वो जाड़े की एक सुबह थी। मैं आश्रम में, नालंदा कॉन्फ्रेंस सेंटर के प्रांगण में एक स्वामी जी के साथ टहल रही थी। हरी-हरी घास पर ओस की बूंदें, सूरज की रोशनी में मोती सी चमक रही थीं। आश्रम के चारों तरफ फैले पहाड़ों के ऊपर रूई के फाहे से बादल तैर रहे थे। मैं स्वामी जी के साथ किसी विषय पर चर्चा में मग्न थी, तभी पास की पगडंडी से गुजरते एक युवक ने स्वामी जी के साथ कुछ बातचीत करने की इच्छा जाहिर की।

जीवन की प्राथमिकताएं

वह युवक स्वामी जी से अपनी कुछ शंकाओं का समाधान चाहता था। बातचीत के दौरान पता चला कि वह भारतीय युवक पिछले बारह सालों से अमेरिका में किसी आईटी कंपनी में काम करता है। आखिर में जाते-जाते उसने स्वामी से मुस्कुराते हुए पूछा, ‘आपने ब्रह्मचर्य का कठोर मार्ग क्यों अपनाया, अपने घर में रहकर भी तो ईश्वर का चिंतन-मनन किया जा सकता था?’ स्वामी जी कुछ पल के लिए उस युवक को देखते रहे, फिर उन्होंने पूछा, ‘आप भारत छोडक़र, अपने माता-पिता को छोडक़र, अमेरिका में क्यों काम करते हैं?’ उस युवक ने बड़ी बेबाकी से, बिना पलक गिराए उत्तर दिया, ‘मैं एक गरीब परिवार से था और पैसा कमाना मेरे जीवन में सबसे अहम् था। मेरे ऊपर पैसा कमाने का धुन सवार था और अमेरिका के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। स्वामी जी, दरअसल हर इंसान अपना जीवन अपनी प्राथमिकता के अनुसार ही जीता है।’

ब्रह्मचर्य का असली मतलब

स्वामी जी मुस्कुराते हुए बोले, ‘मेरे भी साथ कुछ ऐसा ही था। मुझे भी यह तय करना था कि मेरे जीवन की प्राथमिकता क्या है। उन दिनों मैं लंदन में किसी कंपनी में काम करता था। एक दिन मेरे साथ कुछ बेहद सुंदर घटित हुआ। आप इसे सद्गुरु कृपा कहें या जो भी नाम देना चाहें दे सकते हैं। एक शाम मैं अपनी क्रिया करने के बाद, ध्यान में बैठ गया, बैठे-बैठे घंटों बीत गए... मैं एक अकथनीय अनंद में डूबा हुआ, शरीर व मन की सीमाओं से परे, खुद को अपने स्रोत के बेहद करीब महसूस कर रहा था। वह एक अद्भुत अनुभव था। एक इंसान के अंदर आनंद व प्रेम की इतनी बड़ी संभावना की अनुभूति ने मेरे जीवन की दिशा व दशा बदल दी। मेरे लिए यह स्पष्ट हो गया कि अपने भीतर के स्रोत से जुडऩे के अलावा जीवन में कुछ और महत्वपूर्ण व सार्थक नहीं है। तो फिर कैसे हुआ जाए अपने भीतर पूर्ण रूप से प्रतिष्ठित? इसी की तलाश में, मैं सद्गुरु से मिला और कुछ सालों के बाद उनके द्वारा ब्रह्मचर्य में दीक्षित हुआ। यह ब्रह्मचर्य न सिर्फ अपने जीवन में परम संभावना को सकार करने के बारे में है, बल्कि इस संभावना को जन-जन तक पहुंचाकर दुनिया में एक नई चेतना का संचार करना भी है।’

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उस दिन पहली बार अहसास हुआ की संन्यास और ब्रह्मचर्य के बारे में दुनिया में, और कदाचित हम सब के मन में कितनी भ्रांतियां फैली हुई हैं। ब्रह्मचर्य को हमने हमेशा पलायन ही समझा है।

ब्रह्मचर्य से जुड़े कई ऐसे पहलू हैं, जो हमारे मन को कुरेदते रहते हैं। उन्हीं पहलुओं को इस बार हमने समेटने की कोशिश की है, ताकि जिज्ञासुओं को इस मुद्दे से जुड़े सवालों का एक संतोषजनक उत्तर मिल सके। हमारी इस कोशिश के बारे में अपनी राय भेजना मत भूलिएगा। इस कामना के साथ कि आपके जीवन में भी परम संभावना एक असलियत बन जाय, हम आपको यह अंक समर्पित करते हैं।

- डॉ सरस

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