महाशिवरात्रि 2017 : माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का भाषण
आदियोगी शिव के भव्य चेहरे के अनावरण के बाद प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ईशा योग केंद्र में महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर मौजूद लाखों श्रद्धालुओं को इन शब्दों में संबोधित किया।
महाशिवरात्रि : भगवान शिव का महा उत्सव
सभी को मेरा प्यार भरा अभिवादन।
इस गौरवशाली सभा में मौजूद होना मेरे लिए सम्मान की बात है - वह भी, महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर। हमारे देश में बहुत से त्यौहार हैं लेकिन यह एकमात्र त्यौहार है, जिसके आगे ‘महा’ लगा है।
महाशिवरात्रि का उत्सव पूरी रात चलता है। यह जागरूकता की भावना का प्रतीक है कि हमें प्रकृति को बचाना है और अपनी गतिविधियों को पर्यावरण और परिवेश के तालमेल में लाना है। मेरा गृह राज्य गुजरात सोमनाथ की धरती है। लोगों का बुलावा और सेवा की चाहत मुझे विश्वनाथ की धरती काशी ले गई। सोमनाथ से विश्वनाथ, केदारनाथ से रामेश्वरम और काशी से कोयंबटूर, जहां हम एकत्रित हुए हैं, हर जगह भगवान शिव मौजूद हैं।
देश के हर कोने में मौजूद करोड़ों भारतीयों की तरह मैं भी महाशिवरात्रि के उत्सव का हिस्सा बनकर बहुत खुश हूं। हम समुद्र में सिर्फ एक बूंद की तरह हैं। सदियों से हर युग और काल में अनगिनत भक्त हुए हैं। वे अलग-अलग जगहों पर हुए, उनकी भाषा भले ही भिन्न रही, लेकिन ईश्वर के लिए उनकी चाह हमेशा एक जैसी रही है। यह चाहत हर इंसान के हृदय में धडक़ती है। उनकी कविता, उनके संगीत, उनके प्रेम ने पूरी धरती को ओतप्रोत कर दिया है।
आदियोगी : सबको सत्य के लिए प्रेरित करेंगे
यहां आदियोगी के 112 फीट के चेहरे और योगेश्वर लिंग के आगे खड़े होकर हम ऐसी विराट मौजूदगी को महसूस कर रहे हैं, जो यहां मौजूद हर एक को अपने घेरे में ले रही है।
आज, योग ने एक लंबा सफर तय कर लिया है। आज योग की विभिन्न परिभाषाएं, प्रकार और विचारधाराएं हैं। योग अभ्यास के कई तरीके सामने आए हैं। यही योग की खूबसूरती है - यह प्राचीन होते हुए भी आधुनिक है, यह स्थिर होते हुए भी निरंतर विकास कर रहा है। योग का सारतत्व नहीं बदला है। और मैं यह इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि इसके सारतत्व को बचाकर रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। अन्यथा, योग की आत्मा और सारतत्व को फि र से खोजने के लिए हमें एक नए योग की खोज करनी पड़ सकती है।
योग वह प्रेरक तत्व है जो जीव को शिव में रूपांतरित करता है। हमारे यहां कहा गया है - यत्र जीव: तत्र शिव:। जीव से शिव की यात्रा ही तो योग है।
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योग - ‘मैं’ से ‘हम’ की यात्रा है
योग के अभ्यास से एकत्व की भावना पैदा होती है - मन, शरीर और बुद्धि का एकत्व। एकत्व अपने परिवार से, एकत्व उस समाज से जिसमें हम रहते हैं, एकत्व अपने साथी इंसानों के साथ, सभी पशु-पक्षियों और पेड़ों के साथ, जिनके साथ हम अपनी सुंदर धरती पर रहते हैं।
शिव के बारे में सोचिए तो एक तस्वीर जो मन में उभरती है, वह है विशाल हिमालय में कैलाश पर्वत पर उनकी भव्य मौजूदगी की। देवी पार्वती के बारे में सोचने पर हमें सुंदर कन्याकुमारी याद आती है, जो विशाल समुद्र से घिरी है। शिव और पार्वती का मिलन हिमालय का समुद्र के साथ मिलन है।
शिव और पार्वती, यह अपने आप में एकत्व का संदेश है। और देखिए कि एकत्व का यह संदेश आगे खुद को कैसे अभिव्यक्त करता है - भगवान शिव के गले में सांप लिपटा है। भगवान गणेश का वाहन चूहा है। हम सब सांप और चूहे के रूखे संबंध से भलीभांति परिचित हैं। फि र भी ये एक साथ रहते हैं। इसी तरह, कार्तिकेय का वाहन मोर है। मोर और सांप के बीच दुश्मनी मानी जानी है। फि र भी ये साथ रहते हैं। भगवान शिव के परिवार में विविधता होते हुए भी इसमें सद्भाव और एकता की भावना है।
विविधता टकराव की वजह नहीं है
विविधता हमारे लिए टकराव की वजह नहीं है। हम इसे स्वीकार करते हैं, और पूरे दिल से अपनाते हैं। यह हमारी संस्कृति की खासियत है कि जहां कहीं कोई देवी या देवता हैं, उनके साथ कोई पशु, पक्षी अथवा पेड़ जुड़ा होता है।
हम बचपन से इन्हीं गुणों के साथ जीते आए हैं और यही वजह है कि करुणा, उदारता, भाईचारा और सद्भाव की भावनाएं हमारे अंदर कुदरती तौर पर होती हैं। हमने इन मूल्यों के लिए अपने पूर्वजों को जीते और मरते देखा है। इन्हीं गुणों ने भारतीय सभ्यता को सदियों से जीवंत रखा है।
हमारे मन को हमेशा हर ओर से आने वाले नए विचारों और सुझावों के लिए तैयार रहना चाहिए। दुर्भाग्यवश, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपनी अज्ञानता को छिपाने के चक्कर में बहुत कट्टर नजरिया अपना लेते हैं और नए विचारों तथा अनुभवों के स्वागत की किसी भी गुंजाइश को नष्ट कर देते हैं। किसी सुझाव या विचार को सिर्फ इसलिए खारिज कर देना कि वह प्राचीन है, काफी नुकसानदायक हो सकता है। इसलिए जरुरी है उसका विश्लेषण करना, उसे समझना और उसे नई पीढ़ी तक उस रूप में ले जाना, जिस रूप में वे बेहतर समझ सकें।
महिला सशक्तिकरण के बिना विकास अधूरा
मानवता का विकास महिलाओं के सशक्तिकरण के बिना अधूरा है। अब मुद्दा महिलाओं के विकास का नहीं, बल्कि महिलाओं के नेतृत्व में विकास का है।
भारत में कहा जाता है - नारी तू नारायणी, नारी तू नारायणी। लेकिन पुरुष के लिए क्या कहते हैं - नर तू करनी कर तो नारायण हो जाए। यानी पुरुष जब अच्छे कर्म करता है, तब उसे देवत्व प्राप्त होता है। क्या आपने अंतर पर ध्यान दिया - महिलाओं की दिव्य स्थिति बिना शर्त है। नारी बिना शर्त नारायणी है। जबकि पुरुषों के लिए, यह सशर्त है। वह अच्छे कर्मों से देवत्व अर्जित कर सकता है।
योग से तनाव पर काबू पाया जा सकता है
शायद यही वजह है कि सद्गुरु जगतजननी बनने की शपथ लेने पर जोर देते हैं। सिर्फ मां ही बिना शर्त समावेशी होती है।
21वीं शताब्दी की बदलती जीवन शैली की अपनी चुनौतियां हैं। जीवन शैली से संबंधित बीमारियां, तनाव से संबंधित रोग आम होते जा रहे हैं। संक्रामक बीमारियों पर काबू किया जा सकता है लेकिन गैर-संक्रामक रोगों का क्या करें?
इसीलिए मैं योग को स्वास्थ्य बीमा का पासपोर्ट कहता हूं। बीमारियों के उपचार से ज्यादा यह खुशहाली का एक साधन है। योग का मकसद रोग मुक्ति के साथ-साथ भोग मुक्ति भी है।
योग से एक नए युग का सृजन होगा
योग व्यक्ति को विचार, कार्य, ज्ञान एवं भक्ति में एक बेहतर इंसान बनाता है। योग को सिर्फ शरीर को फिट रखने वाले कसरत के रूप में देखना अनुचित होगा।
सद्गुरु ने आम इंसान को योगी बनाया है
सद्गुरु ने एक वास्तव में उल्लेखनीय कार्य यह किया है कि उन्होंने साधारण, आम लोगों को योगी बना दिया है।
धन्यवाद। बहुत-बहुत धन्यवाद।