सद्‌गुरु हमारे मन में उठती गिरती सोच लगातार बदलती रहती है। आज के स्पॉट में सद्‌गुरु बता रहे हैं कि मन के बदलते आकार और जीवन की दिशा में क्या संबंध है और कैसे इन्हें संभालना चाहिएः

लोगों के साथ आखिर ऐसा क्यों होता है कि वे एक पल में आनंद से भरे होते हैं और अगले ही पल पूरी तरह से दुख में डूब जाते हैं?

मन का कोई आकार नहीं होता, आप इसके साथ जो चाहें, कर सकते हैं। मन की यह सबसे शानदार बात है और यही वो चीज है, जिसके चलते अधिकांश लोग आज परेशान हो रहे हैं।
ऐसा क्यों होता है कि जिस चीज को आप पाना चाहते हैं, एक पल में तो आप उसे बहुत करीब महसूस करते हैं और अगले ही पल वह दूर महसूस होने लगता है? इसकी वजह है आज की दुनिया में हमारे मन को ठीक से संचालित करने पर कोई काम ही नहीं हुआ है। अपनी शिक्षा व्ययवस्था में हम ABC व 1, 2, 3 से लेकर E = mc² (ई=एम्सी²) तक, अपने मन को सिर्फ सूचनाओं से भर रहे हैं। अगर आपके पास दूसरों की तुलना में जरा भी ज्यादा जानकारी हुई तो लोग आपको स्मार्ट समझते हैं। अगर आप बेवजह अपने सिर पर बहुत सारा सामान लेकर चलते हैं तो आमतौर पर लोगों को आपको मूर्ख समझना चाहिए, लेकिन इस मामले में, यानी मन में बेवजह (जानकारी के रूप में) ढेर सारी चीजें ढोने पर लोग आपको स्मार्ट समझते हैं। आज की दुनिया में तो आपको किसी भी चीज की जानकारी के लिए बस अपने फोन में झांकना है और फिर अपने पास से गुजरते किसी आदमी को आकाशगंगा जैसी चीजों के बारे में कुछ बता देना है। सामने वाला खुद ही बोल पड़ेगा, ‘अरे आप तो बेहद बुद्धिमान हैं!’ लेकिन दुर्भाग्य से यहां आप नहीं, बल्कि आपका फोन बुद्धिमान है।

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मन को अनुशासित करना सीखना होगा

आज जानकारी को बुद्धिमानी समझा जाता है - जिसे कोई भी मूर्ख हासिल कर सकता है। आप कोई किताब खोल लीजिए और पढ़ लीजिए। लंबे समय तक लोग सोचते रहे कि किताब पढ़ना ही धर्म है।

  मैंने अपने जीवन की दिशा तय की और ये जबरदस्त तरीके से कारगर हुई है। अपनी दिशा तय करें, चाहे वो दिशा जो भी हो।
यहां तक कि आज भी कई लोग ऐसा ही सोचते हैं। अगर कोई भी व्यक्ति साक्षर है तो वह किताब पढ़ सकता है। जब साक्षरता दुलर्भ बात थी, पूरे गांव में सिर्फ एक ही व्यक्ति पढ़ लिख सकता था, जिसे देख कर लोग उस समय हैरत में पड़ जाते थे कि यह इंसान सिर्फ एक किताब में देखकर इतनी सारी बातें बता सकता है, लेकिन जब वे लोग उस किताब में देखते थे तो उनको कुछ समझ नहीं आता था। उन्हें यह चीज बड़ी अद्भुत लगती थी। जब भी आप अज्ञानी होते हैं तो आपको कोई भी चीज अद्भुत ही लगती है। अब हम मौजूदा दौर की ओर लौटते हैं, आज हमारी शिक्षा व्यवस्था में जिस चीज़ की कमी खल रही है, वो यह है कि यह हमारे मन की प्रकृति पर ध्यान नहीं दिया जाता और यह नहीं सिखाया जाता कि कैसे हमें इसे संभालना चाहिए, कौन से वे बुनियादी अनुशासन हैं जिसे हमें अपने भीतर लाने की कोशिश करनी चाहिए। यही वजह है कि आप जिस चीज के लिए कोशिश कर रहे होते हैं, एक पल में वह आपको नजदीक व वास्तविक लगने लगती है, लेकिन कुछ देर बाद ही वह फिर एक खोखले वादे सा लगने लगती है।

अपने जीवन की दिशा आप खुद तय करें

आपको अपने मन को जरूर तैयार करना चाहिए, वर्ना जीवन बेकार चला जाएगा। हर पल आपके विचार इधर से उधर भटकते रहते हैं, क्योंकि मन का कोई आकार नहीं होता।

आप अपने जीवन की दिशा उस समय तय कीजिए, जब आप खुश हों, बेहतर हों और आपकी सोच बिलकुल साफ हो। उसके बाद आप जो भी तय करें, उसमें बदलाव नहीं होना चाहिए।
मन की यही खूबसूरती है कि आप जैसा चाहें, इसे आकार दे सकते हैं या फिर आप इसे एक तरफ रख सकते हैं। आपके शरीर का एक आकार होता है। लेकिन मन का कोई आकार नहीं होता, आप इसके साथ जो चाहें, कर सकते हैं। मन की यह सबसे शानदार बात है और यही वो चीज है, जिसके चलते अधिकांश लोग आज परेशान हो रहे हैं। दिक्कत यह है कि आपका मन आपके आदेश से नहीं चल रहा है, यह अपना आकार खुद ले रहा है। आपको अपना मन जरुर बनाना चाहिए। आज एक अच्छा दिन है। आप आराम से एक तरफ बैठ कर अपना मन बनाइए। आपके जीवन की दिशा क्या है? और फिर आप बचे हुए जीवन में इस दिशा को मत बदलिए। आपने अपने लिए जो भी चुना है, वह मुझे चलेगा। उससे मुझे कोई आपत्ति नहीं है। अगर आप अपने जीवन की दिशा नहीं तय करते तो रोज आपका मन बदलता रहेगा और आपको लगेगा कि आपको अपने जीवन की दिशा बदलने की जरूरत है।
अगर आप बारिश के मौसम में कभी ईशा योग केंद्र आए होंगे तो आपने देखा होगा कि यहां छाए बादल हर पल अपना आकार बदलते रहते हैं। बादलों का आकार बदलना कोई समस्या नहीं है। लेकिन अगर हवा अपनी दिशा बदलती है और बादल वहां नहीं जाते, जहां उन्हें जाना चाहिए तो यह अपने आप में एक समस्या है। यही चीज आप पर भी लागू होती है। समस्या यह नहीं है कि आपका मन आकार बदल रहा है, समस्या यह है कि यह अपनी दिशा बदल रहा है। आप अपने जीवन की दिशा पूरी तरह से खुद तय कीजिए। इस बारे में मैं आपको कोई राय नहीं दूंगा और न ही उसे लेकर आपको किसी तरह से प्रभावित करूंगा। मैंने अपने जीवन की दिशा तय की और ये जबरदस्त तरीके से कारगर हुई है। अपनी दिशा तय करें, चाहे वो दिशा जो भी हो। इसके बाद इसे रोज नहीं बदलते रहना चाहिए। हर छोटी-छोटी चीज, जो आपको यहां-वहां दिखाई देती है, उसके पीछे लगे रहना कहीं से मानव जीवन जीने का तरीका नहीं होना चाहिए।

अगर जीवन की दिशा तय है, तो मन परेशान नहीं करेगा

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपने अपने लिए जीवन की जो दिशा तय की है, वह काम करती दिख रही है या नहीं। आप अपने जीवन की दिशा उस समय तय कीजिए, जब आप खुश हों, बेहतर हों और आपकी सोच बिलकुल साफ हो।

 एक बार अगर जीवन की दिशा तय हो गई तो मन का आकार बदलना आपको अवसाद या निराशा की बजाए रचनात्मकता की ओर ले जाएगा।
उसके बाद आप जो भी तय करें, उसमें बदलाव नहीं होना चाहिए। अगर आपकी भावनाएं दिशा बदलती है और आप सोचते हैं, ‘यह ठीक नहीं है’ तो आप उनकी मत सुनिए। अगर आप अपनी हताशा, निराशा और कुंठा की बात सुनेंगे तो आप वक्त से पहले खुद को गढ्ढे में ढकेल लेंगे। आपके लिए तो किसी और को गढ्ढा खोदना चाहिए और वो भी आपके मरने के बाद। आखिर आप अपने लिए खुद गढ्ढा क्यों खोदे? यह समय गढ्ढा खोदने का नहीं, बल्कि उड़ने का है। मानव मन की सबसे शानदार बात यह है कि यह हर पल जैसा चाहे अपना आकार बदल सकता है। किसी भी रूप में बदल सकता है। समस्या तभी आती है, जब आप आकार को दिशा समझने की भूल कर लेते हैं। आज लोगों के जीवन में यही हो रहा है। अगर आप अपने जीवन की दिशा तय कर चुके हैं तो फिर अपने मन को जैसा चाहे, जितना चाहे आकार बदलने दीजिए, इसमें कोई समस्या नहीं है। एक बार अगर जीवन की दिशा तय हो गई तो मन का आकार बदलना आपको अवसाद या निराशा की बजाए रचनात्मकता की ओर ले जाएगा।
वह मन, जो किसी भी पल की जरूरत के हिसाब से सचेतन तरीके से अपना आकार ले सकता है, वह ज्ञान प्राप्ति के लिए सबसे अच्छा है। अपने फोकस को न बदलने वाला एक अस्पष्ट मन असीम ज्ञान पाने का एक जरिया है।
Love & Grace