सद्‌गुरुएक जिज्ञासु ‐ शेरिल सिमोन की बेचैनी भरी यात्रा के अनुभवों ने एक पुस्तक का रूप लिया - ‘मिड्नाइट विद द मिस्टिक’। इस ब्लॉग में आप पढ़ रहे हैं उसी पुस्तक का हिंदी अनुवाद, एक धारावाहिक के रूप में:


पिता ने किया शादी का विरोध

हमारी सगाई ने मेरे और मेरे परिवार के बीच, खास तौर से मेरे और मेरे पिता के बीच एक गहरी खाई बना दी थी। मेरे पिता मेरे साथ इस बात पर अंतहीन चर्चा करते रहे कि मैं कितनी भयंकर गलती करने जा रही हूं। जब अंत में उनको लगा कि वे कुछ भी करें या कहें, मेरे मन को बदल नहीं पायेंगे और न ही मेरी करनी पर काबू कर पायेंगे तब उन्होंने न सिर्फ शादी में आने से मना कर दिया मुझसे बात करना तक बंद कर दिया। उन्होंने यह बिलकुल साफ कर दिया कि वे मुझसे कोई संबंध नहीं रखना चाहते। कुछ समय के लिए तो मैं उनके लिए मर चुकी थी।

पिता की भी थी अध्यात्म में दिलचस्पी

यह मेरे लिए एक बहुत बड़ी क्षति थी क्योंकि मैं अपने पिता से अगाध प्रेम करती थी और जानती थी कि मेरे पिता भी मुझसे बहुत अधिक प्यार करते हैं। उस समय तक वे मेरे कायल थे और मेरे हर काम की पैरवी करते थे। वे बड़े मेहनती थे।

सिर्फ कुछ समय पहले तक जो सुंदर, रोमांचक और चमत्कारी लग रहा था पूरी तरह बिखर गया था। मैंने जीवन में आनंद के उफान की जितनी भी ऊंचाइयां महसूस की थीं, उन्हीं की तरह यह भी उतर गया।
अक्सर सूरज निकलने से पहले वे काम पर चले जाते और अंधेरा होने से पहले नहीं लौटते थे, फि र भी उनका पूरा ध्यान रहता था कि मैं क्या करती हूं। वे यह जानते थे कि मैं और सब लोगों द्वारा पढ़ी जानेवाली पुस्तकें छोडक़र ध्यान-अध्यात्म जैसे विषयों पर विविध पुस्तकें पढ़ती हूं। इसी वजह से उन्होंने मुझे मर्गी की ध्यान-कक्षाओं के बारे में बताया था। असल में जब मैंने कहा कि अगर वे भी साथ होंगे तो मैं ध्यान की कक्षा में जाऊंगी तो वे तुरंत राजी हो गये थे और हम दोनों उन कक्षाओं में साथ जाने लगे थे। उन्होंने न केवल मेरी पहली आध्यात्मिक गुरु से मेरी पहचान करायी थी, बल्कि उन्होंने मेरे साथ वह अनुभव भी प्राप्त किया था। ध्यान को कोई विचित्र-सी चीज मानकर मुंह बिगाडऩे के बजाय वे समय निकालकर मेरे साथ ध्यान करने के लिए राजी थे।

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मैंने आशा बांध रखी थी कि समय के साथ मेरे पिता मेरी तरफ नर्मी दिखायेंगे और देर-सबेर टेड को समझ पायेंगे, जो कि उन्होंने किया। मुझे मालूम था कि वे सिर्फ मुझे सुखी देखना चाहते थे और यह सब मेरा फैसला बदलने के लिए कर रहे थे। मैं यह जानती तो थी पर यह मुझ पर भारी पड़ रहा था, क्योंकि मैं ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहती थी जिससे मेरे पिता को किसी भी तरह से दुख पहुंचे।

अध्यात्म की राह पर मिलकर आगे बढ़ने का विश्वास

वैसे मेरे मन में टेड के पिछले जीवन को ले कर कोई चिंता नहीं थी। उससे मिलने पर मैं बस इतना जानना चाहती थी कि वह कौन है। मेरे लिए जीवन में आध्यात्मिक प्रगति का महत्व किसी भी और चीज से अधिक था और मैं समझती थी कि यह रिश्ता जरूर टिकेगा।

हम भी एक दुखी झगड़ालू जोड़ी बन गये। हमारे साथ जो कुछ हो रहा था उससे मेरा दिल टूट गया था, पर मैं अभी भी उम्मीद लगाये हुए थी कि शायद हम सब-कुछ ठीक कर लें।
मुझे विश्वास था कि हम दोनों मिल कर अध्यात्म के रास्ते पर चलेंगे। मैं जानती थी कि मुझे मेरा जीवन-साथी मिल गया है। कुछ समय तक मेरा यही विश्वास था। पर चीजें बदलती हैं। हालात बदल गये। हम मिडवेस्ट चले गये जहां टेड को परोल में रहना था और जहां उसके माता-पिता रहते थे। टेड को मशीनी काम वाली एक नौकरी मिल गयी थी। उसको बहुत देर तक काम करना पड़ता था। इसके अलावा हम जिस शहर में रहते थे वह वीरान और ठंडा था। मैं अपने मित्रों और परिवार से दूर थी लेकिन टेड के मेरे बहुत करीब होने के कारण शहर अच्छा न लगने के बावजूद मैं खुश थी। एक साल बाद मैंने धूप-खिले फ्लोरिडा में अपने मित्रों के साथ टेड के लिए एक नौकरी खोज ली। हमारे जगह बदलने के साथ ही टेड अपना परोल बदलवाने में भी सफल हो गया। मैं सचमुच में चाहती थी कि हम किसी खूबसूरत मखमली धूप-खिली जगह में रहें।

बाहरी दुनिया की चुनौतियाँ

टेड ने कैद में रहते समय वहां के कष्टसाध्य वातावरण में अपने लिए एक आध्यात्मिक स्थान बना लिया था और आत्मोन्नति के लिए उसके पास बहुत समय था।

मैं पूरी तरह खुली हुई थी, एक खुली किताब। जबकि टेड एक स्वयं में सिमटा व्यक्ति था जिसके कारण कभी-कभी हमारी नहीं बनती थी।
लेकिन जब वह बाहर आ गया तो बाहर की असली दुनिया की तोड़-मरोड़ और रोजी-रोटी कमाने की उधेड़बुन ने उसके लिए नयी चुनौतियां खड़ी कर दीं। वह बहुत जिम्मेदार और कड़े अनुशासन के योग्य था, लेकिन दिन में बारह-चौदह घंटे काम करने के कारण अब ध्यान, उपवास और योग बीती बात हो गये। उसका वह पहलेवाला ओज, शांति और हंसी-ठिठोली अब उतनी आसानी से नहीं दिखाई पड़ती थी।

टेड एक प्रतिभाशाली संगीतज्ञ भी था और उसकी आवाज में जादू था। संगीत उसको सहजता से खुद की आनंदपूर्ण दुनिया में पहुंचा देता था, लेकिन वह अपना रोजमर्रा का जीवन आराम से नहीं जी पाता था।

रोमांचक और चमत्कारी सपना बिखर गया

जो बात मैं उस समय पूरी तरह नहीं समझ पायी वह यह थी के जेल में चार साल बिताना कितना बड़ा सदमा हो सकता है! उससे उबरने में समय लगता है। मैं पूरी तरह खुली हुई थी, एक खुली किताब। जबकि टेड एक स्वयं में सिमटा व्यक्ति था जिसके कारण कभी-कभी हमारी नहीं बनती थी। हम एक-दूसरे से बहुत भिन्न थे, जितना मैंने समझा था उससे कहीं ज्यादा।

मेरे लिए जीवन में आध्यात्मिक प्रगति का महत्व किसी भी और चीज से अधिक था और मैं समझती थी कि यह रिश्ता जरूर टिकेगा।
पर शायद दो आत्माओं के मिलन की फैंटेसी के कारण मैं चाहती थी कि हम दोनों एक-जैसा महसूस करें। मैं जैसी थी उससे टेड को कष्ट हो रहा था। और वो जैसा था उससे मेरा दम घुट रहा था। धीरे-धीरे हम दोनों के बीच बात इतनी बिगड़ गयी कि हम सिनेमा जाने जैसी आसान-सी चीजें भी मिल कर नहीं कर पा रहे थे। कुछ ही समय में हमने अपनी नजदीकी खो दी और अपनी हंसी-ठिठोली भी। हम भी एक दुखी झगड़ालू जोड़ी बन गये। हमारे साथ जो कुछ हो रहा था उससे मेरा दिल टूट गया था, पर मैं अभी भी उम्मीद लगाये हुए थी कि शायद हम सब-कुछ ठीक कर लें। सिर्फ कुछ समय पहले तक जो सुंदर, रोमांचक और चमत्कारी लग रहा था पूरी तरह बिखर गया था। मैंने जीवन में आनंद के उफान की जितनी भी ऊंचाइयां महसूस की थीं, उन्हीं की तरह यह भी उतर गया।