ईशा लहर जुलाई 2018 - मन भटकता है इसे कैसे रोकें?
अपने काम में मन न लगना आजकल एक आम बात हो गई है। इस बार के ईशा लहर अंक में हमने मन के इस भटकाव को दूर करने के, और दैनिक जीवन में आनंद पाने के एक सरल और बुनियादी तरीके पर चर्चा की है। ये तरीका है अपने काम से पूरी तरह जुड़कर लीन हो जाना। पढ़ते हैं इस बार का सम्पादकीय स्तम्भ।
सद्गुरु के सत्संगों और सभाओं में उनसे कई तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं। उनमें से कुछ प्रश्न होते हैं, - ‘जीवन में आनंद पाने का सूत्र क्या है?’ ‘सफलता का राज क्या है?’ ‘मेरा आध्यात्मिक विकास कैसे होगा?’ ऐसे प्रश्नों के उत्तर देते हुए सद्गुरु अक्सर एक अंग्रेजी शब्द का प्रयोग करते हैं - ‘इन्वाल्वमेंट’। ‘इन्वाल्वमेंट’ शब्द ‘इन्वाल्व’ से बना है, जिसका अर्थ होता है: हिस्सा लेना, जुड़ना, शामिल होना, लीन हो जाना...। जब हम किसी चीज के साथ गहराई से जुड़ते हैं, तो मैं और मेरा का बोझ कम हो जाता है। बोझ कम हो जाने से हम सहज हो जाते हैं, और फिर उस सहजता में हमारी चेतना का विस्तार होता है। उस विस्तार में हमारे अंदर जो भी उत्तम है, जो भी श्रेष्ठ है, वो व्यक्त होता है। अपनी एक कविता में मैंने लिखा:
खुद का बोझ सभी बोझों से भारी था
यह अब जाना मैं, कितना अनाड़ी था!
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खुद को खुद में खोकर, खुद को जाना
खुद का यह सुखद, मधुर एहसास,
अहा! अब लफ्जों में क्या कहना!!
सचमुच, आनंद का स्रोत हमारे अंदर ही तो है। फिर भी हम इससे वंचित रह जाते हैं। आखिर क्यों? क्योंकि अपने अंदर के स्रोत तक हमारी पहुंच नहीं है। तो वहां पहुंचें कैसे? इसके लिए इन्वाल्वमेंट एक बहुत ही प्रबल तरीका हो सकता है। हम न सिर्फ अपने कार्यों और चीजों के साथ जुड़ें, बल्कि हर चीज के साथ गहराई में जुडऩा सीखें। हम अपने घर में हों या ऑफिस में, चाहे हम ध्यान कर रहे हों या युद्ध, जीवन के हर क्षेत्र में हरेक पहलू के साथ पूरी तन्मयता से जुडऩा सीखें। इस जुडऩे की प्रक्रिया में हमारे सभी पूर्वाग्रह और भेदभाव मिट जाते हैं और जीवन में योग घटित होता है। फिर एक संभावना का जन्म होता है, जहां जीवन अपनी संपूर्णता और समग्रता में पूर्ण रूप से व्यक्त होता है।
जीवन में हमारे और आनंद के बीच जो दूरी है, कदम-कदम पर जो उलझनें हैं, जीवन को लेकर हमारे अंदर जो झिझक है... ये सभी समस्याएं कहीं न कहीं एक ही सूत्र से जुड़ी हैं। इस बार हमने कोशिश की है कि आप उस सूत्र का सिरा पकड़ सकें और इन समस्याओं को सुलझा सकें और अंतत: खुद को आनंदमय बना सकें। इसी कामना के साथ यह अंक आपको समर्पित है।
- डॉ सरस
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