आश्रम में बिताया गया एक-एक पल अपने आप में कभी न भूलने वाला अनुभव है। साथ में सदगुरु का सानिध्य भी मिल जाए तो क्या कहने! अभिनेत्री तनुश्री के साथ भी ऐसा ही हुआ। एक इंटरव्यू में उन्होंने आश्रम के अपने अनुभवों को इस तरह साझा किया:

प्रश्न: शांभवी क्रिया करने के बाद मानसिक और शारीरिक रूप से आपने अपने अंदर क्या बदलाव महसूस किए?

तनुश्री: शांभवी महामुद्रा की शुरुआत करने के बाद से मैं लगातार इस क्रिया को कर रही हूं। मुझे लगता है, इसकी वजह से मेरे भीतर कई तरह के बदलाव आए हैं। तमाम चीजों को देखने के मेरे नजरिये में अब ज्यादा स्पष्टता आ गई है। अब में जीवन को बिल्कुल अलग तरीके से संभालने में सक्षम हूं। कुल मिलाकर मुझे अब सुख और समृद्धि का अहसास होता है। मैं शारीरिक तौर पर भी स्वस्थ महसूस करती हूं, क्योंकि इस अभ्यास को करने से मेरी प्रणाली में एक तरह का संतुलन आ गया है। मुझे लगता है कि यह एक अहसास है जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। अंदर क्या बदलाव आते हैं, इसे जानने के लिए आपको इसका खुद अनुभव करना होगा। कुल मिलाकर यह बहुत शानदार अनुभव है। शारीरिक रूप से, मानसिकरूप से, अंदरूनी तौर पर, बाहरी तौर पर हर तरह से मैं खुद को आनंद में महसूस करती हूं।

मैं लंबे वक्त से गुरु को खोज रही थी और मुझे इस बात की खुशी है कि मुझे मेरे गुरु मिल गए। मुझे सद्‌गुरु मिल गए और मैं यही आशा करती हूं कि हर किसी को अपने गुरु मिल जाएं।
मैं कभी किसी खास जीवन शैली और आहार संबंधी नियम से बंधकर नहीं रही और न ही व्यायाम के किसी एक तरीके को मैंने अपनाया है। लेकिन यह एक ऐसा अहसास है, जो भीतर से आता है। मैं इस क्रिया को लगातार करते रहना चाहती हूं। ईशा के दूसरे साधकों की तरह शायद मैं भी कदम आगे बढ़ाऊं और एडवांस स्तर के कार्यक्रमों को करूं। क्रिया करने वाले लोगों को इसके लिए कुछ वक्त देना पड़ता है। मैं हमेशा इस बात पर हैरान रहती थी कि इतना वक्त क्रिया में देने के बाद ये लोग अपने बाकी काम कैसे करते होंगे। मसलन ये लोग नौकरी और परिवार से संबंधित तमाम दूसरे कामों को कैसे करते होंगे। लेकिन अब जबकि मैंने खुद क्रिया करनी शुरू कर दी है, तो मुझे पता चल गया है कि एक बार शुरू करने के बाद यह आपकी आदत में शामिल हो जाती है। फिर अपने आप ही आपका मन करता है क्रिया करने का, क्योंकि आपकी सुख समृद्धि इसी में है। ईशा योग कार्यक्रम और सद्गुरु से मुझे जो लाभ हुआ, उसको शब्दों में बताना बहुत मुश्किल है। मेरा मानना है कि अगर अपनी खुद की भलाई के लिए आप कोई क्रिया कर सकते हैं, तो आपको उसे अवश्य करना चाहिए। मैंने भी कहीं न कहीं कुछ ऐसा ही सोचा कि चलो ठीक है मैं यह करके देखती हूं कि मुझे कैसा लगता है। और आज स्थिति यह है कि अंदर से मुझे बहुत अच्छा महसूस होता है। अब मुझे लगता है कि हर किसी को इस का अभ्यास करके देखना चाहिए और फिर खुद ही इसके प्रभावों को महसूस करना चाहिए।

प्रश्न: आपको कैसे लगता है कि विश्व को इसकी आवश्यकता है? इसे आगे ले जाने में हर कोई कैसे अपना योगदान दे सकता है?

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तनुश्री: मुझे लगता है कि हममें से हर शक्स का कोई न कोई आध्यात्मिक गुरु अवश्य होना चाहिए, जो हमें जीवन में आगे ले जा सके और हमारी आध्यात्मिक यात्रा में हमारा मार्ग-दर्शन कर सके। जहां तक मेरी बात है तो मैं लंबे वक्त से गुरु को खोज रही थी और मुझे इस बात की खुशी है कि मुझे मेरे गुरु मिल गए। मुझे सद्‌गुरु मिल गए और मैं यही आशा करती हूं कि हर किसी को अपने गुरु मिल जाएं। हर किसी को किसी न किसी आध्यात्मिक प्रक्रिया का अभ्यास करना चाहिए और उसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि ऐसा करने से आप सांसारिक जीवन या रोजमर्रा के कामों से दूर हो जाएंगे। मेरा कहने का मतलब है कि मैं सामान्य जीवन जीती हूं। सुबह काम पर जाती हूं, काम करती हूं और अपने परिवार के साथ हूं।

 हर किसी को किसी न किसी आध्यात्मिक प्रक्रिया का अभ्यास करना चाहिए और उसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि ऐसा करने से आप सांसारिक जीवन या रोजमर्रा के कामों से दूर हो जाएंगे। 
अपने परिवार के प्रति मेरे कुछ कर्तव्य हैं। अपने पेशे के प्रति भी मेरे कुछ कर्तव्य हैं और मुझे लगता है कि अब मैं इन कर्तव्यों को ज्यादा प्रभावशाली तरीके से निभा पा रही हूं। कई बार जीवन में ऐसी परिस्थितियां भी आती हैं, जब आपका कोई रिश्ता तनावपूर्ण हो जाता है, ऐसा भी हो सकता है कि कामकाज के सिलसिले में आपको तनाव झेलना पड़ रहा हो। अगर आपके जीवन में कोई आध्यात्मिक प्रक्रिया है तो आपको ऐसी मुश्किल परिस्थितियों का सामना करने में बड़ी मदद मिलती है। आप ऐसी कठिन परिस्थितियों से आसानी से पार पा जाते हैं और कहीं ज्यादा खूबसूरत जीवन गुजार पाते हैं, कम से कम मेरे साथ तो ऐसा ही होता है। सब कुछ आसान सा लगने लगता है। मैं एक ऐसी उम्र से गुजर रही हूं जिसमें मेरे बहुत से दोस्त पार्टी, क्लब जैसी तमाम चीजों में हिस्सा लेते हैं। मैं भी ये सब काम करती हूं। मुझे लगता है कि जीवन में पूर्णता होनी चाहिए। यानी जीवन का एक दूसरा पहलू भी है और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का मतलब यह नहीं है कि आप उसे पूरी तरह छोड़ दें। मैंने कुछ भी नहीं छोड़ा। बस एक और ऐसी चीज को मैंने अपने जीवन में सम्मिलित कर लिया, जिसने मेरी जिंदगी में एक नया आयाम जोड़ दिया है। साथ ही, मेरे अंदरूनी सुख में यह मेरी मदद कर रही है।

हम नए कपड़े या जूते आदि खरीदना चाहते हैं, क्योंकि इन्हें पहनने के बाद हमें अच्छा लगता है। मैं एक अभिनेत्री हूं। जाहिर है, मुझे भी ये चीजें पसंद हैं। लेकिन इसके साथ ही मुझे यह अहसास होना भी शुरू हो गया कि मुझे अपनी अंदरूनी चीजों की भी देखभाल करनी चाहिए।

प्रश्न: आश्रम में ठहरने का आपका कैसा अनुभव रहा? इस स्थान के बारे में आप क्या सोचती हैं?

यहां का पूरा का पूरा वातावरण ही इतना ऊर्जावान है कि आप बेहद आसानी से ध्यान कर सकते हैं। ध्यानलिंग और लिंग भैरवी जैसे अदभुत स्थान भी हैं यहां।
तनुश्री: आश्रम में ठहरना अपने आप में एक शानदार अनुभव रहा, खासकर उस ऊर्जा की वजह से जो इस स्थान पर बहती है। यहां का पूरा का पूरा वातावरण ही इतना ऊर्जावान है कि आप बेहद आसानी से ध्यान कर सकते हैं। ध्यानलिंग और लिंग भैरवी जैसे अदभुत स्थान भी हैं यहां। इन दोनों ही जगह बैठना मुझे पसंद है, क्योंकि यहां बैठने का अनुभव ही अलग है। यहां बहुत स्वादिष्ट शाकाहारी भोजन मिलता है। मैं सेहतमंद खाना खाने की आदी हूं इसलिए यह सब मुझे बड़ा पसंद आया। जब मैं यहां थी, तो सौभाग्य से सद्गुरु भी यहां थे। जाहिर है, मुझे उनसे मिलने का अवसर मिला और उनसे मुलाकात का अनुभव मेरी आश्रम यात्रा का सबसे सुखद हिस्सा था। यह आश्रम पहाड़ियों के बीच स्थित है, इसलिए यहां का वातावरण और माहौल बेहद सुखद है।

प्रश्न: सद्‌गुरु के सानिध्य में कैसा महसूस हुआ?

तनुश्री: ओह, यह तो सबसे मुश्किल सवाल पूछ लिया आपने, क्योंकि सद्‌गुरु के सानिध्य में होने के अनुभव को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। उनकी मौजूदगी ही अपने आप में बेहद खास है। उनके सानिध्य में कैसा लगता है, यह जानने के लिए आपको उनके सानिध्य में ही आना पड़ेगा।

प्रश्न: आश्रम की गतिविधयों में हिस्सा लेकर आपको कैसा लगा?

तनुश्री: जब मैं आश्रम आई तो मुझे प्रोजेक्ट ग्रीन हैंड्स का नर्सरी प्रोजेक्ट मुझे बड़ा आकर्षक लगा, इसलिए मैंने उसमें घंटों बिताए। मैंने मिट्टी तैयार की और फिर एक दिन कुछ पौधों को वहां रोपा। मुझे यह सब बेहद रोमांचक लगा। सेवा का यह अनुभव मेरे लिए बहुत शानदार और बेहद खास था। आश्रम में जो भी लोग काम कर रहे हैं, उनके प्रति मेरे मन में अब अलग तरह का सम्मान पैदा हो गया है, क्योंकि ईशा स्वयंसेवियों द्वारा चलाया जाने वाला संगठन है। आश्रम में रहने वाला हर व्यक्ति स्वयंसेवी है और यहां सब कुछ बहुत सुनियोजित और सुव्यवस्थित तरीके से होता है। इन लोगों ने सेवा और साधना में अपना जीवन समर्पित कर दिया है, वह भी बदले में बिना कुछ अपेक्षा किए। यह सब करने के लिए बहुत बड़ा दिल चाहिए।

सद्‌गुरु के सानिध्य में होने के अनुभव को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। उनकी मौजूदगी ही अपने आप में बेहद खास है। उनके सानिध्य में कैसा लगता है, यह जानने के लिए आपको उनके सानिध्य में ही आना पड़ेगा।
सेवा कार्यों का हिस्सा बनकर मुझे बहुत अच्छा लगा। सीधी सी बात है, जब आप सेवा कर रहे होते हैं तो आपके मन में अपने लिए कोई विशेष लक्ष्य नहीं होता। यह दूसरे कामों या नौकरी की तरह नहीं है जिसमें आप खुद के लिए कोई चाह मन में रखते हैं या कोई मकसद लेकर चलते हैं। तो यह पूरी तरह एक अलग तरह का काम था। जब आप किसी काम को करने से पहले नतीजे के बारे में नहीं सोचते हैं तो उस काम को करने का अनुभव बेहद रोमांचकारी और निराला होता है। जब मैं सेवा कार्य कर रही थी तो मैंने इस बात को काफी महसूस किया, खासकर तब जब मैं नर्सरी में थी और पौधे रोप रही थी। मैं उन पौधों को बड़ा होते नहीं देख पाऊंगी, लेकिन उन्हें रोपने का जो काम था, वह बेहद खूबसूरत था।