संगीत की बयार जो सात दिन पहले शुरू हुई थी उसने पिछले तीन दिनों में खूब जोर पकड़ लिया और वसंत की बहार के साथ साथ लोगों को संगीत की मधुर मस्ती में डुबो दिया...

7 मार्च (पांचवा दिन)

श्री निशात खान (सितार वादक)


श्री निशात खान ऐसे नामी संगीतज्ञ परिवार से हैं जिसकी अटूट कड़ी 16वी सदी के मियां तानसेन तक जाती है। इटावा या इमदादखानी घराने की खासियत यह है कि यह सितार से मिलते-जुलते वादन, सुरबहार की इजाद करने, और इन दोनों वादनों की तारों में काफी संरचनात्मक बदलाव करने के लिए जाना जाता है।

कार्यक्रम की शुरूआत श्री निशात खान ने भक्तिरस में डूबे राग मारवा से करके अंत राग मारू बिहाग ये किया। वैसे तो शायद यही राग था, लेकिन अगर आप लाइव वेबकास्ट देखकर इस राग को पहचान गए हों, तो हमें जरूर बताइएगा!

 

 

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8 मार्च (छठा दिन)

सुश्री विदुशी गूहा (हिन्दुस्तानी गायकी)

सुश्री विदुशी गूहा पूरब अंग की ठूमरी के लिए जानीं जातीं हैं। ठूमरी के अलावा बनारस परम्परा के दादरा, कजरी, चैती और खयाल जैसी और शैलियों में भी उनका कोई जवाब नहीं है।

कोलकत्ता की संगीत रिसर्च अकादमी में 11 साल पढा चुकीं सुश्री विदुशी गूहा अपनी तरह की बेजोड़ महिला पंडित हैं।

सबसे पहले श्री विजय किचलु ने ईशा के 'इन कॉनवर्सेशन विद द मिस्टिक’ सिरीज के तहत नए वीडिओ एल्बम 'एकतारा’ के विमोचन से की। यह एल्बम विख्यात हिन्दुस्तानी गायक पंडित जसराज और सद्‌गुरु के बीच संवाद का हिस्सा है।

कार्यक्रम की शुरूआत सुश्री विदुशी गूहा ने राग चयनत के 'जोबन मोरा दिए जात दगा’ और अंत होरी डाडरा के कृष्ण प्रेम में डूबे 'रंग दरूंगी नंद के लालन पे’ से की।

9 मार्च (सातवां दिन)

टी एम कृष्णा (कर्नाटक गायक)
टी एम कृष्णा एक ऐसे परिवार से हैं जिसमें सभी लोग संगीत के पारखी रहें हैं साथ ही ये कर्नाटक संगीत की दुनिया में एक उभरते सितारे हैं।

 

कृष्णा अपने स्पंदनशील ध्वनि के लिये और शास्त्रीय संगीत को बिना किसी विकृति और भटकाव के अनुसरण करने के लिए जाने जाते हैं। इन्होंने कार्यक्रम की शुरूआत राग यदुकुला कमबोधी में नटराज स्तुति से की। जैसे जैसे कार्यक्रम आगे बढ़ता गया श्रोता इनके मधुर गायन में लीन होते गये।

कल 10 मार्च को महाशिवरात्रि महोत्सव में आप हमारे साथ जरूर शामिल हों, हम आपके लिये ले कर आयेंगे महाशिवरात्रि का सीधा प्रसारण ईशा योग केंद्र से।