एक साधक सद्गुरु से पूछता है, जब कर्म लगातार इतने तरीकों से दर्ज किए जा रहे हैं, तो क्या यह किसी को पीड़ा में रखने का विस्तृत जाल नहीं है? सद्गुरु समझाते हैं कि एक बार जब कोई मजबूरी के बजाय अपने चुनाव से जीने लगता है, तो आपके पास चाहे किसी भी तरह का कर्म हो, आप उससे क्या बनाते हैं, यह 100% आपके हाथ में होता है।