ईशा योग का एक अनूठा कार्यक्रम संपन्न हुआ कुछ दिनों पहले केरल जेल के अंदर जो वहां उम्र कैद की सजा भुगत रहे कैदियों के लिए था। उस कार्यक्रम का हिस्सा रहे एक स्वयंसेवक हमसे अपने अनुभव साझा कर रहे हैं।

पूजप्पुरा की केन्द्रीय जेल की 15 फीट ऊँची सफेद दीवारों को देखकर हम काफी भयभीत हो गए थे। इन दीवारों के पीछे क्या होता है, हम में से किसी ने कभी नहीं देखा था। हमें जेल के कम ऊंचाई वाले दरवाजों से अंदर ले जाया गया। सिर झुकाकर घुसते समय, हमनें कुछ कैदियों को रजिस्टर में अपने नम्बर दर्ज करा कर अंदर जाते हुए देखा।

हमें एक पुलिस अफसर सीधे जेल की तरफ ले गया। गलियारों की दोनों ओर जेल के कमरों की सलाखें हमारी तरफ घूर रही थीं। जेल का मैदान पार करके हम जेल के भीतरी हिस्से में पहुंचे, जहां हम लगभग पचास कैदियों से मिले।

सभी कैदी पूरे उत्साह और उमंग के साथ नाचने लगे। केवल एक मध्य उम्र के व्यक्ति खड़े थे - वे स्तब्ध थे और उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे।
वे लोग अच्छे और साफ़ सफ़ेद धोती और सफ़ेद शर्ट पहने हुए थे। उनके कंधे सीधे और सिर ऊंचा उठा हुआ था। पर वे हमें देख कर, हमारे बारे में उत्सुक नहीं दिख रहे थे, उन्होंने हमें पलटकर दूसरी बार भी नहीं देखा।

वहां योग कार्यक्रम में भाग लेने के इच्छुक 32 कैदी आए हुए थे। ये लोग 20 साल से 55 साल की उम्र के बीच के थे, और ज्यादातर उम्र कैद की सजा काट रहे थे। हॉल में हमारे पहुंचने पर, उन प्रतिभागी कैदियों को जमीन पर बिछे गलीचों पर बैठने के लिए कहा गया।

लगभग सभी लोग बहुत अधीर नजर आ रहे थे, उनके लिए थोड़ी देर आराम से वहां बैठना मुश्किल लग रहा था।  इसलिए हमने बाहर जाकर खेल शुरू करने का फैसला किया। स्वयंसेवियों के निर्देश सुनकर सभी कैदी दो पंक्तियों में खड़े हो गए। वे सभी बेचैन लग रहे थे। इसके बाद योग शिक्षक ने पूरे उत्साह के साथ खेल शुरू कर दिया। जैसे-जैसे खेल आगे बढ़ने लगा,  सहभागियों को खेल का आनंद आने लगा, वे भाग रहे थे और तालियां बजाकर एक दूसरे को प्रोत्साहित कर रहे थे।

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इसके बाद कमरे में योग सत्र शुरू हुआ। जब शिक्षक ने उनसे पुछा कि उन्हें खेलों में भाग लेकर कैसा लगा, तो किसी ने कहा कि ‘मैं तो अपनी पीड़ा भूल गया था। कोई विचार नहीं चल रहे थे। मेरा मन रिक्त था।’ किसी का कहना था कि ‘मेरा मन एक निर्दोष बच्चे के मन की तरह हो गया था।’ एक ने ये कहा कि ‘मुझे ऐसा लगा कि मैं अपने स्कूल में हूं और अपने सहपाठियों के साथ खेल रहा हूं।’ तो एक ने तो यहां तक कह दिया कि ‘थोड़ी देर के लिए तो मैं यह भूल ही गया था कि मैं एक जेल में हूं।’

उनके उत्तर सुनने के बाद शिक्षक ने सत्र को आगे बढ़ाया और सभी सहभागी ध्यान से सुन रहे थे। उप-योग सत्र 3 घंटे तक चला और इसमें सद्गुरु के द्वारा रचे गए कई सारे अभ्यास सिखाये गए।

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इन अभ्यासों से शारीरिक तनाव और थकान कम होती है, और जोड़ों और मांसपेशियों का व्यायाम होता है। इससे मन और शरीर में स्फूर्ति आती है।

सत्र के बाद अलई-अलई गीत बज उठा।

शुरू में कैदी हमारी ओर अविश्वास भरी नजरों से देखने लगे। उसके बाद शिक्षक नाचने लगे, और फिर हम लोग भी इसमें कूद पड़े। सभी कैदी पूरे उत्साह और उमंग के साथ नाचने लगे।

जेल का मैदान पार करके हम जेल के भीतरी हिस्से में पहुंचे, जहां हम लगभग पचास कैदियों से मिले। वे लोग अच्छे और साफ़ सफ़ेद धोती और सफ़ेद शर्ट पहने हुए थे।
केवल एक मध्य उम्र के व्यक्ति खड़े थे - वे स्तब्ध थे और उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे। सभी को ये महसूस हो रहा था कि गीत बहुत जल्दी खत्म हो गया।

कई कैदी सत्र पूरा होने के बाद, हमसे आश्रम के बारे में पूछने के लिए आए। उनमें से कुछ की आंखों में आंसू थे। एक पुलिस अफसर ने भी हमसे पुछा, कि क्या हम पुलिस अफसरों के लिए भी ऐसी कक्षा का आयोजन कर सकते हैं।

बाहर आए तो हमें पता चला कि भारी बरसात हो रही है। शिक्षक, स्वयंसेवी और कैदी सभी इतने गहरे मग्न थे, कि उन्हें बारिश होने की भनक भी नहीं लगी।

हमारे जेल के दरवाजों के बाहर आने तक एक बड़ा बदलाव आ गया था। वे सभी लोग - कैदी हों या पुलिस वाले - योग के भीतरी आयामों का स्वाद चाहने वाले जिज्ञासुओं में रूपांतरित हो चुके थे।

संपादक की टिप्पणी : अगर आप उप-योग के अभ्यास सीखना या बांटना चाहते हैं तो ये निःशुल्क एंड्राइड एप्प डाउनलोड कर सकते हैं, या फिर ये अलग - अलग यूट्यूब विडियोस देख सकते हैं