ईशा लहर अप्रैल 2017 - अनंत इच्छाओं का कारवां
ईशा लहर के अप्रैल अंक में हमने जीवन में इच्छाओं के महत्व पर प्रकाश डालने की कोशिश की है। कोई भी काम करने से पहले इच्छा का होना जरुरी है, क्या यही बात अध्यात्म पर भी लागू होती है? या फिर क्या इच्छाएं आध्यात्मिक राह में रूकावट होती हैं? जानते हैं -
है सब कुछ पाने की इच्छा
अहा! यह सरस जीवन
मचलती विकल लहरें,
है कलोल की इच्छा
हृदय छोर छूती उमड़ती अगणित तरंगें
है कठोर परिश्रम की इच्छा
गर्दिशों की पतवार,
करूं सात समुंदर पार।
इच्छा - झिलमिल झील किनारे
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सौम्य शांत छाया में सुस्ताने की
निस्सीम गगन में छिटकते
चांद सितारों को छूने की
नैसर्गिक सौंदर्य व निस्वार्थ प्रेम में खो जाने की
बस इतनी हीं?
नहीं, नहीं, मेरी इच्छाएं और भी हैं।
इच्छा - शास्त्र, संगीत-नृत्य, विज्ञान
सबकुछ जान लेने की
स्वर्णिम अतीत व सांस्कृतिक-विरासत को
पहचान लेने की
बस इतनी हीं?
नहीं, नहीं, मेरी इच्छाएं और भी हैं।
इस सीमित मनुज आकार में रमे निराकार,
है यह मेरी ज्वलंत इच्छा
जप-तप, योग-साधन का सतत अभ्यास,
जन्म जन्मांतर करूं प्रतीक्षा।
मेरी अनंत इच्छाओं का यह कारवां,
ललित स्वप्नों की बारात सजाए चला जा रहा है...
इंसान के अंदर इच्छाएं सहज व स्वाभाविक हैं। बिना इच्छा के कोई गति नहीं होती, बिना इच्छा के जीवन का खेल नहीं होता, पर अगर जीवन इच्छाओं में उलझकर भौतिक तक ही सीमित रह गया, तो हम जीवन के सार तत्व से वंचित रह जाते हैं।
अध्यात्म की राह पर बढऩे वाले लोगों की एक बड़ी मुश्किल यह होती है कि वे समझ नहीं पाते कि इच्छा उचित है या अनुचित। एक बहुत बड़ा वर्ग है जो मानता है कि जब तक आप अपनी इच्छाओं को मारेंगे नहीं तब तक आध्यात्मिक उन्नति संभव ही नहीं है। क्या सचमुच ऐसा ही है? क्या सचमुच अपनी इच्छाओं का दमन संभव है? अगर नहीं तो उपाय क्या है?
इसी ऊहापोह को और विस्तार देने की कोशिश की है हमने इस बार के अंक में, ताकि आप अपनी इच्छाओं को और उनके प्रति अपने दृष्टिकोण और व्यवहार को समुचित दिशा देने में अधिक सक्षम हो सकें। हमारी यह कोशिश आपको कैसी लगी, इस पर आप अपनी बेबाक राय हम तक जरूर पहुंचाएं। नमस्कार।
-डॉ सरस
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