हमें दुनिया में ऐसा तंत्र स्थापित करना है, जहां हम शब्दों की जंग तो लड़ें, पर एक दूसरे को कभी कोई शारीरिक क्षति न पहुंचाएं। इसे ही हम लोकतांत्रिक प्रक्रिया कहते हैं, जहां मौखिक जंग जारी रहती है। आप किसी के शब्दों से आहत नहीं होते, क्योंकि अगर हम शब्दों की जंग का अपना अधिकार खो देते हैं तो यह चीज शारीरिक जंग में बदल जाएगी। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हर व्यक्ति को मौखिक जंग में प्रशिक्षित किया जाए। लोगों को एक दूसरे के साथ जुबानी युद्ध करने की कला को अच्छी तरह सीखना चाहिए, क्योंकि अगर उनमें अपने गुस्से, असंतोष, कुंठा को आवाज देने की क्षमता नहीं होगी तो वे हाथापाई पर उतर आएंगे। जब तक हम मानवता को उस हद तक नहीं ले जाते, जहां हर कोई सदाशिव हो जाता है, अपने भीतर वह विशुद्ध हो जाता है, तब तक जुबानी जंग एक कला है। यह एक उत्तम उपाय भले ही न हो, लेकिन एक अंतरिम उपाय जरूर है।
आज हमारे पास युद्ध के जितने हथियार हैं, अगर उनका इस्तेमाल हमने संसद भवन में होने वाली जुबानी जंग और संयुक्त राष्ट्र संघ में होने वाली बहसों की जगह किया होता तो इस दुनिया का हम कई बार विनाश कर चुके होते। अगर आज यह सब नहीं हो रहा है तो इसकी वजह है कि आधुनिक समाज ने शब्दों से जंग लड़ना सीखा है, हम एक दूसरे के खिलाफ सभ्य तरीके से अप्रिय बातें कर सकते हैं। इन दिनों तो अगर आपमें किसी के सामने कुछ कहने की हिम्मत नहीं है, तो आप उसे ब्लॉग में लिख सकते हैं। आज आप अपने घर में बैठे-बैठे हर तरह की अप्रिय और अश्लील बातें कह सकते हैं और यह कोई मायने नहीं रखता कि यह सारी बातें सच हैं या झूठ, कोई इसे पढ़ भी रहा है या नहीं, या फिर इसका कोई मतलब निकल भी रहा है या नहीं। मूल बात है कि कुछ कहा जाए।

मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप एक दूसरे को गाली दें या भला बुरा कहें। मैं सिर्फ इतना कह रहा हूं कि अगर आप बोलते, लिखते या बहस करते हैं तो फिर आप बम फोड़ना नहीं चाहेंगे।

मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप एक दूसरे को गाली दें या भला बुरा कहें। मैं सिर्फ इतना कह रहा हूं कि अगर आप बोलते, लिखते या बहस करते हैं तो फिर आप बम फोड़ना नहीं चाहेंगे। लोग बम इसलिए फोड़ रहे हैं कि वे नहीं जानते कि अपनी बात को कैसे रखा जाए। जो लोग, खासकर भारत में, ये बम विस्फोट या धमाके कर रहे हैं, वे ऐसा करके अपनी बात कहने की कोशिश कर रहे हैं। अभी एक धमाका हुआ... 16 लोग मरे और 100 घायल हुए। अपनी बात कह दी गई। आखिर हमने सिर्फ 16 को ही मारा। अगर साइकिल बम या कार बम की जगह उन्होंने ट्रक बम रखा होता तो वे 2000 लोगों को भी मार सकते थे। ऐसे में हमें उन लोगों को इतना शिक्षित करने की जरूरत है कि वे ठोस शब्दों में अपनी बात कह सकें और साइकिल बम बनाने की नौबत ही न आए। उनको जो भी कहना है, वह अपना गुबार निकाल लें। इसके लिए उन्हें 16 लोगों को मारने की जरूरत नहीं होगी।
जहां तक संभव हो, हर समाज को हिंसा को लगातार कम करने की कोशिश करनी होगी। जब तक हम एक ऐसी संभावना तक नहीं पहुँचते, जहां सारी दुनिया प्रबुद्ध हो उठे, तब तक हिंसा को कम से कम करके रखना ही बेहतर होगा। हालांकि मैं निराशावादी नहीं हूं, लेकिन इतना बेवकूफ भी नहीं हूं कि यह सोचूं कि मेरे जीवन में यह सब संभव हो सकेगा। मैं तो अभी सिर्फ इतना ही सोच रहा हूं कि अगर फिलहाल कुछ सौ लोग भी अगर अपने अंदर खिल जाएं तो यह वाकई शानदार होगा, क्योंकि वे लोग इसे कई गुना करके आगे फैलाएंगे। इसकी संभावनाएं काफी अच्छी हैं, बल्कि मैं तो कहूँगा कि बहुत अच्छी हैं। फिलहाल सम्यमा जारी है, निश्चित रूप से हम ऐसे लोग तैयार करेंगे, जिनके अंदर हिंसा नहीं होगी।

Love & Grace

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.