची है। अब भी ऐसे गुरु और संस्थान हैं जो योग को उसके पारंपरिक और विशुद्ध रूप में आगे बढ़ाने के लिए लगातार काम कर रहे हैं।

क्या योग से "सिक्स पैक एब्स" पा सकते हैं?
‘‘फिलहाल दुनिया में एक चीज जो सबसे ज्यादा असहनीय हो रही है, वह है कि हठ योग को इस तरह से पेश किया जा रहा है, मानो वह कोई कसरत हो। उन दिनों मैं उत्तरी कैलिफ़ोर्निया में था। एक दिन मैं गोल्फ कोर्स में मौजूद दो युवाओं के साथ खेल रहा था, जिन्हें मैं नहीं जानता था। इसलिए मैंने अपने हैट को काफी नीचे कर लिया क्योंकि मैं उनकी ओर देखना या उनसे बात करना नहीं चाहता था, मैं बस खेलकर वापस आ जाना चाहता था वरना बात ईशा योग तक पहुंच जाती। वे लगातार मुझसे कुछ न कुछ पूछते और फिर मुझे कुछ न कुछ कहना पड़ता। इसलिए मैं बस खेल खत्म करना चाहता था। मेरे पास बस दो घंटे थे, मैं खेल कर जाना चाहता था। मगर फिर उन्होंने मेरे साथ आए ईशा स्वयंसेवक से बात करना शुरू कर दिया। उसने सब कुछ बता दिया। मैं बस बॉल को मारता रहा और आगे बढ़ता रहा। मगर वे मेरे पास आ गए और बोले, ‘गुरु, अगर हम आपका योग करें, तो क्या हम "सिक्स पैक एब्स" पा सकते हैं?’ मैं बोला, ‘आप अठारह पा सकते हैं।’ ‘अठारह?’ ‘हां, अठारह, अगर आप चाहें।’
आप डैन ब्राउन की मशहूर हो चुकी उस किताब के बारे में जानते होंगे जिसमें उन्होंने कहा है कि योग एक कसरत है जिसे बौद्ध धर्म से लिया गया है। मैंने यूरोपीय पत्रिकाओं और अखबारों में ऐसे लेख देखे हैं कि हठ योग जैसी कोई चीज नहीं होती, यह सब तो यूरोपीय व्यायामों से लिया गया है, जो भारतीयों ने सोलहवीं सदी में अपना लिया। अगर यही हाल रहा तो वह दिन बहुत दूर नहीं होगा, जब आपको कोई ऐसी किताब दिखेगी, ‘योग के आविष्कारक-मैडोना’।’’
- सद्‌गुरु