यह गीत “एप्पडी तां” ऊथुकादु वेंकट सुब्बैयर के द्वारा लिखा गया है। यह गीत एक कृष्ण भक्त की दृष्टि से जीवन का वर्णन करता है।

“भक्ति वह आयाम है जो आपको उस पार पहुंचा देगा, तब भी जब आप उस पार का रास्ता नहीं जानते” – सद्‌गुरु

 

गीत की पंक्तियों में रचनाकार कहते हैं, जब कोई भक्तिमय हो जाता है तो वह हर जगह बस मिठास देखता है। मधुमक्खियों की गूँज एक गीत बन जाता है,

वो जिसने मटकों में से माखन चुरा कर अपने दोस्तों के साथ बांटा और इससे पहले कोई शिकायत पहुंचती, वो खुद अपनी मां के पास भोलेपन के साथ पहुंच गया
कृष्ण की शरारतें सुन्दर अठखेलियां बन जातीं हैं, वीरता के कारनामे प्रसिद्द गाथाएं बन जाते हैं। भक्ति की मिठास ऐसी है कि वह भक्त के जीवन को शक्तिशाली तरीकों से रूपांतरित कर देती है।

भारत में भक्ति आध्यात्मिक प्रक्रियाओं का एक महत्वपूर्ण अंग रहा है। राधे कृष्ण, मीरा बाई, और नायनमार की कहानियां सदियों से सुनाई जाती रही हैं, और कई भक्तों को भगवान के समान ही देखा जाता रहा है।

सद्‌गुरु कहते हैं –

"भक्ति कोई काम नहीं है, भक्त किसी वस्तु या व्यक्ति विशेष की भक्ति नहीं करता; भक्ति में आराध्य मुख्य नहीं होता। बात बस इतनी है, कि भक्ति में आप अपने अंदर हर तरह के विरोध को मिटा देता है, जिससे की परम-तत्व सांस की तरह आपके भीतर और बाहर आ जा सके। परमात्मा कहीं ऊपर नहीं बैठा; यह आपके जीवन के हर पल में एक जीती जागती शक्ति है।"

 

गीत के बोल कुछ इस तरह हैं:

हे स्वामी, आपने कैसे मेरे मन को खोल दिया

और मुझे अपना दास बना लिया?

 

बांसुरी अपनी धुनें बजाती है, और कान की बालियाँ चमकती हैं

और इस मधुर वातावरण में मधुमक्खियां अपने गीत गाती हैं

 

वह शुद्ध और अनूठा मनुष्य

जो नाग के फन के ऊपर चढ़ कर नाचा था

 

वह जिसने सारा ब्रह्माण्ड अपने भीतर समा लिया था

वह जिसे लकड़ी के एक खूंठे से बाँध दिया गया था

 

मन इस भाव को अपने भीतर नहीं रख पा रहा

मन अपनी बात कहना चाहता है

 

तुम्हारे शांत और चमकते चेहरे को

देखकर मुझे शर्म महसूस हो रही है

 

और मैं तुम्हारे चरण कमलों की तरफ खीचा जा रहा हूँ

वो, जिसने मेरे लिए चैन लेने की कोई जगह नहीं छोड़ी - सिवाए अपने

 

वो जो अपने सिर पर मोरपंख पहनता है

वो जिसने मटकों में से माखन चुरा कर अपने दोस्तों के साथ बांटा

 

और इससे पहले कोई शिकायत पहुंचती,

वो खुद अपनी मां के पास भोलेपन के साथ पहुंच गया