सद्‌गुरुहम सभी ने बचपन के दिनों से ही भूत प्रेत की कई कहानियाँ सुनी हैं। क्या सच में भूत प्रेतों का अस्तित्व होता है? क्या मृत्यु के बाद लोग भटकते हैं? जानते हैं इस माह की ईशा लहर से। आइये पढ़ते हैं इस माह का सम्पादकीय स्तंभ

कॉलेज के मित्र से मुलाक़ात

वो बचपन के दिन थे। भूत-प्रेत की कथाओं में तब हमारी जबर्दस्त दिलचस्पी होती थी। ऐसी कथाएं सुनते-सुनते कई बार हमारे दिल की धड़कन तेज हो जाती, सांसें अटक जातीं और मन कौतूहल व विस्मय से भर जाता। वो कहानी मेरी स्मृति में आज भी उतनी ही ताजी है ...। दशकों पहले, हमारे स्कूल के एक शिक्षक अपने पड़ोसी, आनंद की कहानी हमें सुना रहे थे: ‘‘कॉलेज की पढ़ाई के दौरान लोकेश और आनंद बहुत करीबी मित्र थे।

लेकिन घर लौटते हुए मेरे मन में प्रश्नों की झड़ी लग गई: क्या वाकई भूत-प्रेत होते हैं? क्या भूत खतरनाक होते हैं? कैसे निकलें भूत के डर से?...
दोनों ने एक साथ होस्टल में पांच साल बिताए थे। पढ़ाई समाप्त होने के बाद लोकेश की शादी नीलम से हुई। नीलम कॉलेज में उनकी जूनियर हुआ करती थी। उनकी शादी के बाद, आनंद उनके घर श्रीनगर गया। कॉलेज के अपने मित्रों और दो प्रेमियों को परिणय-सूत्र में बंधे देखकर आनंद बेहद खुश था। ‘धरती का स्वर्ग’ कहे जाने वाले इस खूबसूरत शहर में अपने मित्रों के साथ एक हफ्ता बिताने के बाद आनंद कुछ खुशनुमा लम्हों को समेटे अपने घर लौट आया।

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छह महीने के बाद आनंद को नीलम का एक पत्र मिला, जिसमें लोकेश की आकस्मिक मृत्यु की खबर थी। पत्र में नीलम ने आनंद से जल्दी ही श्रीनगर आने का आग्रह किया था। लेकिन अपनी घर-गृहस्थी में बहुत व्यस्त होने के कारण आनंद को नीलम के घर श्रीनगर पहुंचने में कुछ महीनों का वक्त लग गया।

फिर नीलम से हुई मुलाकात

वह जगह वीरान थी, घर के मुख्य द्वार पर एक बड़ा ताला लटका था। निराश होकर आनंद लौटने ही वाला था कि उसे नीलम की आवाज सुनाई दी। वह उस आवाज का पीछा करता घर के पिछले दरवाजे पर पहुंचा। वहां नीलम खूब सज-धज कर खड़ी थी। नीलम ने आनंद को घर के अंदर बुलाया। उसने आनंद को अपने सोने के कमरे में सोफे पर बैठाया और खुद पलंग पर बैठकर जोर-जोर से हंसने लगी। वह पागलों की तरह हंस रही थी।

वह जगह वीरान थी, घर के मुख्य द्वार पर एक बड़ा ताला लटका था। निराश होकर आनंद लौटने ही वाला था कि उसे नीलम की आवाज सुनाई दी।
अचानक नीलम ने वहीं बैठे-बैठे अपने हाथों को लंबा करके रसोई का दरवाजा खोला और अपने लंबे हाथों से पानी भरा एक गिलास आनंद की तरफ बढ़ाया। आनंद के शरीर में एक सिहरन दौड़ गई। वह वहां से भागा, दौड़ते हुए सड़क पर पहुंचा। तभी एक चाय की दुकान दिख गई, वहां जाकर उसने हांफते हुए पूछा, ‘लोकेश श्रीवास्तव का घर किधर है?’ दुकानदार ने दूर इशारा करते हुए कहा, ‘वो पीला मकान। पर लोकेश बाबू अब इस दुनिया में नहीं रहे।’ ‘और उनकी पत्नी नीलम?’ आनंद ने पूछा। दुकानकार ने कहा, ‘नीलम भी नहीं रहीं। उनको गुजरे लगभग तीन महीने हो गये।’’ इतना कहकर हमारे शिक्षक चुप हो गए। कक्षा में एक सन्नाटा छा गया था। हम सभी अवाक् रह गए थे। किसी ने कोई प्रश्न नहीं पूछा।

लेकिन घर लौटते हुए मेरे मन में प्रश्नों की झड़ी लग गई: क्या वाकई भूत-प्रेत होते हैं? क्या भूत खतरनाक होते हैं? कैसे निकलें भूत के डर से?... विश्वास और अंधविश्वास के बीच झूलते कुछ ऐसे सवाल हमेशा से तार्किक मन को परेशान करते रहे हैं। कुछ ऐसी ही गुत्थियों को सुलझाने की हमने कोशिश की है इस अंक में। उम्मीद है यह अंक भूत-प्रेत की दुनिया से आपका एक बेहतर परिचय कराने में सहायक होगा। तो आइए मिलिए इन कायाहीन प्राणियों से . . .

-डॉ सरस

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