ईशा लहर जून 2017 : अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस विशेषांक
ईशा लहर के जून अंक में हमने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के महत्व पर प्रकाश डालने की कोशिश की है। जानते हैं कि कैसे अब तक की सबसे ज्यादा सम्पन्न पीढ़ी होकर भी हमें भीतरी ख़ुशी के लिए समाधान खोजने की जरुरत है। पढ़ते हैं इस माह का सम्पादकीय स्तंभ...
आइए जरा गौर करें। गौर करें - हजारों वर्षों से इंसान द्वारा किए जा रहे प्रयत्नों पर, उसकी उपलब्धियों पर और साथ ही गौर करें उसकी असफ लताओं और निराशाओं पर। जंगलों व गुफाओं में रहने वाले आदिमानव का जीवन बेहद असुरक्षित, कठिन और संघर्षों से भरा था। अपने जीवन को सुरक्षित, सुंदर और खुशहाल बनाने की चाहत में इंसान ने अथक और सतत कोशिशें की। कईयों ने अपनी भावी पीढ़ी को अधिक सुखी और सबल बनाने की कोशिश में अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया। परिणामस्वरूप सभ्यताओं और संस्कृतियों का उदय हुआ, विज्ञान और तकनीक का विकास हुआ।
मानव कल्याण के लिए महत्वपूर्ण कदम
हजारों वर्षों से इंसान द्वारा किए गए निरंतर कठिन परिश्रम, त्याग और समर्पण के बाद भी आज हम कहां खड़े हैं? आइए जरा गौर करें। क्या आज हम अपनी पिछली पीढिय़ों से अधिक खुशहाल और सुरक्षित हैं?
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पिछले साल की चर्चाएँ
पिछले वर्ष अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर संयुक्त राष्ट्रसंघ ने सद्गुरु को अपने न्यूयार्क स्थित मुख्यालय में बोलने और योग सिखाने के लिए निमंत्रित किया। वहां सद्गुरु से कई ज्वलंत प्रश्न पूछे गए जिनके जवाब केवल प्रश्नकर्ता के लिए ही नहीं, पूरी मानवता के लिए महत्वपूर्ण थे। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर जरुरत है एक बार फिर उन मुद्दों के पुनरावलोकन की। इसलिए इस बार के अंक में अपने नियमित स्तंभों के साथ हमने उस वार्ता में उठाए गए कुछ सवालों और उनके जवाबों को सहेजने की कोशिश की है, ताकि योग के महत्व को जन-जन से, आपसे, सीधे-सीधे जोड़ा जा सके। योग आपमें हो और आप योग में हों - इसी कामना के साथ यह अंक आपको सौंप रहे हैं। धन्यवाद।
– डॉ सरस
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