यों तो महाशिवरात्रि पूरे भारत में मनाई जाती है, लेकिन ईशा में इसका कुछ खास महत्व है। प्रस्तुत है महाशिवरात्रि-2012 की कुछ झलकियां

हर वर्ष की तरह पिछले साल भी ईशा में महाशिवरात्रि का पर्व बहुत बड़े स्तर पर आयोजित किया गया। वेलिंगिरि पर्वतों की तराई में स्थित, घने वनों से घिरे ईशा योग केंद्र में महाशिवरात्रि महोत्सव का आयोजन पिछले दो दशकों से किया जाता है। भारत सहित दुनियाभर से आए दो लाख से अधिक साधकों ने रात भर चलने वाले कायक्रमों में सद्‌गुरु के साथ सत्संग का आनंद उठाया।

उनका अनुभव भाव विभोर करने वाला था - कुछ सहज आँसू बहा रहे थे तो कुछ फूट-फूट कर रोने लगे, कुछ चीख-चिल्ला रहे थे तो कुछ ज़मीन पर लोट रहे थे।

यह रात्रि खासकर इसलिए महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि इस दौरान पृथ्वी के उत्‍तरी गोलार्द्ध की दशा कुछ ऐसी होती है, जिसके चलते मानव शरीर में सहज रूप से ऊर्जा ऊपर की ओर चढ़ती है। इसके महत्व को देखते हुए सद्‌गुरु विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों व खास ध्यान प्रक्रियाओं द्वारा इस शक्तिशाली ऊर्जा का इस्तेमाल साधकों के बोध को बढ़ाने के लिए करते हैं, ताकि वे जीवन के उच्चतर आयामों को अनुभव कर सकें।

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पंचभूत आराधना

महाशिवरात्रि की तैयारी में पूर्व सात दिनों तक ईशा योग केन्द्र में यक्ष-उत्सव” मनाया गया, जिसमें देश के नामी कलाकारों ने बेमिसाल संगीत एवं नृत्य प्रस्तुत किए। महोत्सव की शुरुआत शाम छह बजे ध्यानलिंग योग मंदिर में पंचभूत आराधना” (भूत-शुद्धि की प्रक्रिया) से हुई। सद्‌गुरु की मौजूदगी और ध्यानलिंग की दिव्य ऊर्जा में सैकड़ों साधकों ने एक अनोखे हलकेपन और अपूर्व आनंद का अनुभव किया।

“साउंड्स ऑफ ईशा” संगीत मंडली द्वारा लोक गीत भी प्रस्तुत किए गए। नींद की मधुर झपकियों के आगे घुटने टेक देने वाले लोगों ने भी इन लोक संगीतों पर झूमकर-नाचना पसंद किया।

इसके बाद, आयोजन स्थल पर, ईशा के ब्रह्मचारियों ने शंकराचार्य द्वारा रचित “निर्वाणषट्कम” की दिव्य गूंज से सबका स्वागत किया। सद्‌गुरु ने महाशिवरात्रि के महत्व बारे में बताते हुए वहाँ उपस्थित साधकों और टीवी व वेबसाइट पर महोत्सव का आनंद उठा रहे सभी लोगों को पूरी रात जागने और आयोजित प्रक्रियाओं में उत्साहपूर्वक भाग लेने के लिए प्रेरित किया।

सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरुआत सूफ़ियाना कलाम और कव्वाली गायकी के जाने माने "वडाली बंधुओं” के गायन से हुई, जिन्होंने अपने सुरों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। प्रेम में डूबी उनकी गायकी सुनकर वहाँ बैठे लोग झूम उठते और नाचने लगते। तबला व फ्यूज़न संगीत के महारथी बिक्रम घोष की सुर लहरियां भी अनूठी थीं।

कैलाश खेर
इनके अलौकिक संगीत में एक जादुई शक्ति थी, जो श्रोताओं को चेतना व जागरूकता के एक नए आयाम में प्रवेश दिलाती। कार्यक्रम के अंत में फ्यूज़न संगीत की दुनिया के विख्यात प्रतिभा-प्रेम जोशुआ व समूह की प्रस्तुति हुई।यह अपरम्परागत फ्यूज़न संगीत सुनने में थोड़ा  विचित्र तो था, लेकिन इसका आनंद सब ने उठाया। रात भर के इस जागरण में लोगों को जगाए और उत्साहित रखने के लिए बीच-बीच में “साउंड्स ऑफ ईशा” संगीत मंडली द्वारा लोक गीत भी प्रस्तुत किए गए। नींद की मधुर झपकियों के आगे घुटने टेक देने वाले लोगों ने भी इन लोक संगीतों पर झूमकर-नाचना ज़्यादा पसंद किया।

इस महोत्सव का उद्देश्य लोगों का मरंजन करना नहीं, बल्कि एक जीवित गुरु की सशक्त उपस्थिति में उन्हें अपने अंदर के चैतन्य की एक झलक दिखाना है।इसके अलावा, महोत्सव पंडाल के बाहर, ईशा में चलने वाली विभिन्न गतिविधियों की जानकारी देने के लिए कई स्टॉल लगाए गए थे। साथ ही, मुफ़्त महाअन्नदान की भी व्यवस्था थी, जहां स्थानीय इलाकों से हजारों की तादाद में आए लोगों का तांता लगा हुआ था।

इस सबमें सद्गुरु, की अलौकिक मौजूदगी ने वहाँ उपस्थित लाखों लोगों के साथ-साथ टीवी और वेबसाइट के जरिए इस महोत्सव का आनंद उठा रहे श्रद्धालुओं को पूरी रात बाँधे रखा। इस दिव्यदर्शी योगी ने मध्यरात्रि में विशेष ध्यान प्रक्रियाओं और मंत्रों में लोगों को दीक्षित किया जिससे वे लोग अपनी भौतिकता से परे एक अनजाने आयाम का अनुभव कर पाए। उनका अनुभव भाव विभोर करने वाला था - कुछ सहज आँसू बहा रहे थे तो कुछ फूट-फूट कर रोने लगे, कुछ चीख-चिल्ला रहे थे तो कुछ ज़मीन पर लोट रहे थे।

सद्गुरु
सद्‌गुरु की दिव्य मौजूदगी ने सबके अंतरतम को बहुत गहराई से छुआ। मीडिया से आए कुछ लोगों ने अपने आभार इन शब्दों में व्यक्त किए- ‘ऐसा कार्यक्रम हमने अपने पूरे जीवन में कभी नहीं देखा।’

इस महोत्सव के आयोजन का उद्देश्य लोगों का मनोरंजन करना नहीं, बल्कि उन्हें अपने अंदर के चैतन्य की एक झलक दिखाना है। इसका उद्देश्य मात्र सांस्कृतिक ही नहीं है, बल्कि एक जीवित गुरु की सशक्त उपस्थिति में अंतरतम को स्पर्श करके लोगों का जीवन रूपांतरित करना भी है।