5 नंवबर 2016 को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने सद्गुरु की मौजूदगी में ईशा योग केंद्र में आयोजित ‘इनोवेटिव इंडियाज स्कूलिंग कॉन्फ्रेंस’ में शिक्षा को बेहतर बनाने विषय पर प्रकाश डाला।

भारत को समृद्ध बनाने का तरीका

प्रकाश जावड़ेकर: केवल वही देश फलते-फूलते हैं, जहां की शिक्षा व्यवस्था बेहतर होती है। एक समय था, जब पूरी दुनिया के कारोबार का एक तिहाई और विश्व सकल उत्पाद का एक चौथाई हिस्सा भारत में होता था।

हमारी नई शिक्षा नीति के पांच स्तंभ हैं - शिक्षा सबकी पहुंच में हो, उसकी गुणवत्ता बेहतर हो, सबको समान रूप से हासिल हो, खर्च के दायरे में हो और हर चीज के लिए जवाबदेही हो।
इतना अमीर था अपना देश। कोलंबस अमेरिका की खोज के लिए समुद्री यात्रा पर नहीं निकला था, क्योंकि तब अमेरिका कुछ था ही नहीं, सिर्फ एक बंजर इलाका था। वह तो भारत की खोज में निकला था, लेकिन गलती से अमेरिका पहुंच गया। उस समय यहां नालंदा, तक्षशिला व विक्रमशिला जैसे विश्वद्यिालय थे। अगर उस समय टाइम्स या क्यूएस रैंकिंग होती तो विश्व की दस सबसे अच्छी यूनिवर्सिटीज भारत में ही होतीं। यही स्थिति हम दोबारा से बनाना चाहते हैं। अच्छी यूनिवर्सिटीज देश को समृद्ध बनाती हैं। इसलिए यह कोई राजनैतिक अजेंडा नहीं है, यह एक राष्ट्रीय अजेंडा है।

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मैं विचारों का स्वागत करता हूं, मैं मतभेदों और असहमति का स्वागत करता हूं, मैं हर चीज के लिए खुला हूं। आइए हम सब साथ आएं, मिलकर कुछ सोचें और कुछ बहुत अच्छी चीज सामने लेकर आएं। हमारी नई शिक्षा नीति के पांच स्तंभ हैं - शिक्षा सबकी पहुंच में हो, उसकी गुणवत्ता बेहतर हो, सबको समान रूप से हासिल हो, खर्च के दायरे में हो और हर चीज के लिए जवाबदेही हो। ‘सबको शिक्षा, अच्छी शिक्षा’- यही नारा है हमारा और इसी को लेकर हम आगे जाएंगे। पिछले सत्तर सालों में हमने शिक्षा का प्रसार किया है। हम शिक्षा को हर परिवार, हर घर तक लेकर गए हैं। और यह एक अच्छी उपलब्धि है, यह कोई छोटी बात नहीं है।

पढ़ाई के लक्ष्य पर चिन्तन

आज हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती शिक्षा के स्तर व गुणवत्ता को सुधारने की है। हमने संख्या तो बढ़ा ली - आज हमारे पास केजी से पीजी तक 27 करोड़ छात्र हैं।

आरटीई में पढ़ाई के नतीजे के बारे में जिक्र किया गया था, लेकिन उसे कभी पूरी तरह से परिभाषित नहीं किया गया था।
यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है, लेकिन सवाल है कि इस पढ़ाई से हमने हासिल क्या किया हैै? पांचवी कक्षा का एक छात्र गिनती नहीं कर पाता, वह दूसरी कक्षा की किताब नहीं पढ़ पाता। क्या यही परिणाम हमने सोचा था? शिक्षा के अधिकार यानी आरटीई के तहत पढ़ाई-लिखाई के स्तर का यह लक्ष्य तो नहीं रखा गया था। और इसलिए मैंने आरटीई को बार-बार पढ़ा, क्योंकि मैं मानव संसाधन विकास मंत्रालय की उस स्थायी समिति का हिस्सा था, जहां हमने इस बिल पर चर्चा की थी।

उस चर्चा में बात हुई थी कि हम परीक्षाओं का दबाव बच्चों पर नहीं डालना चाहते। आप सिर्फ नंबरों की दौड़ यानी रैट-रेस नहीं चाहते थे। लेकिन ऐसी पढ़ाई का नतीजा क्या निकल रहा है? पहली कक्षा की पढ़ाई के बाद आपको इतना आना चाहिए, दूसरी कक्षा के बाद विद्यार्थी को इतना आना चाहिए, तीसरी कक्षा के बाद उसे इतना जरूर करना चाहिए। आरटीई में पढ़ाई के नतीजे के बारे में जिक्र किया गया था, लेकिन उसे कभी पूरी तरह से परिभाषित नहीं किया गया था। मैंने तय किया है कि इसे परिभाषित किया जाएगा और इसे आरटीई का हिस्सा बनाया जाएगा। हम इसे अगले तीन महीने में पूरा कर लेंगे। इसमें हर कक्षा के लिए सीखने का एक परिणाम तय करेंगे।

छात्रों की जिज्ञासा को बढ़ावा देना होगा

शिक्षा सिर्फ शिक्षकों के हाथ में ही नहीं है। हमें शिक्षा को मनोरंजक और इंटेरैक्टिव बनाना होगा। ‘इंटेरैक्टिव एजूकेशन’ ही सबसे अहम चीज है जो ईशा कर रहा है। मैं शिक्षा में तरह-तरह के प्रयोगों का पक्षधर हूं। शिक्षा पसंद व विकल्प आधारित होनी चाहिए। सबके लिए एक जैसी शिक्षा नहीं हो सकती। सबसे पहली चीज कि हमें छात्रों में जिज्ञासा के भाव को प्रोत्साहित करना चाहिए। कई बार यह भाव दबा दिया जाता है। अगर विद्यार्थी सवाल पूछता है तो उसे हतोत्साहित किया जाता है, जो ठीक नहीं है। क्योंकि किसी भी नई या मौलिक चीज की शुरुआत करने की दिशा में पहला कदम जिज्ञासा ही होती है। अगर आप छात्र की जिज्ञासा को बचपन में मार देंगे तो वह आगे चलकर कभी कुछ नया नहीं कर पाएगा। कुछ नया तभी हो पाता है, जब आप वर्तमान स्थिति को चुनौती देते हैं।

अभिभावकों को शिक्षा की प्रक्रिया से जोड़ना होगा

शिक्षा का एक और पहलू है - अभिभावक। जब हम आकांक्षाओं की बात करते हैं तो हमें लगता है कि आकांक्षाएं सिर्फ मध्यम वर्गीय लोगों में होती हैं। जबकि ऐसा नहीं है।

कुल मिलाकर शिक्षा का यही मतलब है। आखिर शिक्षा का परम लक्ष्य क्या है? एक अच्छा इंसान तैयार करना। ‘सा विद्याया विमुक्तये’ ‐ विद्या वही है, जो हमें मुक्त करती है।
गरीब तबके के लोगों में भी आकांक्षाएं होती हैं। आपका ड्राइवर, आपके घर पर काम करने वाले लोग आपसे क्या चाहते हैं? वे अक्सर आपसे कहते हैं, ‘सर, आपकी तो बड़ी जान पहचान है। मेरे बच्चे का किसी अच्छे स्कूल में दाखिला करा दीजिए।’ यही उनकी मांग होती है। यह मांग उनकी आकांक्षाओं के बारे में बताती है। वह अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देना चाहते हैं, यह मांग एक अभिभावक की है। लेकिन उसे भी ट्रेनिंग की जरुरत है। ऊंची फीस का मतलब अच्छा स्कूल नहीं होता है। स्कूलों में एअर कंडीशन और अच्छी बिल्डिंग, गुणवत्ता की कसौटी नहीं है। बेहतर गुणवत्ता की कसौटी है कि कक्षा में क्या पढ़ाया जा रहा है, सीखने व सिखाने की प्रक्रिया कैसी है। लेकिन वे लोग इन सारी पेचीदगियों को नहीं जानते। हमें इस मामले में अभिभावकों को भी साथ लाना होगा। साथ ही, पढ़ाई का खर्च भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि इसके खर्च भयावह हो चुके हैं। शिक्षा की वास्तविक लागत और वास्तव में जो फीस वसूली जा रही है, उनके बीच आपसी रिश्ता होना चाहिए।

मेरे जिला परिषद स्कूल का नाम था - ‘जीवन शिक्षण मंदिर’ यानी ‘लाइफ स्किल ट्रेनिंग सेन्टर’। कुल मिलाकर शिक्षा का यही मतलब है। आखिर शिक्षा का परम लक्ष्य क्या है? एक अच्छा इंसान तैयार करना। ‘सा विद्याया विमुक्तये’ ‐ विद्या वही है, जो हमें मुक्त करती है।