अभी ईशा में संगीत और नृत्‍य का उत्‍सव- यक्ष, अपने चरम पर है। देश के मशहूर कलाकार हर शाम अपनी प्रस्‍तुति देते हैं। महाशिवरात्रि से पहले के सप्ताह में, यक्ष महोत्सव का आयोजन करते हुए हमें बेहद आनंद हो रहा है।

यक्ष 2014 में कार्यक्रमों की श्रृंखला बहुत रोमांचक है। शास्त्रीय संगीत और नृत्य की अनेक प्रस्तुतियां, कार्नेटिक और हिंदुस्तानी शैलियों में शास्त्रीय गायन और साथ ही वाद्य संगीत के प्रदर्शन भी।

सभी प्रदर्शनों को नि:शुल्क लाइव-स्ट्रीम किया जा रहा है। आईए शामिल हो इस महोत्सव में…

20 फरवरी (पहला दिन)

कलाकार: मालविका सरुक्कई

प्रस्तुति: भरतनाट्यम

यक्ष 2014 की शुरुआत बहुत धमाकेदार हुई। सप्ताह भर चलने वाले समारोह का उद्घाटन भरतनाट्यम नृत्यांगना पद्मश्री मालविका सरुक्कई ने किया जिन्होंने दुनिया भर में पुरस्कार जीते हैं और आलोचकों के साथ-साथ दर्शकों की तारीफ और प्यार बटोरा है।

वह भरतनाट्यम की तंजावुर और वजुवूर घरानों से ताल्लुक रखती हैं। उन्होंने गुरु कल्याणसुंदरम और गुरु राजारत्नम से तालीम हासिल की। बाद में उन्होंने गुरु कलानिधि नारायण से अभिनय और गुरु केलुचरण मोहापात्रा तथा गुरु रमानी जेना से ओडिसी नृत्य सीखा।

गणेश की स्तुति से आरंभ करने के बाद, उन्होंने नृत्य के देवता शिव को समर्पित एक श्लोक के साथ अपनी प्रस्तुति शुरू की। बोलों पर अद्भुत भावनात्मक नृत्य के बाद, नृत्यांजलि या शुद्ध नृत्य प्रस्तुत किया गया। यह प्रस्तुति राग अमृतवर्षिणी और कीरावनी पर आधारित थी।

शिव के बाद नृत्यांगना की अगली प्रस्तुति उनकी अद्धांगिनी के लिए थी। ‘श्रृंगारलहरी’ का संगीत पूर्व मैसूर रियासत के मशहूर संगीतकार लिंगाराजा ने तैयार किया था। राग नीलांबरी में प्रस्तुत इस गीत के बोलों पर मालविका सरुक्कई ने देवी, उनकी बेजोड़ सुंदरता की प्रशंसा में एक वर्णनकारी और श्रृंगार नृत्य प्रस्तुत किया। कवि कहता है, “जिस तरह भंवरा कमल के चारो ओर मंडराता है, हम आप का ही ध्यान करते हैं।” पृष्ठभूमि में लिंग भैरवी मंदिर की मौजूदगी के साथ, यह खास तौर पर बिल्कुल उपयुक्त गीत था।

अंत में राग वृंदावन सारंग में तकनीकी रूप से सशक्त तिल्लाना प्रस्तुत किया गया। यह शुद्ध नृत्य की एक सशक्त प्रस्तुति थी, जिसके बारे में खुद मालविका सरुक्कई ने कहा कि वह प्रस्तुति नृत्य, रूप, आकाशीय गति के साथ-साथ सुर की कविता से जुड़ी थी।

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इस पूरी प्रस्तुति का तकनीकी पक्ष बहुत मजबूत होते हुए भी आम लोगों की समझ में आने लायक था। आरंभ में नृत्यांगना ने कहा, “मैं आश्चर्य और विस्मय की प्रतिक्रियाओं को, “अहा” वाले क्षण को ढूंढती हूं।” निश्चित तौर पर हमें ऐसे बहुत से क्षण मिले।

21 फरवरी (दूसरा दिन)

कलाकार: वादक्कनचेरी वीराराघव सुब्रह्मण्यम

प्रस्तुति: कार्नेटिक संगीत (वायलिन)

कार्नेटिक शैली के वायलिन वादक बंधु वादक्कनचेरी वीराराघव सुब्रह्मण्यम और रवि एक प्रतिष्ठित संगीतमय परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता वादक्कनचेरी वीराराघव अय्यर एक शास्त्रीय गायक और वायलिन विद्वान थे और उनके दादा त्रावणकोर के महाराजा तथा संगीत कलाओं के महान संरक्षक स्वाति तिरुनाल की संगीत सभा – स्वाति तिरुनाल संगीत सभा के दरबारी संगीतकार थे।

ईशा के लिए यह खास तौर पर खुशी की बात है कि अत्यंत प्रतिभावान वायलिनवादन वी वी रवि, जो दुनिया भर में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं और बहुत ही मंजे हुए कलाकारों का साथ दे चुके हैं, ईशा के एक साधक भी हैं। इस मृदुभाषी संगीतकार ने हमें बताया, “मैंने दो वर्ष पहले शांभवी में दीक्षा ली और मैंने अपना भाव स्पंदन भी पूरा कर लिया है। इस अभ्यास ने मुझे बहुत लाभ पहुंचाया है और मुझे बहुत सी आशंकाओं और चिंताओं से मुक्त किया है। अब प्रदर्शन के समय मैं अधिक शांत होता हूं।” असल में रवि दो वर्ष पहले ईशा योग केंद्र आए थे, जब उन्होंने यक्ष 2012 में शास्त्रीय गायक नेवेली संथाना गोपालन का साथ दिया था।

इन कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत एक ताजा गीत से की, जिसके बारे में वीवीएस ने कहा कि वह शिव की स्तुति में इस्तेमाल होने वाले स्त्रोतों का एक संकलन है। इसके बोल इस तरह शुरू होते हैं:

ईशम गिरीशम जगदीशम .. नमामयम

भ्रदीशम नमामयम

कैलाश वासम कनक सभेषम

स्वसाधि जीव शक्त्यधरम

वासुदेव पूजिता शंकरम

इन कलाकारों का अगला गीत मनोहारी संध्या बेला के अनुरूप पूर्वी कल्याणी राग में था। यह नीलकांत सीवन के आनंद नटम अडुवर पर आधारित था। इसके बाद राग आनंद भैरवी में एक मनोहारी गीत प्रस्तुत किया गया।

इसके बाद इन कलाकारों ने राग सम में मुथुस्वामी दीक्षितार का गीत अन्नपूर्णे विसलाक्षी पेश किया। फिर बहुत ही सुंदर स्त्रोत सांबा सदाशिव शंकर के साथ उन्होंने अपना प्रदर्शन समाप्त किया।

सद्‌गुरु के धन्यवाद देने पर, कलाकार उनसे मिलने का अवसर पा कर अभिभूत थे।

 22 फरवरी (तीसरा दिन)

कलाकार: पंडित वेंकटेश कुमार

प्रस्तुति: हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन

पंडित वेंकटेश कुमार हिंदुस्तानी शैली में गायन करते हैं। वह कर्नाटक के धारवाड़ जिले से ताल्लुक रखते हैं जिसने मल्लिकार्जुन, मंसूर, गंगूबाई हंगल और भीमसेन जोशी जैसे महान हिंदुस्तानी गायकों की गायकी को संवारा है।

बहुत से लोग इस मृदुभाषी गायक को प्रतिभा का पावर हाउस मानते हैं, जिन्हें लंबे समय तक पहचान नहीं मिल पाई।

पंडित कुमार ने अपनी प्रस्तुति पुर्वी थाट के प्राचीन राग श्री से आरंभ की। खास तौर पर भगवान शिव के विषय में यह बंदिश कुछ इस तरह थी “मोरा आसरा रे.. जग में तुमरे बिन हमरी और कौन।”

द्रुत बंदिश “बाजे मुरलिया” कर्णप्रिय टुकड़ों के साथ एक चकित कर देने वाली प्रस्तुति थी।

अपनी दूसरी प्रस्तुति में पंडित पंडित कुमार ने राग तिलक कमोद में “तीरथ को सब करे” गाया और द्रुत गीत मियां तानसेन की बंदिश “डमरू डम डम बाजे” थी। यह प्रस्तुति रसीली और उत्साहवर्धक, दोनों थी। लोग इसे सुन कर खुशी से झूम उठे।

‘शरण साहित्य’ या कन्नड़ भक्ति कविता के व्यापक स्रोत की ओर जाते हुए, पंडित कुमार ने अध्यात्म के जिज्ञासुओं को कवि बसावन्ना की सलाह को गीत के रूप में प्रस्तुत किया: “कलाबेडा, कोलाबेडा...” चोरी या हत्या मत करो, झूठ मत बोलो, घृणा मत करो... भगवान लिंगदेव को खुश करना का यही तरीका है।

फिर, उन्होंने परंपरागत भैरवी के साथ अपनी प्रस्तुति समाप्त की। उन्होंने ईशा में काफी गाए और पसंद किए जाने वाले इस गीत को प्रस्तुत किया : योगीश्वराया, महादेवाया, त्रियंबकाया, त्रिपुरांतकाया... महादेवाया नम:।

यह उत्तम संगीत की एक संध्या थी।

संपादक की टिप्पणी: इस वर्ष ईशा योग केंद्र में महाशिवरात्रि महोत्‍सव 27 फरवरी को मनाया जा रहा है। सद्‌गुरु के साथ रात भर चलने जाने वाले इस उत्सव में सद्‌गुरु के प्रवचन और शक्तिशाली ध्यान प्रक्रियाओं के साथ-साथ पंडित जसराज जैसे कलाकारों के भव्‍य संगीत कार्यक्रम भी होंगे। आस्‍था चैनल पर सीधे प्रसारण का आनंद लें शाम 6 बजे से सुबह सुबह 6 बजे तक।

शिव को पूरी दुनिया तक पहुंचाने के लिए ईशा एक ऑनलाइन ’थंडरक्‍लैप’ अभियान शुरू कर रहा है। यदि आप लोगों का ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं और महाशिवरात्रि के बारे में जागरूकता फैलाना चाहते हैं, तो हमारे साथ शामिल हों। इसके लिए आपको सिर्फ एक ट्वीट करना होगा। (फेसबुक संदेश भी निमंत्रण का काम करते हैं!)