नदी अभियान : देखें लाइव – भरतपुर और जयपुर में हुए कार्यक्रमों की झलकें
नदी अभियान रैली ने उत्तर प्रदेश के बाद राजस्थान में प्रवेश किया, रैली लखनऊ के बाद भरतपुर पहुंची। जानते हैं भरतपुर और उसके बाद जयपुर में हुए कार्यक्रम के बारे में और देखते हैं कुछ तस्वीरें।
नवाबों की जमीं से महाराजों की धरती तक
नदी अभियान के सिपाहियों ने सुबह 8 बजे हल्के नाश्ते (शायद कुछ के लिए वो भारी नाश्ता था) के बाद लखनऊ से भरतपुर के लिए कूच किया।
सुबह 11 बजे हमने करल के वीवीआईपी अतिथि गृह में एक छोटा विराम लिया, जो एक महल जैसा बंगला था। हम अभी भी यु.पी. में ही थे। लखनऊ के अद्भुत स्वयंसेवकों ने हमारे लिए यह व्यवस्था की थी। हम वहां से जाने की तैयारी कर ही रहे थे कि सद्गुरु गायक मोहित चौहान के साथ वहां आ गए, जो इस समारोह में भाग लेने के लिए जयपुर तक हमारे साथ थे।
हम एक झटपट से विराम के बाद वापस सड़क पर थे, हमने जितने समय में जो दूरी तय की थी उससे हम बेहद खुश हैं। बेशक हमारा उत्साह ज़्यादा देर नहीं रहा था अचानक बस रूक गई आगे एक गर्डर बहूत कम ऊंचाई पर था जिसके कारण बस के नीचे से गुजरने के लिए जगह नहीं थी। हमें एक्सप्रेसवे पर लगभग 40 किलोमीटर पीछे जाना पड़ा और फिर हमारे लंच की जगह तक पहुंचने के लिए राजमार्ग से अलग रास्ता लेना पड़ा। हम एक्सप्रेसवे से हट कर राज्य मार्ग पर आ गए थे, जिसने हमारे पहले से 10 घंटे की लंबी यात्रा में अतिरिक्त 2 घंटे की यात्रा को और जोड़ दिया ।
भरतपुर पहुंची टीम
हम अंततः भरतपुर पहूंच गए और विशाल लक्ष्मी विलास पैलेस के विहंगम द्रश्य ने हमे निराश नहीं किया । बेशक तब तक हम सद्गुरु के स्वागत और वहाँ हुए मिनी इवेंट को नहीं देख पाए थे... देर से ही सही लेकिन हमने स्वादिष्ट दोपहर के भोज में हिस्सा लिया।
Subscribe
साउंड्स ऑफ़ ईशा के सदस्यों ने भी स्थानीय कलाकारों के मुलाक़ात की जो अभी भी हमारे आने की प्रतीक्षा कर रहे थे।
रात के 8.20 हो गए थे और हम अगले आधे घंटे में जयपुर में अपने ठिकाने तक पहुंचने की उम्मीद कर रहे थे। उस गुलाबी शहर को देखने के लिए अंधेरा बहूत ज़्यादा हो गया था, तो हमें अगले दिन ऐसा करना पड़ा।
राजस्थानी खातिरदारी
जयपुर की यात्रा भव्यता और मजेदार पकवानों के साथ पैक थी।
“कमरा" यह शब्द उस विशाल रहने की जगह के साथ न्याय नहीं करता है जो हमें दिखाई गई थी। आलिशान कमरे बड़े आकार वाले बिस्तर और शाही फर्नीचर के साथ महल वाले कमरे में एक बाथरूम ऐसा था, जोकि हमारे घरों के कमरों जितना बड़ा था। इतना ही नहीं वहां हमारा निजी "आंगन" भी था जो लगभग कमरे जितना ही बड़ा था। कुछ मिनटों के लिए हम सचमुच विश्वास नहीं कर सकते थे कि हम ऐसे स्थान पर रहेंगे जिसे हमने पॉश यात्रा पत्रिकाओं में देखा और पढ़ा था।
कमरा अगर राजसी ठाट को दर्शाता था, तो भोजन भी किसी तरह से कम नहीं था, एक वाक्य में कहे तो यह एक “शानदार शाही दावत” थी। अगर हम हर पकवान के बारे में बताये तो शुरुआत एक स्वादिष्ट शोरबे से हुई उसके बाद बाटियां, चूरमा और सब्जियां सभी कुछ घी में बनाया गया था, शुद्ध पारंपरिक राजस्थानी स्वाद था। कई डेसर्ट थे, पर स्वाद के मामले में बाज़ी मारी कुल्फी ने क्योंकि हमने कई लोगों को एक से ज़्यादा बार कुल्फी का लुत्फ़ लेते हुए देखा। एक शानदार भोजन और रात के लिए शाही रिटायरमेंट के बाद, हम अगली सुबह जयपुर रैली के लिए जाने को तैयार थे।