मृत्यु का डर लगभग हर इंसान के अंदर होता है। लेकिन अगर पूछा जाए कि आखिर मृत्यु है क्या, तो शायद बहुत ही अलग-अलग तरह के विचार सामने आएंगे। किसी की नजर में यह जीवन का अंत है, तो किसी के लिए शरीर का अंत, कोई इसे अस्तित्व का मिट जाना समझता है, तो कोई इसे सांसों का बंद हो जाना मानता है। ये सारे विचार ही हमारे अंदर भय पैदा करते हैं।

क्यों लगता है मृत्यु से डर?

अब सवाल यह उठता है कि शरीर के मिटने के विचार से हम भयभीत क्यों होते हैं? क्योंकि हम खुद को शरीर के रूप में ही जानते हैं, और हमने खुद को सिर्फ शरीर के रूप में ही अनुभव किया है। शरीर से परे, हमें खुद के बारे में कोई अनुभव व ज्ञान नहीं है। जब इंसान खुद को शरीर से परे एक सत्ता के रूप में अनुभव करने लगता है, तभी उसे बोध होता है कि वह अनश्वर है। और फिर उसके लिए मृत्यु जैसी कोई चीज नहीं रह जाती। तब वह समझता है कि मृत्यु तो महज एक कल्पना है।

सद्‌गुरु मृत्यु के बारे में समझाते हैं

मृत्यु एक ऐसा विषय है जिसके बारे में काफी कुछ कहा गया है। मृत्यु की चर्चा करते हुए सद्गुरु कहते हैं, ‘‘क्या आपने एक मृत इंसान को देखा है? आपने एक शव, एक मृत शरीर देखा होगा, लेकिन क्या आपने एक मृत इंसान को कभी देखा है? नहीं, आपने मृत इंसान को नहीं देखा है। आपने इसका कभी अनुभव नहीं किया है। कभी ऐसा हुआ है कि कोई मर गया हो और उसने आपको वापस आकर बताया हो कि मैं इस तरह से मरा था? तो आपने मरे हुए इंसान को भी नहीं देखा, न आपसे कोई मृत इंसान मिला है और न ही खुद आप पहले कभी मरे हैं। तो वास्तव में आपके लिए मृत्यु एक कल्पना ही तो है। कई लोगों ने इसके बारे में तरह तरह की बातें करके आपको इस बारे में विश्वास दिलाया है। दरअसल मृत्यु जैसी कोई चीज नहीं है। मात्र जीवन है, सिर्फ जीवन। एक आयाम से दूसरे में, दूसरे से तीसरे आयाम में... जीवन सतत चलता रहता है...’’ मृत्यु से जुड़े ऐसे कई पहलू हैं, जो न केवल आपके मन में कौतूहल पैदा करते हैं, बल्कि आपको यदा-कदा चौंकाते भी हैं। हमने उन्हीं पहलुओं को इस बार के अंक में प्रमुखता देने की कोशिश की है। उम्मीद है आप मृत्यु की कल्पना से जीवन के यथार्थ तक पहुंच पाएंगे। इसी आशा के साथ आपको समर्पित है यह जून अंक।
 

- डॉ सरस

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