1) मध्यप्रदेश के मालवा में क्षिप्रा नदी के तट पर हज़ारों वर्षों से भी पहले से बसी है भारत की सबसे प्राचीन, सांस्कृतिक एवं धार्मिक नगरी उज्जैन। अलग अलग सदी में ये अलग अलग नामों से जानी जाती रही है - उज्जैयिनी, अमरावती, कुशस्थली, कनकश्रंगा और अवंतिका।

2) पुराणों में सप्तपुरी यानी सात मोक्षदायनी नगरियों का वर्णन है, उसमें उज्जैन नगरी भी शामिल है।

3) प्राचीन काल में उज्जैन में हज़ारों मंदिर स्थापित किये गए थे, इसलिए उज्जैन को मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है। यहाँ महाकाल ज्योतिर्लिंग के अलावा 84 लिंगों में महादेव अलग अलग रूपों में मौजूद हैं।

4) प्राचीन काल में यह विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी भी थी। यहाँ पर महाकाली, हरसिद्धि के रूप में मौजूद हैं। कथाओं के अनुसार उज्जैन में सती की कोहनी गिरी थी और हरसिद्धि मंदिर वहीं स्थापित किया गया था। रोज़ शाम को मंदिर के प्रांगण को दीपों से सजाया जाता है और आरती के समय मंदिर की छटा बेहद खूबसूरत व निराली होती है।

5) भगवान शिव देशभर में 12 स्थानों पर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं। उज्जैन में इन्हीं में से एक ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर के गर्भ-गृह में स्थापित है।

6) गर्भ-गृह में ऊपर सिद्धि यन्त्र स्थापित है। महाकाल के बाईं ओर गणेश विराजमान हैं। दायीं ओर त्रिशूल के पीछे कार्तिकेय और दोनों के मध्य में हैं पार्वती।

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7) गर्भ-गृह के बाहर नंदी की प्रतिमा मौजूद है। दर्शनार्थी यहाँ पर बैठ कर गर्भगृह में प्रवेश करने का इंतज़ार करते हैं। अलग अलग प्रांतों और समुदायों से आये हुए भक्त तरह तरह की साधना करके भगवान को प्रसन्न करने का यत्न करते हैं। दिन भर पुजारी पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं और अलग अलग तरह की आरती समर्पित करते हैं। यहाँ प्रार्थना के बाद अपनी मनोकामनाओं को नंदी के कान में कहने का चलन भी है। इन सब पूजा, अर्चना, आरती, भक्ति के बीच में कई सदियों से विराजमान हैं - महाकाल।

8) मुक्ति की ओर ले जाने वाले महाकाल की आराधना में कई आरतियां की जाती हैं। सूर्योदय से पहले भस्म आरती से दिन की शुरूआत होती है।

9) भस्म आरती के दौरान महाकाल को पंचामृत अर्पित किया जाता है।

10) उसके बाद महाकाल का जलाभिषेक होता है।

11) और फिर अनेक विधि-विधानों से महाकाल का श्रृंगार किया जाता है। अंत में महाकाल पर भस्म अर्पित की जाती है।

12) भस्म आरती का समापन प्रचण्ड अग्नि, डमरू की तीव्र ध्वनि एवं शंख के ज़ोरदार स्वर के साथ किया जाता है।
13) संध्या काल में महाकाल को भांग अर्पित की जाती है।

14) आरती के दौरान तेज नगाड़ों, ढोल, घंटियों के साथ महाकाल का वंदन किया जाता है।

15) संध्या आरती का सुन्दर चित्रण कालिदास ने अपने ग्रन्थ मेघदूत में कुछ इस प्रकार किया है - हे! मेघ जब तुम उज्जयिनी जाना तो महाकाल के दर्शन अवश्य करना, वहां की सांध्य आरती को अवश्य देखना। संध्या काल में लाखों की संख्या में पक्षी मंदिर के प्रांगण में लगे पेड़ पर एकत्रित होते हैं और आरती की भव्यता में चार चांद लगा देते हैं।

16) महाकालेश्वर मदिर में गर्भ-गृह के अलावा दो और महत्वपूर्ण हिस्से हैं। सबसे ऊपरी सतह पर मौजूद हैं नागचंद्रेश्वर, जिनके दर्शन केवल नागपंचमी को ही होते हैं। और उसके नीचे, मंदिर के पहली सतह पर ओंकारेश्वर रूप में शिव विद्यमान हैं।

17) सिंहस्थ कुम्भ उज्जैन का महान धार्मिक पर्व है। बारह वर्ष के बाद, जब सूर्य मेष राशि में हो और बृहस्पति सिंह राशि में हो, तब उज्जैन में कुम्भ होता है। श्रद्धा और विश्वास के इस महापर्व का आयोजन मध्यप्रदेश के उज्जैन में 22 अप्रेल से 21 मई 2016 तक होगा।

18) कुंभ का शाब्दिक अर्थ है कलश। पुराणों में वर्णित कहानी के अनुसार, समुद्र मंथन से अमृत लेकर जाते समय, अमृत की चार बूंदें कलश में से पृथ्वी पर गिरीं। उसके बाद उन चार स्थानों - हरिद्वार, नासिक, प्रयाग और उज्जैन में कुम्भ मेले की प्रथा की शुरूआत हुई।

19) कुम्भ के दौरान चैत्र मास की पूर्णिंमा से लेकर वैशाख की पूर्णिमा तक पवित्र शिप्रा नदी में स्नान करने को काफी महत्वपूर्ण माना गया है।

20) महाकाल के दर्शन हेतु श्रद्धालुओं की भीड़ सदियों से लगती रही है।

21) सदियों से सब के स्वागत में हाथ जोड़े खड़ी है मंदिरों की नगरी उज्जैन। और सदियों से भक्तों को अपनी कृपा के आगोश में भरकर उनके मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हुए विराजमान हैं कालों के काल महाकाल।