सद्गुरु: किसी लक्ष्य के बिना सहज रूप से जीना ही, आध्यात्मिक रूप में जीना कहलाता है। इसका मतलब यह नहीं कि आप आलसी और बेपरवाह हो जाएँ। एक आध्यात्मिक प्रक्रिया के साथ जीने का मतलब है कि इस पल जो भी चीज़ आपके सामने हैं, उससे जबर्दस्त तरीके से जुड़ें, पर आपका कोई लक्ष्य न हो। अगर आपमें इस तरह बैठने की हिम्मत है - " कल ये चीज़ चाहे जैसा भी रूप ले ले, पर इस समय मैं जो भी कर रहा हूँ, उसमें अपनी ओर से सर्वश्रेष्ठ योगदान दूँगा," तब आप सहज रूप से आध्यात्मिक हो जाएँगे।

कुछ साल पहले, मैं कुछ रोमांचप्रिय पर्वतारोहियों से मिला, जो दुनिया की कुछ ऊँची चोटियों तक जा चुके थे। उन्होंने उत्तरी धु्रव को पैदल पार किया, फिर उन्होंने समुद्र तल से बाईस हज़ार फ़ीट की ऊँचाई तक जा कर एंडीज़ पर सर्दियों के तीन महीने बिताए। उन्हें ऐसी स्थितियों की तलाश थी, जहाँ उन्हें यह न पता हो कि अगले ही पल क्या होने वाला है। वे मुझसे मिलने आए थे और हमारे स्वयंसेवकों में से एक, उनसे इनर इंजीनियरिंग प्रोग्राम के बारे में बात कर रहा था। मैंने ज्यों ही उन तीनों को देखा तो पाया कि मुझे उनके साथ तीन दिन का समय लगाने की ज़रूरत नहीं थी। मैंने उनसे बस यही कहा कि वे मेरे साथ बैठ अपनी आँखें बंद कर लें। सब कुछ एक भी शब्द कहे बिना घटा।

उन्होंने अपनी जिंदगी में कभी आध्यात्मिकता के बारे में नहीं सोचा - वे इस तरह जीना चाहते थे, जहाँ वे यह न जानते हों कि अगला क्षण उनके लिए क्या लाने वाला है।

मुझे उन्हें कुछ भी सिखाने की जरूरत नहीं पड़ी, मुझे केवल उनकी भीतर छिपी चिंगारी को हवा देनी थी क्योंकि वे तो पहले से ही तैयार थे। उनके शरीर अच्छे और सेहतमंद थे, और उनके मन किसी भी चीज़ के लिए तैयार और खुले हुए थे। बस हमें यही तो चाहिए।